tag:blogger.com,1999:blog-56220262314183381652024-03-05T15:52:16.009+05:30बकवास रिपोर्ट...ख़बरों का सरोकार यहाँ दिल से है ...bakwas reporthttp://www.blogger.com/profile/12100394842727069707noreply@blogger.comBlogger42125tag:blogger.com,1999:blog-5622026231418338165.post-64671111378476957082013-01-14T12:49:00.001+05:302013-01-14T12:49:41.787+05:30vinod mishra ka blog: ज़रदारी नहीं कयानी से बात कीजिये<a href="http://hamargam.blogspot.in/2013/01/blog-post_11.html#links">vinod mishra ka blog: ज़रदारी नहीं कयानी से बात कीजिये</a>bakwas reporthttp://www.blogger.com/profile/12100394842727069707noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5622026231418338165.post-53763584444459367182013-01-08T15:22:00.001+05:302013-01-08T15:22:31.585+05:30vinod mishra ka blog: धृतराष्ट्र के हस्तिनापुर में" दामिनी" के साथ इन्साफ?<a href="http://hamargam.blogspot.in/2013/01/blog-post.html#links">vinod mishra ka blog: धृतराष्ट्र के हस्तिनापुर में" दामिनी" के साथ इन्साफ?</a>bakwas reporthttp://www.blogger.com/profile/12100394842727069707noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5622026231418338165.post-88761540169179794032012-11-05T14:37:00.001+05:302012-11-05T14:37:50.564+05:30vinod mishra ka blog: कश्मीर की सियासत और लाचार मुल्क<a href="http://hamargam.blogspot.in/2012/11/blog-post.html#links">vinod mishra ka blog: कश्मीर की सियासत और लाचार मुल्क</a>bakwas reporthttp://www.blogger.com/profile/12100394842727069707noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5622026231418338165.post-73669380008028922882012-10-06T22:45:00.001+05:302012-10-06T22:45:36.998+05:30vinod mishra ka blog: राष्ट्रीय दामाद की शान में गुश्ताखी<a href="http://hamargam.blogspot.in/2012/10/blog-post.html#links">vinod mishra ka blog: राष्ट्रीय दामाद की शान में गुश्ताखी</a>bakwas reporthttp://www.blogger.com/profile/12100394842727069707noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5622026231418338165.post-67895429325631342552012-08-26T13:21:00.001+05:302012-08-26T13:21:28.128+05:30vinod mishra ka blog: कश्मीर मसले का हल तारीख से नहीं बर्तमान में ढूंढे<a href="http://hamargam.blogspot.in/2012/08/blog-post_25.html#links">vinod mishra ka blog: कश्मीर मसले का हल तारीख से नहीं बर्तमान में ढूंढे</a>bakwas reporthttp://www.blogger.com/profile/12100394842727069707noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5622026231418338165.post-53100869713826079642012-06-22T14:56:00.001+05:302012-06-22T14:56:25.260+05:30vinod mishra ka blog: कपिल सिब्बल साहब यह जिद क्यों है<a href="http://hamargam.blogspot.in/2012/06/blog-post.html#links">vinod mishra ka blog: कपिल सिब्बल साहब यह जिद क्यों है</a>bakwas reporthttp://www.blogger.com/profile/12100394842727069707noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5622026231418338165.post-21832509331667115662012-01-30T23:01:00.000+05:302012-01-30T23:01:30.019+05:30vinod mishra ka blog: "आज़ादी का मतलब क्या" अब तक सीख नहीं पायी केंद्र सरकार<a href="http://hamargam.blogspot.com/2012/01/blog-post_28.html">vinod mishra ka blog: "आज़ादी का मतलब क्या" अब तक सीख नहीं पायी केंद्र सरकार</a>bakwas reporthttp://www.blogger.com/profile/12100394842727069707noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5622026231418338165.post-64481533562694710342012-01-08T21:04:00.000+05:302012-01-08T21:04:18.103+05:30vinod mishra ka blog: सावधान आप उत्तर -प्रदेश में है !<a href="http://hamargam.blogspot.com/2012/01/blog-post.html">vinod mishra ka blog: सावधान आप उत्तर -प्रदेश में है !</a>bakwas reporthttp://www.blogger.com/profile/12100394842727069707noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5622026231418338165.post-53972981311064900262011-09-11T07:33:00.000+05:302011-09-11T07:33:44.949+05:30धमाके में देसी साजिश खोजिये गृहमंत्री जी .....<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjepCXZIIA8UkEmctva6rlI_tFiPgCdRGhcU1UjpVAi3raFQ58zkR_X_goRycM1_W-XkAXVuCLXqEjHBEk-T67frI-Rs7FCU5yLPSnOsHmN8bpldF-0GUF3URuoAxUD9VFDdE31ZUC-lHY/s1600/delhi+blast2.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="150" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjepCXZIIA8UkEmctva6rlI_tFiPgCdRGhcU1UjpVAi3raFQ58zkR_X_goRycM1_W-XkAXVuCLXqEjHBEk-T67frI-Rs7FCU5yLPSnOsHmN8bpldF-0GUF3URuoAxUD9VFDdE31ZUC-lHY/s200/delhi+blast2.jpg" width="200" /></a></div><div style="text-align: left;"> धमाके जारी हैं ..बहस जारी है ...पिछले सात साल में २७ धमाके ..सैकड़ो लोगों की मौत ..हजारों घायल लेकिन जनता खामोश है .. मनमोहन सिंह सरकार के वरिष्ठ मंत्री सुबोध कान्त सहाय कहते है "लोग अब इन धमाकों के आदी हो चुके हैं.."शायद ये बोम्ब धमाके रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन गए है. दिल्ली हाईकोर्ट धमाके में १२ लोगों की जान गयी और ७० लोग जख्मी हुए .लेकिन इससे पहले भी कई धमाके हुए हैं और नतीजा कुछ भी हाथ नहीं आया .२४ घंटे के खबरिया चैनेल को खबर चाहिए , सरकार की ओर से खबर नहीं मिलेगी तो चैनेल अपने तरीके से खबरों का विश्लेषण करेंगे जाहिर है सरकार मीडिया मनेजमेंट हर समय कुछ न कुछ स्कूप जरूर मुहैया करेगी .ये खबरों का खेल है इसे खेलना सरकार बखूबी जानती है. मनमोहन सिंह की पहली पारी में अलग अलग धमाकों में ४ हजार से ज्यादा लोग मारे गए फिर भी अगले चुनाव में मनमोहन सिंह न केबल सत्ता में दुबारा लौटे बल्कि यह भी साबित कर दिया कि इस देश में आतंकवाद कभी चुनावी मुद्दा नहीं हो सकता और अगर यह कभी मुद्दा नहीं हो सकता तो सरकार की गंभीरता पर सवाल उठाना और ठोस करवाई की उम्मीद करने का हक कम से कम लोगों ने खो दिया है.</div><div style="text-align: justify;"> लगातार हो रहे ब्लास्ट से आहत पत्रकार अमित कुमार कहते है"सरकार और देश के राजनेता यह तय नहीं कर पा रहे है कि वह किसके साथ जाय सरकार के प्रधानमंत्री आतंकवाद से लड़ने का हर बार अज्म दोहराते है .उसी सरकार के एक बड़े नेता आतंक में लिप्त लोगों के लिए जोर शोर से वकालत करते है.लेकिन फिर भी हम अवोध बालक की तरह कुछ ठोस करवाई चाहते है " २६\११ के मुंबई हमले में स्थानीय स्लीपंग सेल की भूमिका को पूरी तरह से नकार दिया गया क्योंकि जांच खास समुदाय के गुमराह लोगों की ओर जा रही थी .क्योंकि ये सियासत का मामला है इसलिए जांच एजेंसी को समझौता करना पड़ा. लेकिन उसी मुंबई में दुबारा धमाके हुए २६ लोग मारे गए लेकिन पुलिस के हाथ कुछ नहीं लगा क्योंकि इन धमाको में एक बार फिर पुलिस ने एक बार फिर बड़ा खुलासा सामने लाया "पाकिस्तान और आई एस आई के इशारे पर धमाके हुए "लेकिन किसने इस धमाके को अंजाम दिया ?कौन लोग इन धमाको में शामिल थे इसे ढूंढ़ पाने में गृह मंत्री चिदम्बरम के एन आई ए और काउंटर टेर्रोरिस्म सेंटर के तमाम विश्लेषण फेल साबित हुए .<br />
शिवराज पाटिल के बाद गृह मंत्री की भूमिका में आये पी चिदम्बरम से देश ने कुछ ज्यादा उम्मीद बाँध ली इसमें चिदम्बरम का क्या कशुर था .चिदम्बरम उसी मनमोहन सिंह सरकार के गृह मंत्री है जो कभी शिवराज पाटिल हुआ करते थे.फर्क सिर्फ इतना है चिदम्बरम अंग्रेजी बोलते है और प्रोफेसनल दिखते है.लेकिन पाटिल जी ने यह पहले साफ कर दिया था कि वे गृह मंत्री किसी काबिलियत के कारण नहीं बने है बल्कि ये सोनिया जी की कृपा है.यही बात कमोवेश प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बारे में भी कही जाती है.यानी सरकार और पार्टी कौन चला रहे है?इस व्यवस्था पर नारायणमूर्ति सवाल उठा चुके है . आतंकवाद से लड़ने के तमाम इरादे क्यों असफल रहे इसका जवाब खुद मनमोहन सिंह के पास भी नहीं है. </div><div style="text-align: justify;"> लेकिन इसका जवाब किसी राजनेता के पास भी नहीं है.दिल्ली बम धमाके के महज चंद घंटे के बाद संसद में चर्चा में भाग लेते हुए मुलायम सिंह ने सरकार को चेताया कि जाँच में किसी खास समुदाय के लोगों की धड्पकड़ रोकनी होगी .यानी मुलायम धमाके में पीड़ित लोगों के सांत्वना के दो शब्द में भी अपने वोट बैंक को नहीं भूलते .इस हालत में वोट बैंक को लेकर सियासत करने वाली कांग्रेस से ज्यादा उम्मीद करना बैमानी होगी. बीजेपी की हालत यह है कि आतंकवाद पर बोलते ही पहला निशाना उसका मुसलमान होता है. बीजेपी जिस दिन आतंकवाद के मुद्दे पर मुसलमानों का भरोसा जीत लेगी उस दिन यह पार्टी देश में सबसे बड़ा जनाधार वाली पार्टी होगी लेकिन वह ऐसा कर नहीं पाएगी . भ्रष्टाचार को देश की संस्कृति मानने वाले लोगों को अन्ना हजारे का आन्दोलन ने गलत साबित किया है और इसे पुरे देश में एक मुद्दा बना दिया है.आतंकवाद के खिलाफ देश को जगाने के लिए एक और अन्ना की दरकार है.</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><br />
<div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><br />
</div></div><div style="text-align: left;"></div></div>vinod kumar mishrahttp://www.blogger.com/profile/10008067258866717206noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5622026231418338165.post-73039099859530212962011-06-02T12:54:00.000+05:302011-06-02T12:54:17.923+05:30बाबा रामदेव का सर्कस ,टिकट बेचेगी सरकार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<div style="text-align: left;"><div class="separator" style="clear: both; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEit5yQm30Vhc9-NycIwFmexncsBPAxvzzyUX5L0KTYzBVZuEhU_JnRioNu8tdsQw0yq61AYa8OyPHKBzsr18MgYKH-eXbtQbON_NIJ_nJMzA_379KNu2DyTqVU0RD40NOvDa-fbvoVUwPs/s1600/baba.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEit5yQm30Vhc9-NycIwFmexncsBPAxvzzyUX5L0KTYzBVZuEhU_JnRioNu8tdsQw0yq61AYa8OyPHKBzsr18MgYKH-eXbtQbON_NIJ_nJMzA_379KNu2DyTqVU0RD40NOvDa-fbvoVUwPs/s1600/baba.jpg" style="cursor: move;" t8="true" /></a></div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;">२४ घंटे के खबरिया चैनल में सिर्फ बाबा रामदेव .अंग्रेजी सहित दूसरी भारतीय भाषा के अख़बारों में सिर्फ बाबा रामदेव .यानी खबरों का सरोकार इनदिनों बाबा रामदेव से है जो १अरब १२ करोड़ जनता की सरकार को धमका रहे है .केंद्र की हर दिल अजीज और लोकप्रिय यु पी ए सरकार जिसे दुबारा सत्ता में आने का मौका देश की जनता ने दिया वह एक अदना सा बाबा के सामने गिरगिरा रही है .बाबा रामदेव भ्रष्टाचार और कालाधन के खिलाफ राजधानी दिल्ली में आमरण अनशन करने वाले है लेकिन नींद सरकार की उडी हुई है .नेहरु जी और इंदिरा जी के बाद मनमोहन सिंह तीसरे कांग्रेसी प्रधानमंत्री है जिन्होंने देश पर ७ साल से अधिक राज किया है लेकिन एक अदना सा बाबा जिसकी बाजीगरी सांस तेज खीचने में है उसने प्रधानमंत्री की साँसे अटका दी है .प्रधानमंत्री बाबा को मनाने के लिये चिठ्ठी लिख रहे है .आयकर विभाग से लेकर इ डी के आला अधिकारी कालाधन और आयकर चोरी का रहस्य और सरकार की मजबूरी से बाबा को अवगत करा रहे है .लेकिन बाबा तो बाबा है टी वी के जरिये पूरी दुनिया को अबतक योग रहस्य बताते रहे है अब उसी टीवी के जरिये वो लोगों को कालाधन का रहस्य बताने सामने आये है लेकिन सरकार उन्हें यह मौका नहीं देना चाहती है सो बाबा की दिल्ली एअरपोर्ट पर आने की खबर सुनते ही सरकार के आलामंत्री और संकटमोचक प्रणव मुखर्जी बाबा को घेरने एअरपोर्ट पहुँच गए .जो सरकार आम लोगो से बात करने के लिए तैयार नहीं है ,जो सरकार महगाई जैसी अहम् समस्या पर जनता की मांग को अबतक दरकिनार करती रही है वही सरकार बाबा से बात करने दौर लगा रही है .ये बाबा का रहस्य है या कलाधन का लेकिन जंतर मंतर का खोफ सरकार पर आज भी सर चढ़ कर बोल रहा है .</div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;">भ्रष्टाचार के दल दल में फसे एक तथाकथित इमानदार प्रधानमंत्री की ये हालत किसने की है .माननीय अदालतों ने ,देश के बुद्धिजीवियों ने या फिर एन जी ओ ने ?जाहिर है पहले सोनिया जी का एन जी ओ राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् ने सरकार का कद छोटा किया तो दुसरे एन जी ओ वाले ने सरकार और संसद के अस्तित्व पर ही सवालिया निशान लगा दिया .पेट्रोल प्राइस की बात हो या सब्सिडी की या फिर लोकपाल बिल की बात हो या फ़ूड सिक्यूरिटी की या फिर सांप्रदायिक दंगा विरोधी बिल राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् के विद्वान सदस्य अपना वीटो पेश करके मंत्रीपरिषद् के निर्णयों को प्रभावित करते है .जाहिर है यह सोनिया जी का एन जी ओ है सो सरकार इसे लगभग सरकारी मसौदा मान लेती है .लेकिन अन्ना हजारे और अरविद केजरीवाल का एन जी ओ जब लोकपाल बिल पर अपना सुझाव सामने लाता है तो इसे पहले दरकिनार करने की कोशिश की जाती है .लेकिन पहलीबार देश के विभिन्न एन जी ओ ने दिखाया है कि वह सरकारी एन जी ओ पर भरी है क्योंकि सरकार से लोगों का भरोसा उठ चूका है ..राजधानी दिल्ली स्थित जंतर मंतर महज दो दिनों के अंदर तहरीर चौक का रूप ले लेगा, ऐसा अंदाजा न तो सरकार को था न ही आन्दोलनकारी को ऐसा यकीन था . अन्ना हजारे का आमरण अनसन महज ५२ घंटे में राष्ट्रव्यापी आन्दोलन बन गया .हर शहर के चौक चौराहे पर भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों की उमड़ी भीड़ सरकार को यह बता रही थी ,कि सब्र का पैमाना अब टूट चूका है .</div></div><div style="text-align: left;"><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;">गांधी के इस देश में आम लोगों का सरोकार सरकार से कितना है इसे इस सन्दर्भ में समझा जा सकता है .केंद्रीय बजट के रूप में सरकार हर साल ११-१२ लाख करोड़ रूपये का लेखा -जोखा प्रस्तुत करती है .मुल्क की प्रान्तों की सरकार भी हर साल २३-२५ लाख करोड़ रूपये खर्च करती है .यानी जिस देश में सरकारें ३५-३७ लाख करोड़ रुपया खर्च करती हो और वहां की ७० फीषद आवादी की आमदनी २० रुपया हो तो यह माना जा सकता है कि मुल्क के राजनेताओ और नौकरशाहो ने दलालों के जरिये आम लोगों के हिस्से को लूट लिया है .बाबा रामदेव आज यही बात लोगों को समझाने में कामयाब हुए है कि लूट के पैसे सरकार वापस लाती है तो यह मुल्क इंग्लॅण्ड और अमेरिका को भी पीछे छोड़ सकता है .बाबा रामदेव न तो कोई अर्थशास्त्री है न ही कभी जाँच एजेंसी से उनका सरोकार रहा है लेकिन वो दावा करते है कि सरकार उनकी बात माने तो वेदेशो में रखे ५०० खरब रुपया भारत वापस लाया जा सकता है .सरकार की मजबूरी यह है कि वह रोज सुप्रीम कोर्ट में कालाधन के मामले में फटकार सुन रही है लेकिन सूचि को सार्वजानिक करने को तैयार नहीं है .बाबा रामदेव सरकार की कमजोरी जान चुके है .लेकिन बाबा को पता है दवाब में आकर सरकार ने पहले अन्ना हजारे को संसद से भी महान बना दिया लेकिन आज सरकार के मंत्री उन्हें धमका रहे है .बाबा रामदेव यह भी जानते है कि कल तक सरकार दिग्विजय सिंह को अनाप सनाप बयान देने के लिए खुल्ला छोड़ दिया था .दिग्विजय सिंह हर मंच से बाबा को ललकार रहे थे लेकिन आज देश के प्रधानमंत्री उन्हें खुद पुचकार रहे है .बाबा सियासत और कांग्रेस की चाल से पूरी तरह वाकिफ है .</div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;">लेकिन सवाल यह है देश के संसद से महज ५०० मीटर की दुरी पर स्थित जंतर मंतर पर कुछ एन जी ओ के अनसन से सरकार इतना क्यों विचलित हो उठती है कि कानून बनाने का जिम्मा सांसदों से छीन कर एन जी ओ वाले को दे दिया जाता है .कलाधन के मामले में सरकार संसद में चर्चा से बचती है लेकिन बाबा रामदेव से इसी मुद्दे पर चर्चा के लिए ऐयेरपोर्ट पर दौर लगाती है .सरकार इखलाख से चलती है, सरकार भरोसे से चलती है, सरकार लोगों से संवाद बना कर चलती है .अगर यह सरकार में नहीं है तो माना जायेगा कि यह सरकार किसी के लिए चलायी जा रही है जिसका देश से कोई संवाद नहीं कोई सरोकार नहीं है .बाबा रामदेव के भारत स्वाभिमान परिषद् और सोनिया जी के राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् के बीच फसी यह सरकार को तय करना होगा कि वह किसके साथ है .</div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; text-align: left;"><br />
</div></div></div>vinod kumar mishrahttp://www.blogger.com/profile/10008067258866717206noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5622026231418338165.post-66851172874334853952011-03-19T12:21:00.000+05:302011-03-19T12:21:14.716+05:30जापान का ब्रेकिंग न्यूज़<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: xx-small;"><b><span style="font-family: 'Kruti Dev 010'; font-size: 18pt;">Tkkiku dk czsfdax U;wt</span></b></span></div><div style="text-align: left;"></div><div class="MsoNormal" style="font-family: arial; font-size: small; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; text-align: justify;"><b><span style="font-family: 'Kruti Dev 010';">iadt pkS/kjh</span></b></div><div class="MsoNormal" style="font-family: arial; font-size: x-small; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; text-align: justify;"><b><span style="font-family: 'Kruti Dev 010'; font-size: 18pt;"><div style="clear: both; text-align: center;"></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEipsVB4EWUUnfP6sIKl88gNhFxkkYKcFPfRFBDAY533MVSZZ1IZ7TaaWb_3J6HZEuzQ9lpUvr6psoIiffVzY5wBR-9oKTnVa7X6qw3U0Bx4Eh4UqYLSzPIwFOsVezKg2OfMPhhdPJu_0II/s1600/japann.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="150" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEipsVB4EWUUnfP6sIKl88gNhFxkkYKcFPfRFBDAY533MVSZZ1IZ7TaaWb_3J6HZEuzQ9lpUvr6psoIiffVzY5wBR-9oKTnVa7X6qw3U0Bx4Eh4UqYLSzPIwFOsVezKg2OfMPhhdPJu_0II/s200/japann.jpg" width="200" /></a></div><div>,d uUgk lk ns”kA vkSj dqnjr dk bruk Øwj izgkj A “kjhj flgj mBrk gS ;s lksp dj fd ;s dSlh =klnh gS A rkdroj Hkwdai ds >Vds ] ml ij lqukeh ygjksa dk dgj vkSj vc ijek.kq fj,DVjksa ds ?kekdsA ;s lc ns[kdj ,glkl gqvk fd balku vHkh fdruk NksVk vkSj detksj gSA ,d fodflr eqYd us lqukeh ij yxke yxkkus ds fy, leanj ds fdukjs nhokj [kMh dj nh A ysfdu ;s nhokj Hkh dqnjr ds dgj ds lkeus jsr ds ?kjkSanksa dh rjg Hkld xbZA ml leqnzh jk{kl ds lkeus lkjh izxfr ?kjh dh ?kjh jg xbZA<span> </span></div></span></b></div><div class="MsoNormal" style="font-family: arial; font-size: x-small; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; text-align: justify;"><b><span style="font-family: 'Kruti Dev 010'; font-size: 18pt;">tkiku dh<span> <span> </span></span>;s =klnh u rks<span> <span> </span></span>nqfu;k ds fy, ubZ gS vksSj uk gh [kqn tkiku ds fy,A rdjhcu 66 lky ckn tkiku fQj ,d ckj ,d Hk;kog fLFkfr ls<span> <span> </span></span>:c: gSA ml nkSj esa =klnh ekuoh; Fkh rks bl nkSj esa ;s dqnjrh gSA<span> </span></span></b></div><div class="MsoNormal" style="font-family: arial; font-size: x-small; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; text-align: justify;"><br />
</div><div class="MsoNormal" style="font-family: arial; font-size: x-small; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; text-align: justify;"><b><span style="font-family: 'Kruti Dev 010'; font-size: 18pt;">Ysfdu ?kS;Zoku tkiku dks uofuekZ.k dh vknr vkSj vuqHko gSA bl foHkhf’kdk dks tkiku us le> fy;k gS vkSj vc laHkyus dh rS;kjh esa tqV pqdk gSA “kj.kkFkhZ f”kfojksa esa ftl rjg dh ifjiDork utj vk jgh gS mlls rks ;gh dgk tk ldrk gS fd vc tkiku eqM+ dj ugha ns[k jgk A ladV ls mcjus ds fy, vc oks dej dl eSnku esa mrj pqdk gSA</span></b></div><div class="MsoNormal" style="font-family: arial; font-size: x-small; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; text-align: justify;"><br />
</div><div class="MsoNormal" style="font-family: arial; font-size: x-small; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; text-align: justify;"><b><span style="font-family: 'Kruti Dev 010'; font-size: 18pt;">ljdkj ] vkRej{kk nLrksa vkSj lsuk ds vykos tkikuh lekt ds ftl oxZ us lw>&cw> vkSj ifjiDork dk ifjp; fn;k gS oks gS && ogkWa dh fefM;kA u gh dksbZ luluh QsykbZ vkSj u gh fry dks rkM+ cuk;kA dkQh la;r vkSj vu”kkflr gks lekt ds izfr viuh ftEesnkjh dk fuokZg dj jgs gSaA<span> <span> </span></span>vc ejus okyksa dh la[;k ds ckjs esa gh tkikuh fefM;k dh Hkwfedk ns[ksa&&vHkh rd os viuh fjiksVksZa esa ljdkjh vkadM+ksa dks gh “kkfey dj jgs gSA tkikuh fefM;k fjiksVksZa esa vHkh Hkh ejus okyks dh la[;k 2000 ls mij ugha xbZ gSA ysfdu Hkkjrh; fefM;k esa vVdyckth dk nkSM+ cnLrwj tkjh gSA tkiku esa e`rdksa dh la[;k dks ysdj ftruk Hkkjrh; [kcfj;k pSuy ijs”kku gS mruk tkikuh fefM;k ugha A fnu Hkj esa dbZ ckj cszfdax U;wt ds lkFk e`rdks ds vkdM+s crk, tk jgs gS && dHkh 800 rks dHkh 3000 rks dHkh 10]000A</span></b></div><div class="MsoNormal" style="font-family: arial; font-size: x-small; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; text-align: justify;"><br />
</div><div class="MsoNormal" style="font-family: arial; font-size: x-small; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; text-align: justify;"><b><span style="font-family: 'Kruti Dev 010'; font-size: 18pt;">cspkjh Hkkjrh; ehfM;k ds ikl vkadM+ksa dh ckthxjh ds flok vkSj dksbZ jkLrk Hkh ugha cpk gSA bruh cM+h =klnh ] egkizy; dh ,d >yd vkSj Hkkjrh; fefM;k ,d e`r “kjhj Hkh ugha fn[kk ikbZA bldh [kkl otg ;s gS fd bl Hkwdai ls lacaf/kr lkjs dojst ds fy, mUgas tkikuh pSuyksa [kkldj ,u +,p +ds ij fuHkZj gksuk iMkA vkSj fQj ,u,pds dks rks [kcj fn[kkuh Fkh ] dksbZ Vh+vkj+ih ds va?kh jsl esa “kkfey ugha gksuk gSA crkSj ,d ftEesnkj pSuy oks yxkrkj bl foHkhf’kdk dks fn[kkrh jgh ] ysfdu mlds fdlh Hkh fjiksVkZt ls ;s ugha yxk fd oks luluh QSyk jgh gSA<span> <span> </span></span>e`r “kjhj dk dksbZ QqVst ugha] dksbZ Dykst &vi ugh ] vkSj fdlh Hkh QqVst dks pykus ls igys ;s ?kks’k.kk ugha gqbZ fd ;s rLohj fopfyr djus okys gSa&&& bls flQZ etcwr fny okys gh ns[ksaA</span></b></div><div class="MsoNormal" style="font-family: arial; font-size: x-small; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; text-align: justify;"><br />
</div><div class="MsoNormal" style="font-family: arial; font-size: x-small; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; text-align: justify;"><b><span style="font-family: 'Kruti Dev 010'; font-size: 18pt;">tkiku =klnh dks ns[k eq>s Hkqt dk HkqdEi ;kn vk tkrk gSA vkt Hkh Le`fr & iVy ij Hkqt dh rLohjs rkth gSA [kkl rkSj ij tkiku HkwdEi ds ckn rks os ?kqa?kyh rLohjsa fcYdqy lkQ gks xbZ gSA eq>s ;kn gS fd ge Vhoh i=dkj flQZ e`rdksa dks fn[kkus ds fy, csrkc FksA Vzdks ij yknrs yk”k ] edkuksa rys ncs fdlh ihfM+r dk QqVst fey tk; rks ,d lQy fefM;kdehZ gksus dk naHk lkQ & lkQ pagjs ij >yd tkrk FkkA dN Vhoh i=dkj rks brus mRlkgh Fks fd edku rys ncs fdlh ihfM+r dks ns[kk rks >ViV ekbZd mlds eqWag ds ikl yxkk;k vkSj iwN cSBs fd && vkidks dSlk yx jgk gSA<span> <span> </span></span>nwljk loky rks t[e ij ued jxM+us tSlk Fkk && vHkh rd dqN enn igqWaph ;k ughaA ogkWa ge Ik=dkj yk”kksa ds <span> </span></span></b></div><div class="MsoNormal" style="font-family: arial; font-size: x-small; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; text-align: justify;"><br />
</div><div class="MsoNormal" style="font-family: arial; font-size: x-small; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; text-align: justify;"><b><span style="font-family: 'Kruti Dev 010'; font-size: 18pt;">dgus dh t:jr ugha fd lekpkj dojst dh ;s izfØ;k dgha u dgha ;g fn[kkrh gS fd ge fdruk fu’Bqj gks x, gSaA laokn laizs’k.k dh vkik&?kkih<span> <span> </span></span>esa ge laosnuk gh [kks cSBs gSA<span> <span> </span></span>pkgs og uDlyh vkrad gks ;k fQj izkd`frd foink &&<span> <span> </span></span>{kr&fo{kr “kjhj vkSj jDrjaftr tehu fn[kkus esa “kk;n gesa viuh dke;kch dk ,glkl gksrk gSA ;gkWa rd fd vkradokfn;ksa ds lkFk eqBHksM+ esa “kghn gq, tokuksa ds<span> <span> </span></span>“kjhj ds izfr Hkh ge lEeku ugha fn[kk ikrs gSaA</span></b></div><div class="MsoNormal" style="font-family: arial; font-size: x-small; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; text-align: justify;"><br />
</div><div class="MsoNormal" style="font-family: arial; font-size: x-small; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; text-align: justify;"><b><span style="font-family: 'Kruti Dev 010'; font-size: 18pt;">geus 9@11 dks ns[kk && oYMZ VzsM lsaVj ?kjk”kk;h gks x;k] gtkjksa &gtkj yksx ekjs x, && ysfdu vejhdh fefM;k us ,d Hkh e`r “kjhj ugha fn[kk;kA fon”kh ehfM;k ,d rjg ls Lo&?kksf’kr vuq”kklu ds rgr ca/ks gq, gSa fd os fdlh Hkh foink ds ckn e`r “kjhj ugha fn[kk,axsA vkSj ;g ,d vge QSlyk gSA ;s cgqr t#jh gksrk gS fd ladV dh ?kM+h esa jk’Vª vkSj lekt dk eukscy uk rksM+k tk,A foink dh bl ?kM+h esa tkiku dh ehfM;k ftl rjg ekuoh; ljksdkj<span> <span> </span></span>dsk vkxs c<+k jgh gS mlls ges cgqr dqN lh[kus dh t:jr gSA [kkldj uktqd ekSds ij ftl rjg tkikuh ehfM;k lsonu”khy gksdj [kcjks dks nqfu;k ds lkeus yk jgh gS oks dkQh dkfcys rkjhQ gSA HkqdEi ] lqukeh vkSj ijek,kq fofdj.k ds vkrad ds chp Hkh tks [kcj tkikuh fefM;k fn[kk jgh gS oks fnyks&fnekx dks dkQh “kqdwu igqWapk jgh gSA pkj fnuksa ckn ,d uUgha cPph dk vius firk ls feyuk ] vkRe&j{kk nLrksa dk cpko dk;Z esa te dj tqV tkuk ] “kj.kkFkhZ f”kfojksa esa cPpksa dh mNy&dwn vkSj cqtqxksZa dk O;k;ke A ;s lkjh [kcjsa fuLlansg lekt ij ,d ldkjkRed euksoSKkfud vlj Mkyrh gS A eu esa fo”okl vkSj jxksa esa lkgl Hkjrk gSA</span></b></div><div class="MsoNormal" style="font-family: arial; font-size: x-small; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; text-align: justify;"><b><span style="font-family: 'Kruti Dev 010'; font-size: 18pt;"><span> </span></span></b></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEioQWdAySa7DDYL_AqwkPzaSQFCs0FYSN5nJmKYyf1poK_cj0-itJwxFsWY_cbGxqX-ARxyTQ5x_rQsFdfdOz8jTHcwGsfhnPYBsaCAE3ZOOMwyBHs-VhF75jaivvcOzwOC2V0afPsg6aw/s1600/japan.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;" target="_blank"><img border="0" style="cursor: move;" /></a></div><div class="MsoNormal" style="font-family: arial; font-size: x-small; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; text-align: justify;"><b><span style="font-family: 'Kruti Dev 010'; font-size: 18pt;">D;k czsfdax U;wt ds chp thus okys Hkkjr ds [kcfj;k pSuyksa<span> <span> </span></span>dks<span> <span> </span></span>tkikuh ehfM;k ds bl vkRe&la;e ls dqN lh[k ysus dh t#jr ugha gSA<span> <span> </span></span>[kkldj ,sls ekgkSy esa tc gekjs [kcfj;k pSuyksa ds fy, fdzdsV ds [ksy esa cYysckt dk vkmV gksuk Hkh cszfdax U;wt gSA</span></b></div></div>vinod kumar mishrahttp://www.blogger.com/profile/10008067258866717206noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5622026231418338165.post-67566535158646898092011-03-07T15:45:00.000+05:302011-03-07T15:45:21.929+05:30किसका पाकिस्तान, मुल्लाओ का या जमींदारों का ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<div class="separator" style="clear: both; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhJPTHOqDiQO5ySHqU2taCcOalX1mqnJtEmkoISfcWrdTrIe00StyA9PHdcMfvsaDviC-UxvYs6vNymv6rRMg3tk0t7f0EjGrK-RoKiQNSbCFB_n8cpuHPDgV_euxiBTSg-MjQnIJ5OcgU/s1600/pakistan.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="132" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhJPTHOqDiQO5ySHqU2taCcOalX1mqnJtEmkoISfcWrdTrIe00StyA9PHdcMfvsaDviC-UxvYs6vNymv6rRMg3tk0t7f0EjGrK-RoKiQNSbCFB_n8cpuHPDgV_euxiBTSg-MjQnIJ5OcgU/s200/pakistan.jpg" style="cursor: move;" width="200" /></a></div><div style="text-align: left;"><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><span style="font-size: small;">सस्ता खून और महगा पानी पाकिस्तान में कहाबत नहीं बल्कि जीवन की हकीकत है .पुरे मुल्क में खुनी खेल का सिलसिला जारी है .आम आदमी मारे जा रहे है तो वी आई पी भी ..ब्लासफेमी लाव की मुखालफत के नाम पर गवर्नर सलमान तासीर की मौत हो चुकी है तो फेडरल मिनिस्टर शाहबाज भट्टी को भी मौत की नींद सुला दिया गया है .सलमान तासीर की हत्या उनके बॉडी गार्ड ने की तो शाहबाज की हत्या पाकिस्तान के तालिबान ने .यानी मुल्क में आज कुख्यात इश निंदा कानून के पैरोकार मुल्ला - मिलिट्री और दहशतगर्द तंजीमो के सामने सरकार और समाज ने घुटने टेक दिए है .हालत को इस तरह समझा जा सकता है की एक गवर्नर की मौत पर कोई दो शब्द सहानुभूति के भी नहीं आये .मुल्क के सद्र और वजीरे आजम ने सलमान की मौत पर चुपी साध ली तो मुल्लाओं ने उनके आखरी रसुमात पर किसी मौलबी को भी नमाज पढने की इज़ाज़त नहीं दी और कातिल कादरी पर फूल बरसाए गए .यही हाल कमोवेश शाहबाज भट्टी को लेकर भी था .लेकिन एलिट क्लास के लोगों की बर्बर हलाकत और पाकिस्तान में समाज की अनदेखी कुछ अलग कहानी वया कर रही है .</span></div></div><div style="text-align: left;"><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><span style="font-size: small;">१९०६ में पहलीबार आल इंडिया कांग्रेस के सामने मुस्लिम जमींदारो ,राजे राज्बारों ने मुस्लिम लीग के नाम से एक अलग पार्टी वजूद में लाया .मकसद था कांग्रेस की सियासत की धार कमजोर करना .मुल्क के एलिट मुस्लिम क्लास का इन्हें भारी समर्थन हासिल हुआ लेकिन आम मुसलमान और उनके सियासी रहनुमा कांग्रेस से जुड़े रहे .मुस्लिम लीग के कद्दावर नेता मो अली जिन्ना ने खुद शुरुआती दौर में मजहब के नाम पर अलग पार्टी का विरोध किया था .लेकिन ये अलग बात है की १९३४ में जब मुल्क के एक बड़े जमींदार चौधरी रहमत ने एक अलग मुल्क पाकिस्तान का नाम वजूद में लाया तो जिन्ना उस मजहबी सियासी धारे से अपने को अलग नहीं कर सके .मुल्क के जमींदार मुसलमानों को यह अंदेशा था कि आज़ादी मिलते ही उनका वजूद खतरे में पड़ जाएगा सो उन्होंने कांग्रेस के तेज तर्रार नेता मो अली जिन्ना को अपने साथ लिया .तारीख में झाँकने की जरूरत इसलिए है कि जिन लोगों ने अपने लिए पाकिस्तान बनाया आज वही पाकिस्तान उन्हें हाशिये पर खड़ा कर दिया है .पाकिस्तान के अस्तित्व में आने के ठीक एक साल बाद ही कायदे आज़म को यह एहसास हो गया था कि यह फैसला उनके जीवन की सबसे बड़ी भूल थी .लेकिन बाकी एलिट क्लास को यह समझने में थोडा वक्त लगा कि मजहब की सियासी बुनियाद काफी कमजोर होती है .</span></div></div><div style="text-align: left;"><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><span style="font-size: small;"> </span><span style="font-size: small;">१९४७ से लेकर आज तक पाकिस्तान की हुकूमत यह तय नहीं कर पायी है कि मुल्क की दिशा और दशा क्या होनी चाहिए ?. कभी सामन्ती और पढ़े लिखे लोगों का नेतृत्व इस्लाम के नाम पर अपनी सत्ता मजबूत करने की कोशिश करता है तो बंगलादेश के नाम से अलग मुल्क का संघर्ष इस्लाम के नाम पर मुल्क की अवधारणा को गलत साबित करती है . कभी पाकिस्तान मे इलीट फौज कश्मीर का बहाना बनाकर पाकिस्तान मे अपनी सत्ता मजबूत करता है ,तो कभी भारत के खिलाफ नफरत फैला कर वही इलीट जनरल जिहाद की वकालत करता है . १९८५ के दौर मे जनरल जिया ने अमेरिका का साथ लेकर मुल्ला और मिलिट्री का एक गठजोड़ बनाया और पुरे पाकिस्तान में हर आम और खास को बम और बारूद सुलभ बना दिया . इस दौर मे आतंकवादियों का एक दो नहीं ५० से ज्यादा संगठन बने जिन्हें पाकिस्तान में फलने -फूलने की पूरी छूट दी गयी . पाकिस्तान का हर मस्जिद और मदरसे इनके गिरफ्त में आ गये जहाँ नफरत की फसल तैयार होने लगी .जिनका इस्तेमाल कभी अफगानिस्तान में किया गया तो कभी जिया के दहशतगर्दों को भारत के खिलाफ झोंक दिया गया . इन वर्षों में इन सरकारी दहशतगर्दों ने सिर्फ भारत में ही २०००० से ज्यादा लोगों की जान ली . लेकिन चुकी पाकिस्तान ने इन दहशतगर्द करवाई को कश्मीर की आज़ादी के साथ जोड़ रखा था ,इसलिए दुनिया ने इसे आतंकवादी कहने के वजाय इन आतंकवादियों को फ्रीडोम फाइटर का दर्जा दे रखा था . लेकिन ९\११ के अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेण्टर पर हुए आतंकवादी हमले ने दुनिया को एहसास कराया कि आतंकवाद को अलग अलग चश्मे मे देखने की वजह से ही पाकिस्तान मे जेहादियों को फलने फूलने का मौका दिया है .पाकिस्तान से निकलकर अब जेहादी पश्चिम के मुल्कों में निज़ामे मुश्तफा का परचम फहराने लगे है . आतंकवाद के खिलाफ पश्चिम के मुल्को खासकर अमेरिका के सख्त रबैये ने पाकिस्तान की रणनीति को गड़बड़ा दिया और अब वहा की हुकूमत और आतंकवादी आमने सामने है ..लेकिन जनरल जिया के ब्लासफेमी लाव पुरे समाज को तिल तिल कर मरने पर मजबूर कर दिया है .यानी इस कानून को अपना कारगर हथियार बनाकर बुनियाद परस्त तंजीमो ने सिविल सोसाइटी और हुकूमत के मुह बंद कर दिए है .खुद जनरल कियानी आज अगर यह मान रहे है कि सलमान तासीर और भट्टी की हलाकत की सार्वजानिक निंदा नहीं की जा सकती है .यानी पाकिस्तान में कानून का कम और बन्दूक का जोर ज्यादा है ..</span></div></div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><span style="font-size: small;"> जिस विष बेल को पाकिस्तान ने बड़ा किया वही आज पाकिस्तान को डस रहा है . इस्लामाबाद से लेकर लाहोर तक पेशावर से लेकर कराची तक पाकिस्तान का शायद ही कोई शहर है जो आतंकवादी हमले से लहुलाहन न हो . रावलपिंडी का आर्मी हेड कुआटर से लेकर लाहोर का पुलिस छावनी ,आई एस आई के दफ्तर से लेकर मस्जिद तक हर प्रतिष्ठान धमाको से दहल रहा है . इस्लामिक देश पाकिस्तान मे शिया , आतंकवादी के निशाने पर है तो मस्जिद मे नमाज अदा करने आये नमाजी जब तब आतंकवादियों के धमाके के शिकार हो जाते है . पिछले वर्षो में १०००० से ज्यादा आम शहरी पाकिस्तान की बुनियाद परस्त सियासत के शिकार हो चुके है लेकिन पाकिस्तान में इंतजामिया और फौज किसी बड़े विद्रोह की आशंका के कारण खामोश तमाशबीन बनी हुई है .क्या पाकिस्तान की ये हालत वाकई किसी पडोशी मुल्क के लिए खुशखबरी हो सकती है ?</span></div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><span style="font-size: small;">अमेरिकी नागरिक रेमन डेविस के बहाने पाकिस्तान की बुनियाद परस्त तंजीमे अमेरिका का मुहं चिढ़ा रही है .डेविस की रिहाई को लेकर अमेरिकी दवाब पाकिस्तान में बेअसर साबित हो रहे है .यह उस अमेरिका की हालत है जिसकी मदद से पाकिस्तान का अर्थशास्त्र कायम है .हर साल अमेरिका ३-४ बिलियन डालर की मदद पाकिस्तान को देता है शायद इस भ्रम में कि पाकिस्तान उसे अफगानिस्तान के पचड़े से उबार लेगा .लेकिन अमेरिका खुद पाकिस्तान में फसता नज़र आ रहा है .</span></div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><span style="font-size: small;">अल्लाह -आर्मी और अमेरिका पाकिस्तान की सियासी -समाजी जिन्दगी का अहम् हिस्सा रहा है .मौजूदा दौर में इलीट क्लास के घटते रसूख के कारण अमेरिका का असर कमजोर होने लगा है .निम्न और मध्यम वर्ग ईश निंदा कानून के जनून में इस कदर मस्त है कि वह सब कुछ कुर्बान करने को तैयार है .यानी ब्लासफेमी लाव ने मुल्लाओ को एक कारगर हथियार दे दिया है और वह इस हथियार से पुरे समाज को हांक रहा है .पाकिस्तान के दानिश्वर और संपन्न तबका या तो पाकिस्तान से रुखसत कर गए है या फिर मुर्दों की ख़ामोशी अख्तियार कर ली है .मजहबी जनून के सामने मुल्क के तमाम इदारे बौने साबित हुए है .लेकिन पूरी दुनिया खामोश है शायद इस भ्रम में कि इस समस्या का हल अमेरिका ढूंढेगा .आज पुरे अरब वर्ल्ड में तानाशाहों ,राजे रजवारों के खिलाफ जबरदस्त मुहीम चल रही है .जन आन्दोलन की इस आंधी में कई तानाशाह धरासायी हो चुके है तो कई तानाशाह वक्त का इंतजार कर रहे है लेकिन अरब वर्ल्ड में यह जनांदोलन मजहबी नहीं बल्कि इसका आधार आर्थिक है लेकिन इसके उलट पाकिस्तान में एक कट्टरपंथी आन्दोलन जबरन अपने साथ पुरे समाज को प्रभावित कर रहा है .और जर्जर तबाह पाकिस्तान की हालत से लोगों का ध्यान हटा दिया है . तो क्या यह इंतजामिया की साजिश है ? </span></div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><span style="font-size: small;">पाकिस्तान में मकबूल तमाम इस्लामिक नजरिये का केंद्र भारत रहा है .देवबंदी से लेकर बरेलवी तक अहले हदीश से वहाबी तक तमाम विचारधाराओं का जन्म भारत के ही शहरो में हुआ था .लेकिन भारत के सेकुलर धारा में इन नजरिये का कभी भी बेजा इस्तेमाल नहीं हुआ जाहिर है पाकिस्तान में जरी संकीर्ण मजहबी बहस में भारत के प्रतिष्ठित इदारे पाकिस्तान को इस संकट से बाहर निकाल सकता है .लेकिन पाकिस्तान में जिस कदर मजहबी कट्टरता सामाजिक ताने वाने को विगाड रही है .सत्ता शीर्ष पर बैठे लोग खामोश बने बैठे .इस हालत में भारत के सामने यह बड़ी चुनौती होगी कि वह किसके साथ संवाद जोड़े .पाकिस्तान में सरकार के वजूद पर पहले ही आर्मी और मुल्लाओ ने पहले ही सवालिया निशान लगा दिया था .फौज से भारत का कोई संवाद नहीं है लेकिन सत्ता पर कविज होने के लिए फौज एक बार फिर मौका ढूंढ़ रही है लेकिन इस बार आर्मी के साथ अल्लाह जरूर है लेकिन अमेरिका नहीं है .....</span></div><div style="text-align: left;"><br />
</div></div>vinod kumar mishrahttp://www.blogger.com/profile/10008067258866717206noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5622026231418338165.post-90396214773837175842011-02-13T14:24:00.000+05:302011-02-13T14:24:37.328+05:30आओ दिल्ली मे एक तहरीर चौक बनायें<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<div class="separator" style="clear: both; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEijFslmOBo_r4SD-hnzQrhEh02Db4_i8RBpPIKii0yhBMiJ4DEDH4iB2fDqJm3chIPsDzuqdlaoe8QlP4WFSSmVz1xSxvK99_IxoaITCVUbHbwh_MXl8PDgWER84yJDXPKxjLDwGu5zev0/s1600/mubarak.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="153" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEijFslmOBo_r4SD-hnzQrhEh02Db4_i8RBpPIKii0yhBMiJ4DEDH4iB2fDqJm3chIPsDzuqdlaoe8QlP4WFSSmVz1xSxvK99_IxoaITCVUbHbwh_MXl8PDgWER84yJDXPKxjLDwGu5zev0/s200/mubarak.jpg" style="cursor: move;" width="200" /></a></div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;">"अब मिस्र आज़ाद है " तहरीर चौक पर अपार जनसमुदाय का यह नारा पूरी दुनिया मे व्यवस्था परिवर्तन की लो को एक उम्मीद से भर दिया है इजिप्ट के .तहरीर चौक से उठी यह क्रांति की चिंगारी अरब वर्ल्ड के साथ साथ एशिया के देशो मे जल्द ही फैलने वाली है .अरब देशो मे सत्ता शीर्ष पर कब्ज़ा जमाये हुए सत्ताधीशों की बेचैनी बढ़ने लगी है .टूनिसिया मे एक मजदूर की मौत क्रांति का आगाज कर सकती है और वर्षो से सत्ता पर काबिज निरंकुश शासक को मुल्क छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ता है .मिस्र मे फेसबुक पर एक लड़की का यह मेसेज "मै तहरीक चौक जा रही हूँ" .........एक नयी क्रांति की नीव डालती है और महज १८ दिन के आन्दोलन ३० साल के हुस्नी मुबारक की सत्ता को उखाड़ फेकता है .तो क्या ऐसी क्रांति आज भारत मे संभव है ?क्या भारत मे व्यवस्था के खिलाफ गुस्सा कभी क्रांति का रूप धारण कर सकता है ?</div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;">व्यवस्था के खिलाफ रोष और क्षोभ न्यायपालिका को है ,मिडिया को है ,लोगों को है ,बुधिजिबियों को है लेकिन क्रांति को लेकर उत्साह कही नही है .सुप्रीम कोर्ट के जज की शिकायत है कि सरकार न्यायपालिका को अधिकार संपन्न नही देखना चाहती .एक जज का क्षोभ है कि कोर्ट की टिप्पणियों का कोई क़द्र नही है .उधर सरकार की ओर से सीमा और मर्यादा की नशिहत दी जाती है .भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों का गुस्सा आसमान छू रहा है लेकिन ओ कुछ कर नही पा रहा है क्योंकि उन्हें यह कहा जा रहा है कि उनकी चुनी हुई सरकार सत्ता पर आसीन है .पांच साल बाद सत्ता से लोगों को बेदखल करने का उन्हें फिर मौका मिलेगा आदि आदि .भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाने की जिम्मेदारी विपक्ष की है लेकिन उनका दायित्व न्यायलय ने संभाल लिया है .प्रक्रिया इतनी धीमी और लचर है कि बोफोर्स दलाली की रकम मुल्क वापस नही पा सकी .उलटे इस जांच प्रक्रिया मे मुल्क ने दलाली के कई गुना रकम खर्च दिया है और नतीजा सिफ़र ही हाथ लगा है .भ्रष्टाचार का आलम यह है कि महज ७ वर्षो मे इस देश ने जितना खोया है उतनी रकम शायद ६० वर्षों मे भी नेता -अधिकारी और दलाल हजम नही कर पाए .</div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;">दस साल पहले १०० - २०० करोड़ रूपये के घोटाले के लिए आन्दोलन होते थे लेकिन आज २० लाख करोड़ रूपये के घोटाले के खिलाफ कही मामूली धरना -प्रदर्शन भी नही होते .करोडो रूपये के घोटाले ,विदेशी बैंको मे काला धन की चर्चा न्यायलयों मे होती है और इस चर्चा को आगे बढ़ाते हुए मिडिया लोगों के घरों मे देश के वैभवता की तस्वीर पेश कर रहा है लेकिन आक्रोश कही नही है हर शाम .कोर्ट से बाहर निकलकर वकील ,राजनेता और विशेज्ञ टीवी पर मजमा लगाते है और एक दुसरे पर कीचड़ उछाल कर अपने अपने घर लौट जाते है .लेकिन इस पुरे खेल मे सरकार चुप है क्योंकि उसे पता है कि इन बहस से कोई सम्पूर्ण क्रांति नही आने वाली है .हमाम मे सब नंगे है सो कोई जयप्रकाश नारायण पैदा हो नही सकता .</div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;">व्यवस्था के खिलाफ नक्सली जंगलों मे आन्दोलन रत है लेकिन उनका यह तथाकथित आन्दोलन आदिवासी इलाकों से बाहर नही निकाल सका तो माना जायेगा कि नक्सली जंगली इलाको मे अपनी प्रभुसत्ता बनाकर खुश है .सरकार जब कभी भी उन इलाकों मे उनकी प्रभुसत्ता को चुनौती देती है नक्सली इस एवज १० -२० मासूमों की जान ले लेते है .मैनिंग मे पैसा राजनेताओ को भी चाहिए तो नक्सली भी इसमें अपना हिस्सा मांगते है .सो आन्दोलन की धार पैसे की ताक़त ने पहले ही कुंद कर रखी है .</div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;">भ्रष्टाचार ,घोटाला ,महगाई ,आम आदमी की मुश्किलें हर घर मे हर चौक पर बहस का मुद्दा है लेकिन इसमें कोई चिंगारी नही है .राजधानी दिल्ली मे तहरीर चौक का आकार पहले ही छोटा कर दिया गया है. अगर १०० -२०० लोग भी जंतर मंतर पर जामा हुए तो पुरे इलाका की ट्राफिक व्यवस्था चरमरा जायेगी .सरकार को पता है अपना अपना रास्ता ढूंढने मे लगे लोग कभी यह वर्दास्त नही करेंगे कि उनकी रफ़्तार किसी बहस के कारण थम जाय .इस आन्दोलन को देश के ७ फिसद की विकास दर ने भोथरा बना दिया है .माध्यम वर्ग की एक बड़ी आवादी अपने मकान,दुकान ,बच्चो की शिक्षा की मह्बारी किस्तों मे इस कदर उलझा हुआ है कि उसे यह चिंता नही सताती कि देश के अरबो -खरबों रुपया विदेशी बैंको मे पड़ा है और वह हजार -दस हजार की किस्त पूरा करने के लिए अपना पूरा जीवन दाव पर लगा दिया है .यह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है जहाँ सरकार चुनने का हक आम लोगों को मिला हुआ है लेकिन सरकार का मुखिया कौन होगा ,सरकार के मंत्री कौन होंगे इसका फैसला आलाकमान के हाथ मे है .सरकार संसद के प्रति जिम्मेदार है लेकिन प्रधानमंत्री किसके प्रति जिम्मेदार है यह समझना अभी अभी बांकी है .गाँव से लेकर शहर तक इस मुल्क मे तहरीर चौक का आकार और आधार काफी छोटा हो गया है इस हालत मे इस आन्दोलन की शुरुआत हर घर से हो सकती है यानि इस देश को अभी आज़ादी मिलना अभी बांकी है .</div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"> </div></div>vinod kumar mishrahttp://www.blogger.com/profile/10008067258866717206noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5622026231418338165.post-23564790610423797802011-01-16T13:26:00.000+05:302011-01-16T13:26:21.255+05:30लाल चौक पर तिरंगा :दहशत मे ओमर अब्दुल्ला<div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEghC3K1gW-g0ZyC_RWDuQwEOA5Bs_Xh97tesaxFVDZ_O3NKhFx2LXHyIkI5gFHe7edbfA2sPl__TlXvmKXVkn8oWmheEGTtwlxIELHt3m7FXIMvTHXtv6Ik2IHxdHNO8t9uzbQWtPGRGHA/s1600-h/lal+c.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="120" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEghC3K1gW-g0ZyC_RWDuQwEOA5Bs_Xh97tesaxFVDZ_O3NKhFx2LXHyIkI5gFHe7edbfA2sPl__TlXvmKXVkn8oWmheEGTtwlxIELHt3m7FXIMvTHXtv6Ik2IHxdHNO8t9uzbQWtPGRGHA/s200/lal+c.jpg" style="cursor: move;" width="200" /></a><span class="Apple-style-span" style="font-size: small;">1992 के बाद यह पहलीबार है कि श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा लहराने के लिए बीजेपी ने जिद ठानी है .१८ वर्ष पहले भी तत्कालीन हुकूमत ने बीजेपी को यह जिद छोड़ने की सलाह दी थी ,वैसी ही सलाह मौजूदा हुकूमत भी दे रही लेकिन इस सलाह मे घबराहट ज्यादा है . हुकूमत के सामने अमरनाथ श्रायन बोर्ड का जीता जगता उदाहरण सामने है कि महज कुछ मुठी भर लोगों के विरोध ने इसे अलगावादी सियासत का मुद्दा बना दिया था .लेकिन वे सवाल आज भी दुरुस्त हैं कि सर्दी से कापते यात्रियों के लिए महज कुछ गज ज़मीन का उपयोग धारा ३७० के खिलाफ था ?क्या यह भारत की साजिश थी जिससे वह वहां की अवादी के अनुपात को बदलना चाहती थी ?अफ़सोस की बात यह कि सरकार अलगाववादियों के भ्रामक प्रचार और हुडदंग के आगे पूरी तरह आत्मसमर्पण कर चुकी थी .और कश्मीर के लोग भी उस सियासी हुडदंग को समझ नही पाए .ठीक वैसी ही परिस्थिति आज भी बन रही है .सियासी मुद्दे की तलाश मे भटकती बीजेपी को एक बार फिर तिरंगा की याद आई है .सो उसने लाल चौक पर तिरंगा लहराने का फैसला लिया है ,शायद इस सोच से कि इस मसले को लेकर बवाल और चर्चा होना लाजिमी है .बीजेपी के इस अभियान को इस बार जे के एल ऍफ़ के नेता यासीन मल्लिक का साथ है .और यह मसला रोज मिडिया की सुर्ख़ियों मे है .राज्य सरकार के मुख्यमंत्री अब्दुल्ला इतने आशंकित है कि उन्हें दुबारा अमरनाथ श्रायन के मसले की पुनरावृति दिख रही है .बड़ी मुश्किल से उन्होंने पिछले छः महीने के सियासी तूफ़ान मे अपनी नौकरी बचाई है लेकिन यह मसला उन्हें ज्यादा आशंकित कर रखा है .सवाल यह है कि क्या लाल चौक पर इससे पहले तिरंगा नही लहराया जाता था ?अगर ऐसी प्रथा थी तो यह अधिकार ओमर अब्दुल्ला का है कि वे कहते कि लाल चौक पर झंडा बीजेपी नही बल्कि रियासत की सरकार फहराएगी .ओमर अब्दुल्ला ठीक वैसा ही भारतीय है जैसा कि कोई बीजेपी वाला लेकिन ओमर अब्दुल्ला अपने इस गौरब को क्यों बीजेपी को झटकने दे रहे है ,यह सबसे बड़ा सवाल है .क्या आज़ादी मांगने वालों की आवाज आज कश्मीर मे इतनी मजबूत है कि यासीन मल्लिक के एक धमकी से ओमर अब्दुल्ला परेशान और बेहाल है ?</span></div></div><div class="separator" style="clear: both; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgNenwlZsnaD6w-G-waOcYuo_YAJFjWzdmhwlqqDHq9qLN4evxlvJKs4emrRxQI5RCMf0UyOz-Jo9DjBMnvibOHWWY7fgJ1TjiXdPoC8JhlM1jp9L92vODj9KU-HsnuKXlOD1Y7_KS6f1E/s1600/bjpyatra.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><img border="0" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgNenwlZsnaD6w-G-waOcYuo_YAJFjWzdmhwlqqDHq9qLN4evxlvJKs4emrRxQI5RCMf0UyOz-Jo9DjBMnvibOHWWY7fgJ1TjiXdPoC8JhlM1jp9L92vODj9KU-HsnuKXlOD1Y7_KS6f1E/s200/bjpyatra.jpg" style="cursor: move;" width="200" /></span></a></div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"> पिछले २० वर्षों में लाल चौक पर सीना ताने खड़े घंटा घर ने जितनी शर्मिंदगी अलगाववादियों के कारण नहीं झेली होगी उससे ज्यादा जिल्लत उसे हुकूमत के कारण झेलनी पड़ी है . गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस के पिछले दो मौके पर लाल चौक पर तिरंगा नहीं फहराने के पीछे सरकार की जो भी दलीले हो लेकिन इतना तो तय है कि इस फैसले ने लाल चौक के शौर्य को धूमिल किया है .पिछले २० वर्षों में लालचौक ने दर्जनों आतंकवादी हमले के दंश सहे है .दर्जनों बार पाकिस्तान का झंडा इसके सीने पर लटका दिया गया .लेकिन इन १८ वर्षों में जब कभी तिरंगा के साथ इस चौक को सजाया जाता तो वह अपने पुराने जख्मो को भूल जाता था. सरकार की यह दलील है यहाँ झंडा फहराने की कोई परंपरा नहीं थी ,न ही यह लाल चौक कोई सियासी जलसे की उपयुक्त जगह है .लाल चौक इन दलीलों को ख़ारिज करता है .उसका सवाल है क्या मुग़ल बादशाह ने लाल किला तिरंगा फहराने के लिए बनाया था .क्या इंडिया गेट को अंग्रेजों ने गणतंत्र दिवस मनाने के लिए बनाया था . अगर किसी ने लाल चौक के शोर्य को बढ़ाने और तिरंगा के जरिये वादी के आम लोगों के जज्वात से जुड़ने की कोशिश की, तो क्या यह गलत परम्परा थी ? </span></div></div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><br />
</span></div></div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: small;">.दहशतगर्दी के दौर में भी या कहे कि १९९२ में भी वादी ए कश्मीर में ऐसे लाखों लोग थे जिनका तिरंगा के साथ सरोकार था .जिनका तिरंगे के प्रति अटूट आस्था थी .यही वजह थी कि इन वर्षों में कई सरकारे आई गई लेकिन यह परंपरा वहां के लोगों के साथ मिलकर हिफाजती अमले ने निभाई .लेकिन आज जब सरकार अमन और शांति का दावा कर रही है फिर लाल चौक के इस सम्मान को छिनने के क्या वजह हो सकती थी .गणतंत्र दिवस हो या स्वतंत्रता दिवस अलगाववादियों के बंद - हड़ताल की कॉल और आतंकवादियों की धमकी के बीच खाली और सुनसान पड़े श्रीनगर के इस तारीखी चौक पर सिर्फ एक लहराता तिरंगा ही तो था जो अलगाववादियों के मसूबे को फीका कर रहा था .लेकिन पिछले दो साल से लाल चौक सुनसान मार्केट में अकेला अपमान का दंश झेलता रहा है .किसी ने ठीक ही कहा है कि सरकार इखलाक से चलती है , लेकिन यहाँ तो सरकार हांफती नज़र आ रही है . लाल चौक पर तिरंगा संप्रभुता की पहचान थी .कश्मीर के लाखों लोगों को यह एहसास करा रहा था कि यहाँ की अलगाववादी सियासत कुछ चंद सिरफिरों की सनक है ,लेकिन लाल चौक से तिरंगा हटाकर हुकूमत ने यह एहसास कराया है कि अलगाववाद की जड़े श्रीनगर में गहरी है .जिस अलगाववाद को लोगों ने जब तब वोट के जरिये हराया है उसे सरकार के एक फैसले ने हतोत्साहित कर दिया है .</span></div></div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: small;">७० के दशक मे श्रीनगर के कुछ उत्साही मार्क्सवादियों ने रूस के रेड स्कुएर की तर्ज पर इस चौक का नाम लालचौक रखा था .कारोबारी शहर के बीचो बीच स्थित इस चौक की ख्याति शेख अब्दुल्ला ने भी बढ़ाई . शेख अब्दुल्ला का जनता दरवार कभी लालचौक की शान बढ़ाता था .खुद पंडित नेहरु ने इस लालचौक पर तकरीरे की है . १९७५ में यहाँ घंटाघर वजूद में आया और इसने इसे कारोबारी चौक का दर्जा दिलाया .श्रीनगर में भारत के कोने कोने से पहुचे पर्यटकों ने इसकी शान में और इजाफा किया .लेकिन १९८९ के दौर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद ने यहाँ की हलचल में जहर घोल दिया .लालचौक आतंकवादी गतिविधियों का केंद्र बन गया .जाहिर है बन्दूक के खौफ ने अलगाववादियों को एक सियासी आधार दिया और उनका सियासी ठिकाना लालचौक हो गया .पिछले २० वर्षों में लालचौक ५ साल बंद रहे .सैकड़ों मासूमो को इस चौक ने अपने आँखों के सामने आतंकवादियों की गोलियों से छलनी होते हुए देखा है .बाद में इस चौक की सुरक्षा की जिम्मेवारी पहले बी एस ऍफ़ ने बाद में सी आर ऍफ़ ने सँभाल ली .लेकिन हमलों का दौर जारी रहा और आतंकवादी जब तब इस लालचौक पर हमला करके अपनी प्रभुसत्ता दिखाने की कोशिश की है .हालाँकि सुरक्षवालों ने इसकी तीब्रता जरूर कम कर दी है .तो क्या आतंकवादी हमलों के अंदेशे ने यहाँ तिरंगा फहराने से रोका था ?क्या भारतीय होने और उस पर फक्र करने वाले कश्मीरियों का सर इस फैसले से नही झुका है ?इस देश को यह जानने का जरूर हक है कि जिस तिरंगा झंडा की शान मे हजारो हिन्दू ,मुस्लिम ,सिख ,ईसाई ने अपनी जान कुर्बान की है. क्या इसे एक मुख्यमंत्री की कुर्सी सही सलामत रखने के लिए इसकी शान के साथ गुश्ताखी की जा सकती है ? हर सवाल का जवाब आखिर सरकार को ही देना है लेकिन यह भी तय है कि यह सवाल पूछने का हक सिर्फ बीजेपी को नही है</span> .</div><div><br />
</div></div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"></div>vinod kumar mishrahttp://www.blogger.com/profile/10008067258866717206noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5622026231418338165.post-40553155979112742942010-12-06T18:13:00.000+05:302010-12-06T18:13:49.044+05:30vinod mishra ka blog: बिहारी तो सुधर गए आप कब सुधरोगे<a href="http://hamargam.blogspot.com/2010/12/blog-post.html#links">vinod mishra ka blog: बिहारी तो सुधर गए आप कब सुधरोगे</a>bakwas reporthttp://www.blogger.com/profile/12100394842727069707noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5622026231418338165.post-732215550150055712010-11-06T22:30:00.000+05:302010-11-06T22:30:35.357+05:30ओबामा देने आये हैं या कुछ लेने<div class="separator" style="clear: both; font-size: 14px; line-height: 25px; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; text-align: center;"></div><div style="font-size: 14px; line-height: 25px; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEirgSY3TL7_DHtFcfUOAiiBcNoy00J2Nw9EpZdFSDftnyDJv-vNRzeQxrlnjx001WyryxQ3eBBsP2x2o89OXuu9N4dB6QWcfWFTya5iZKzKx4kKhXiwM7VdDLV8Wr_VtNi5LQQE10ybGRo/s1600/obama.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="138" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEirgSY3TL7_DHtFcfUOAiiBcNoy00J2Nw9EpZdFSDftnyDJv-vNRzeQxrlnjx001WyryxQ3eBBsP2x2o89OXuu9N4dB6QWcfWFTya5iZKzKx4kKhXiwM7VdDLV8Wr_VtNi5LQQE10ybGRo/s200/obama.jpg" width="200" /></a>ओबामा !ओबामा, किसका ओबामा ? लेकिन फिर भी इस ओबामा की गूंज हर जगह है .एक उम्मीद हर जगह है मानो ओबामा कुछ करके जायेंगे ,कुछ देके जायेंगे .किसको ? यह नही पता .राजनीतिक पंडित कहते है कि अमेरिकी राष्ट्रपति के भारत दौरे का मकसद अमेरिका के लिए नए बाज़ार और अवसर तलाशने से है उनका तर्क है कि अगर वे भारत को कुछ देने आये है तो उनकी टीम मे २०० से ज्यादा अमेरिकी कंपनी के सी ई ओ क्या करने आये है ? लेकिन मेरे जैसे अज्ञानी यह उम्मीद लगा बैठे हैं कि ओबामा भारत मे कदम रखते ही यह ऐलान करेंगे कि 'पाकिस्तान भारत के खिलाफ जेहादियों को भेजना बंद करे बरना खैर नही "यह उम्मीद हमने ओबामा के चुनावी भाषण सुनकर जगाई थी .लेकिन राष्ट्रपति बनते ही ओबामा ने ऐसा पैतरा बदला कि हमने कहना शुरू कर दिया दोस्त दोस्त ना रहा ..... ओबामा राष्ट्रपति बनने से पहले यह अक्सर कहा करते थे पाकिस्तान को मिलने वाली अमेरिकी मदद की समीक्षा होगी ,उनका मानना था अमेरिका के लाखों करोडो डालर का इस्तेमाल पाकिस्तान भारत के खिलाफ आतंकवादी अभियानों मे लगता है .लेकिन आतंकवाद के खिलाफ जंग के नाम पर अबतक सबसे ज्यादा फंड ओबामा ने ही पाकिस्तान को दिया है .यानि पिछले दो साल मे पाकिस्तान को ९ बिलियन डॉलर मिले है .अमेरिका के तथाकथित आतंक के खिलाफ जंग मे पाकिस्तान बराबर का साझेदार है .ओबामा को अफगानिस्तान के दल दल से अमेरिका को बाहर निकालना है इसके लिए पाकिस्तान ही एक मात्र सहारा है .बात चाहे अफगानी तालिबान से करो या फिर पाकिस्तानी तालिबान से जरूत जनरल कियानी की ही पड़ेगी .</div><div style="font-size: 14px; line-height: 25px; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;">यह बात दुनिया जानती है कि पाकिस्तान मे सत्ता की डोर पाकिस्तानी फौज के हाथ मे है .आतंक के सारे खेल का रेफरी पाकिस्तानी फौज है .डेविड कोलमन हेडली के हालिया खुलासा चौकाने वाले है उसने मुंबई हमले के लिए सीधे तौर पर पाकिस्तानी फौज और आई एस आई को जिम्मेदार ठहराया है .हेडली का माने तो इस हमले की जानकारी अमेरिका को थी .जबकि अमेरिकी ख़ुफ़िया विभाग का दावा है की उसने इस साजिश से भारत को बाखबर किया था .लेकिन हमले हुए और २०० से ज्यादा लोग मारे गए .हमले की जांच चल रही है ,कसाब को क्या सजा मिले इसपर फैसला होना अभी बांकी है .पाकिस्तान की अदालत को अभी और सबूतों का दरकार है .आरोप -प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है लेकिन फिर भी हम अमेरिका से उम्मीद लगा बैठे है की ओबामा भारत दौरे पर २६/११ हमले के पीड़ितों को न्याय दिलावे .यह बात जानते हुए भी पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलफ अमेरिका ने कभी भी सख्त कदम नही uthaya है ..भारत को यह लड़ाई खुद लड़नी होगी ..</div><div style="font-size: 14px; line-height: 25px; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;">अमेरिकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबमा से पूरी दुनिया को उम्मीदे है यही वजह है की उन्हें पहले ही शांति का नोवेल पुरस्कार मिल चुका है .हम भी अगर दक्षिण एशिया मे शांति के लिए ओबामा से उम्मीद करते है ,पाकिस्तान पर कारवाई की मांग करते है तो शायद हमरा सोचना गलत नही है .क्योंकि पाकिस्तान का वजूद अमेरिकी से मिले फंड पर निर्भर है .आर्थिक रूप से जर्जर और सामजिक रूप से लहुलाहन पाकिस्तान मे जम्हूरियत पहले ही दम तोड़ चुकी है इस हालात मे पाकिस्तानी लोकतान्त्रिक सत्ता से उम्मीद करना बेमानी है .नयी दिल्ली का संवाद इस्लामाबाद से है जिनका कोई अस्तित्व नही है जबकि अमेरिका का प्रभाव रावलपिंडी यानि फौज के मरकज पर है .भारत को पता है फोजी जनरल ही बात चीत की किसी पहल को आगे बढा सकते है लेकिन बातचीत और कारवाई के लिए उसे बात जरदारी और गिलानी से करनी पड़ती है जो खुद पाकिस्तान मे अपने वजूद के लिए लड़ रहे है .भारत को जनरल कियानी से बात करने के लिए कोई माध्यम चाहिए लेकिन वह इसके लिए किसी दुसरे देश की मदद नही ले सकता ?क्यों ये आप बेहतर जानते है .भारत पाकिस्तान के बीच समझौते की लम्बी फेहरिस्त है लेकिन वहां के जनरलों ने उन समझौते का क्या हश्र किया है आपके सामने है .भुट्टो का शिमला समझौता जनरल जिया की भेट चढ़ गया .नवाज शरीफ का लाहोर समझौता जनरल परवेज मुशरफ के अहंकार का शिकार हुआ .तो राष्ट्रपति मुशर्रफ के समझौते को जनरल कियानी ने रद्दी की टोकरी मे डाल दिया .समझोते के इन हश्र के बाद भी हम अगर पाकिस्तान की हुकूमत से किसी और समझौते की उम्मीद करते है तो उसका हश्र हमारे सामने है .</div><div style="font-size: 14px; line-height: 25px; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;">पाकिस्तान एक संप्रभु देश है इससे ज्यादा जोर इस बात पर दिया जाता है की पाकिस्तान के पास परमाणु बम का जखीरा है .चीन के लिए पाकिस्तान वह तुरुप का पत्ता है जिसका इस्तेमाल वह भारत के खिलाफ करता है .तो अमेरिका की चिंता यह है कि पाकिस्तान के इस परमाणु बोम्ब का इस्तेमाल आतंकवादी कही उसके खिलाफ न करले .लेकिन यह बोम्ब पाकिस्तान को भारत के खिलाफ जेहादियों को भड़काने, उन्हें कारवाई के लिए उकसाने की पूरी छूट देता है .यह बोम्ब पाकिस्तान मे फौज को सत्ता के केंद्र मे रखता है .आतंकवाद को लेकर जितनी चिंता भारत को है उससे ज्यादा चिंता अमेरिका को है लेकिन अगर आतंक के खिलाफ जंग के नाम पर अमेरिका खुद पाकिस्तानी फौज के सामने असहाय है तो भारत को ओबमा से ज्यादा </div><div style="font-size: 14px; line-height: 25px; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;">उम्मीद करना बेमानी है .</div><div style="font-size: 14px; line-height: 25px; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><br />
</div>vinod kumar mishrahttp://www.blogger.com/profile/10008067258866717206noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5622026231418338165.post-25706283322072877782010-10-23T22:52:00.000+05:302010-10-23T22:52:47.571+05:30गिलानी साहब के आज़ाद कश्मीर फ्री बंटेगी शराब<div style="font-size: 14px; line-height: 1.8;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhQFT1Kg2szDLGPgk-Gh3tLZN8ei7yC1O5SC1eob_MEKq5LxcuyF4gajwzYduxSfG9980IZbbCNPqtvxKmhMIlMnc1qrX08gER2pRx6j9SsdxcKi04YOHFP7W9ICR2iXJmIidgEX2MJzbs/s1600/gilani.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="142" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhQFT1Kg2szDLGPgk-Gh3tLZN8ei7yC1O5SC1eob_MEKq5LxcuyF4gajwzYduxSfG9980IZbbCNPqtvxKmhMIlMnc1qrX08gER2pRx6j9SsdxcKi04YOHFP7W9ICR2iXJmIidgEX2MJzbs/s200/gilani.jpg" width="200" /></a></div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;">"राज करेगा गिलानी " हम क्या चाहते आज़ादी जैसे नारों के बीच दिल्ली के एल टी जी सभागार आज़ाद कश्मीर का मनोरम दृश्य प्रस्तुत कर रहा था लेकिन गुस्साए कश्मीरी पंडित के नौजवान बन्दे मातरम का नारा लगाकर आज़ादी के इस महान उत्सव का रंग फीका कर रहा था .आज़ादी द ओनली वे के इस महान जलसे मे सैयद अली शाह गिलानी अपने आज़ाद कश्मीर मे न्याय और कानून व्यवस्था पर कुछ इस तरह प्रकाश डाल रहे थे "आजाद कश्मीर मे बहुसंख्यक मुसलमानों को शराब पीने की इजाजत नही होगी यानि वे शरियत के कानून से बंधे होंगे जबकि दुसरे हिन्दू ,सिख और बौध तबके को शराब पीने की पूरी आज़ादी होगी .वे जहाँ और जब चाहे शराब पी सकते है और कानून इतना सख्त होगा कि अगर धोके मे भी कोई मुसलमान किसी के शराब की बोतल तोड़ेगा तो उसे इसका हर्जाना देना होगा ." .गिलानी साहब के इस आज़ादी को समर्थन करने अरुंधती राय के आलावा देश के कई नामी अलगाववादी नेता इस समारोह मे जमा हुए थे .खालिस्तान के समर्थक से लेकर माओवाद के समर्थक ,मिज़ो विद्रोही से लेकर नागा विद्रोही हर ने भारतीय अस्मिता को रौंदते हुए भारत की संप्रभुता और अखंडता पर सवाल उठाने मे कोई कसर नही छोड़ी .क्योंकि ये भारत है, क्योंकि प्रजातंत्र मे इन्हें कुछ भी बोलने किसी भी मत का प्रचार करने का पूरा हक है .देश का कानून भले ही इसका इजाजत नही दे लेकिन फिर बुद्धिजीवी कहलाने का मतलब क्या होगा अगर इन्होने कुछ अलग नही कहा .सो खालिस्तान समर्थक बुद्धिजीवी ने इंडिया एज ए नेशन को बकवास करार दिया तो गिलानी ने अपनी तुलना सुभाष चन्द्र बोस से की .अरुंधती राय ने देश के तमाम अलगाववादियों और विद्रोहियों से कश्मीर को आजाद कराने और गिलानी के हाथ मजबूत करने की अपील की .कई नामी गिरामी प्रोफेसर कई नामी गिरामी भुत पूर्व उग्रवादी भारत के खिलाफ जहर उगलकर गिलानी के समर्थन मे महान ऐतिहासिक तथ्यों को प्रस्तुत करते नज़र आये .इस विहंगम दृश्य का अवलोकन मेरे जैसे नाचीज पत्रकार और सैकड़ो की तादाद मे उपस्थित कानून के पहरुए भी कर रहे थे लेकिन सबकी अपनी जिम्मेदारी थी अपना ज्ञान बढ़ाने के अलावा और कोई चारा नही था ,ऐसी ही कुछ मजबूरी गृह मंत्री चिदम्बरम की भी थी जो पहले तो राजधानी दिल्ली मे इस तरह के सम्मलेन पर चुप रहे अब कारवाई की बात कर रहे है लेकिन जम्मू के जसविंदर को प्रो सुजाता भद्रो की बात बेहद अपमानित लगा तो उसने मंच पर अपना जूता उछाल दिया .जसविंदर को पुलिस ने तुरंत गिरफ्तार कर लिया था लेकिन वह यह जरूर बता गया कि जम्मू कश्मीर का मतलब सिर्फ गिलानी नही है .</div></div><div style="font-size: 14px; line-height: 1.8;"><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;">जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्ला ने इस घटना की निंदा करते हुए जम्हूरियत मे सबको अपनी बात रखने और बोलने की आज़ादी का सम्मान करने की नशिहत दे डाली .लेकिन दो दिन पहले मुख्यमंत्री अब्दुल्ला की विजय पुर रैली मे किसी ने ओमर अब्दुल्ला के कश्मीर पर दिए गए बयान की निंदा करने की कोशिश की तो पुलिस ने मुख्यमंत्री के सामने उसकी जमकर धुनाई कर दी.शायद धारा ३७० मे किसी को मुख्यमंत्री के खिलाफ बोलने की आज़ादी नही है .इसी धारा ३७० की व्याख्या करते हुए ओमर अब्दुल्ला कहते है कि रियासते जम्मू कश्मीर का पूर्ण विलय अभी भारत के साथ नही हुआ है .अब्दुल्ला मानते है कि भारत के साथ जम्मू कश्मीर का इह्लाक कुछ शर्तों के साथ हुआ था .ओमर अब्दुल्ला आज वही बात कह रहे है जो ७० के दौर मे उनके महरूम दादा शेख अब्दुल्ला ने कहा था .तो क्या ओमर अब्दुल्ला मान रहे है कि कश्मीर मे सियासत भारत के खिलाफ माहोल बनाकर ही की जा सकती है या अपनी निष्क्रियता को छिपाने के लिए ओमर अब्दुल्ला ने भारत विरोधी बयानों का सहारा लिया है .</div></div><div style="font-size: medium; line-height: normal; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: 14px; line-height: 25px;">रियासत जम्मू कश्मीर का भारत मे विलय मुल्क के ६०० राजे रजवाड़े के विलय की एक कड़ी थी. लेकिन कश्मीर मे मुस्लिम बहुसंख्यक मे थे इसलिए पाकिस्तान यहाँ अपना सियासी आधार लगातार दुढ़ता रहा .उधर कश्मीर के सियासत दा लगातार इस कोशिश मे रहे कि कश्मीर को लेकर भारत पर एक दवाब बना रहे .१९४८ से लेकर १९७५ तक इसी दवाब को जारी रखने के लिए शेख अब्दुल्ला ने कई बार अपना सियासी पैतरा बदला .जब कभी भी कश्मीर मे शेख अब्दुल्ला को अपना अस्तित्वा खतरे मे पड़ते दिखा उसने भारत के खिलाफ जहर उगलना शुरू कर दिया .लेकिन कभी भी कश्मीर मे लोकतंत्र को विकसित नही होने दिया .४०० से ज्यादा बोली ५० से ज्यादा धार्मिक मान्यता मानने वाले लोग ,अलग अलग संस्कृति अलग क्षेत्र अलग पहचान लेकिन रियासत मे सियासत की डोर हमेशा कश्मीर के ७ जिलो के संपन्न सुन्नी मुस्लिम तबके के हाथ रही .तक़रीबन २० फिसद की आवादी वाला यह समुदाय मुख्यधारा की सियासत मे अपनी पकड़ बनाने मे कामयाबी पायी तो कश्मीर मे अलगाववाद की सियासत को इसी तबके ने चलाया .बन्दूक उठाने वाले लोग भी इसी तबके से थे तो मौजूदा दौर मे पत्थर उठाने वाले नौजवान भी इसी तबके से है . सरकार मे आला अधिकारी से लेकर निचले स्तर के अहलकारो मे इसी तबके का बोलवाला है .इस हालत मे यह सवाल उठाना लाजिमी है कि क्या कश्मीर के पंडित समुदाय ,गुज्जर बकरवाल ,सिया समुदाय ,जम्मू के हिन्दू ,लदाख के बौध शायद इसलिए अपनी सियासी आधार मजबूत नही कर पाए क्योंकि इनका लगाव भारत से है या फिर भारत की सियासत ने इन्हें अपना मानकर इन्हें त्रिस्क्रित कर दिया है .कश्मीर के लोग अपना ऐतिहासिक आधार राज्तार्न्गिनी मे ढूंढ़ते है .वे अपने को भारत की परंपरा की एक मजबूत कड़ी मानते है .क्या इस ऐतिहासिक तथ्य को झुठलाया जा सकता है .क्या आज़ादी की बात करने वाले लोगों को नही पता है कि वे जिस संयुक्त राष्ट्र का हवाला देते है उसके रेजोलुसों मे भारत या पाकिस्तान किसी एक को चुनने की बात की गयी है .आज़ादी वहां कोई विकल्प नही है .क्या उन्हें नही पता कि जनमत संग्रह कराने के लिए पाकिस्तान कभी तैयार नही होगा क्योंकि उसे अपने कब्जे के कश्मीर से अपनी फौज हटानी होगी .आज गिलगित बल्तिस्तान पाकिस्तान का एक प्रान्त का दर्जा पा चुका है तो पाकिस्तान मक्बुजा कश्मीर की पूरी आवादी ही बदल गयी है .लेकिन फिर अगर गिलानी रायशुमारी की बात कर रहे है तो जाहिर है वे कश्मीर के लोगों को गुमराह कर रहे है .ऐसी गुमराह करने वाली बाते ओमर अब्दुल्ला भी कर रहे है तो इनकी सियासत को समझा जा सकता है .</span></span></div><div style="font-size: medium; line-height: normal; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: 14px; line-height: 25px;">लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या वाकई मे भारत के आमलोगों को कश्मीर की जरूरत है .क्या कश्मीर की अपार खनिज संपदा भारत को आर्थिक ताक़त बना सकता है ?आज भारत के आर्थिक संसाधन का सबसे ज्यादा उपयोग कश्मीर के लोग कर रहे है .भारत की आर्थिक संसाधनो की सबसे ज्यादा लूट इसी कश्मीर मे है लेकिन यहाँ के सियासतदान इस लूट को छिपाने के लिए भारत जब तब नशिहत भी देते है .पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला कहते है कि रियासत अपने संसाधनों से अपने कर्मचारियों को एक महीने की तनख्वा भी नही दे सकती है इस संसाधन से आम लोगों की तरक्की की बात तो सोची भी नही जा सकती लेकिन फिर भी फारूक साहब को ऑटोनोमी चाहिए तो गिलानी को आज़ादी .भारत के पैसे से फारूक साहब बनायेंगे खुशहाल कश्मीर ? तो पाकिस्तान के पैसे से गिलानी साहब बाटेंगे फ्री शराब ...</span></span></div><div style="font-size: medium; line-height: normal; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: 14px; line-height: 25px;"><br />
</span></span></div>vinod kumar mishrahttp://www.blogger.com/profile/10008067258866717206noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5622026231418338165.post-33245270363435098582010-10-11T10:44:00.000+05:302010-10-11T10:44:56.128+05:30देश भक्त ओमर अब्दुल्ला की मुश्किलें<div style="font-size: medium; line-height: normal; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><div class="separator" style="clear: both; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgz_MIbpM7h74YYqXxiTMMRUWCuVQprh1PEA82YmWLyl1meKDJwkT9NyQJqcM2bKI6tkpvGBIV9XOryijpniufsCn8xGDKF-_4ca6IxN1v6dH0oBnANEncdGeFDA2PIGdMOi8KYxBsd0xs/s1600/omar+abdulla.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="166" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgz_MIbpM7h74YYqXxiTMMRUWCuVQprh1PEA82YmWLyl1meKDJwkT9NyQJqcM2bKI6tkpvGBIV9XOryijpniufsCn8xGDKF-_4ca6IxN1v6dH0oBnANEncdGeFDA2PIGdMOi8KYxBsd0xs/s200/omar+abdulla.jpg" style="cursor: move;" width="200" /></a></div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;">रियासत मे मुख्यमंत्री पद की कमान संभाले अभी ओमर अब्दुल्ला को दो साल पुरे नही हुए है लेकिन ओमर अब्दुल्ला यह बात मान चुके है कि वे कश्मीर मे सबसे ज्यादा निक्कमा मुख्यमंत्री साबित होने वाले है .पिछले महीने एक इंटरव्यू मे उन्होंने माना था कि " सियासी तौर वे कोई चमत्कार दिखाने के लायक नही है ना ही वे अपने आपको लोगों के बीच बेच पाए है ".यानि शेख अब्दुल्ला की तीसरी पीढ़ी को कश्मीर मे तुरुप के पत्ते की तरह इस्तेमाल करने की पूरी कोशिश की गयी लेकिन यह दाव पूरी तरह से खाली गया .पिछले विधान सभा चुनाव मे नेशनल कान्फेरेंस सबसे बड़ी पार्टी के रूप मे सामने आई लेकिन सरकार बनाने से कोसो दूर थी .कांग्रेस के साथ सरकार बनाने की कबायद तेज हुई लेकिन कांग्रेस की तरफ से साफ़ कहा गया फारूक पिटे हुए मोहरे है सिर्फ ओमर अब्दुल्ला को आजमाया जा सकता है .हालत यह है कि जो काम पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद नही कर सका .वादी मे सरगर्म अलगाववादी संगठन नही कर सके वह काम ओमर अब्दुल्ला अपने चंद महीनो के शासन मे कर दिखाया .कश्मीर का एक आध इलाका नही बल्कि वादी के दस जिले लगातार चार महीनो से अस्तव्यस्त रहे १०० से ज्यादा बच्चे मारे गए .वादी के कामकाज ठप्प रहे .दरअसल लोगों का यह गुस्सा स्थानीय ओमर अब्दुल्ला सरकार के खिलाफ था लेकिन बड़ी चालाकी से इस नाकामी के लिए केंद्र को जिम्मेदार ठहरा दिया गया .आपदा प्रवंधन के जिम्मेदारी लेते हुए केंद्र सरकार ने अपनी पहल तेज की और जख्मों पर मरहम लगाने की शानदार पहल की .अब जब हालत फिर से सामान्य होने लगे है ओमर अब्दुल्ला एक नए सियासी चेहरे के साथ वापस आ गए है .कहा गया कि राहुल गाँधी ओमर अब्दुल्ला को हर हाल मे मुख्यमंत्री बने रहने की वकालत कर रहे है जाहिर है कश्मीर मे शांति बहाली के लिए केंद्र को दुसरे आप्शन ढूंढने पड़े .</div></div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;">कश्मीर भारत का अहम् हिस्सा है जाहिर है लोगों की मुश्किलों पर भी गौर करने की जरूरत है लेकिन अगर लोगों की शिकायत भ्रष्ट और अक्षम स्थानीय सरकार से है लेकिन बदले मे अगर श्रीनगर के सी आर पी ऍफ़ के बंकरों को हटाया जाय तो माना जायेगा कि केंद्र सरकार खुद समस्या से मुह चुरा रही है .पिछले वर्षों मे ६०० से ज्यादा नौकरशाह और राजनेताओं पर करोडो रूपये डकार लेने का आरोप है लेकिन यह सरकार एक भी व्यक्ति पर केस दर्ज नही कर सकी है .एक एक मंत्री के घरों के रंग रोगन पर करोडो अरबो खर्च किये जा चुके है लेकिन यह पूछने वाला नही है कि लोगों के पैसे की लूट पर यह सरकार चुप क्यों है .जाहिर है ओमर अब्दुल्ला अपनी हालत बेहतर समझते है सो भ्रष्टाचार और अक्षमता पर बोलने के बजाय उन्होंने मसले कश्मीर मे एक नयी सियासी पेंच डालने की कोशिश की है .ओमर अब्दुला मुख्यमंत्री से पहले देश के महत्वपूर्ण मंत्रालय मे मंत्री पद की शोभा बढा चुके है लेकिन उन्हें यह बात समझ मे आ गयी है कि वादी की सियासत मे अलगाववाद जरूरी है .ओमर अब्दुल्ला को लगा कि पी ड़ी पी का सियासी आधार अलगाववाद है सो उन्होंने झट से यह कह दिया कि कश्मीर का भारत के साथ पूर्ण विलय अभी होना बाकी है यानि कश्मीर की जो हैसियत गिलानी साहब देखते है वही हैसियत ओमर अब्दुल्ला के लिए भी है .कल तक अलगाववादी लीडरों के लिए ओमर अब्दुल्ला दुश्मन न १ था ,वादी मे मारे गए १०० से ज्यादा नौजवानों के लिए ओमर अब्दुल्ला जिम्मेदार था आज यही अब्दुल्ला सबके प्यारे हो गए है .खुद गिलानी इसे अपनी जीत बता रहे है .</div></div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"> अरबी में एक कहावत काफी प्रचलित है कि जिसने ज्यादा दुनिया घूमा हो वह उतना ही ज्यादा झूठ बोलता है . ओमर अब्दुल्ला अपने खानदान की नाकामयाबी को छुपाने के लिए सीधे झूठ और भ्रम का सहारा ले रहे है . उन्हें यह याद दिलाने कि जरूरत है कि १९४८ में जब पाकिस्तानी फौज ने कश्मीर पर आक्रमण किया था तो कश्मीर के हजारों लोगों ने पाकिस्तानी गुरिल्लाओं को रोका था . सैकडो की तादाद में लोग शहीद हुए थे . बारामुल्ला में पाकिस्तानी फौज ने सैकडो बहनों की असमत्दरी की थी .भारत में कश्मीर विलय का एलान होने के साथ ही भारतीय फौज ने पाकिस्तानी आक्रमणकारियों को मार भगाया था . भारतीय फौज के स्वागत में लाखों की तदाद में जमाहोकर कश्मीरियों ने भारत के प्रति अपने समर्थन का इजहार किया था . याद रखने वाली बात यह भी है कि वह शेख अबुल्लाह ही थे जिनके कहने पर पंडित नेहरु संयुक्त राष्ट्र गए और उन्होंने कश्मीर का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के हवाले कर दिया था ,जिसे हम पाकिस्तान मक्बूजा कश्मीर के नाम से जानते है . ओमर साहब को यह भी याद दिलाने की जरूरत है कि युसूफ शाह १९८९ तक एक आम कश्मीरी एक आम भारतीय ही था . भारतीय लोकतंत्र में उसे गहरी आस्था थी और उसने एम् एल ए के लिए पर्चा भी भरा था . लोग कहते है कि युसूफ शाह की जीत पक्की थी . लेकिन फारूक अब्दुल्लाह ने उसके सपने पर पानी फेर दिया उसे एम् एल ए नहीं बनने दिया गया . युसूफ शाह सैयेद शालाहुद्दीन बन गया . वह हिजबुल मुजाहिदीन का कमांडर चीफ बन बैठा . और जब कश्मीर में आतंकवाद का दौर शुरू हुआ तो फारूक अब्दुल्ला कश्मीर छोड़कर लन्दन भाग खड़े हुए . राजीव गांधी की भावुकता का नाजायज फायदा उठाकर फारूक अब्दुल्लाह १९९६ में ही दुबारा मुख्यमंत्री बनकर लौटे .जम्हूरियत का जितना बलात्कार ओमर साहब आपके खानदानो ने कश्मीर में किया शायद ऐसा भारत में कही हुआ हो . ३० साल तक शेख अब्दुल्लाह खानदान का जबरन कब्जा वादी मे लोगों का लोकतंत्र से भरोसा ख़त्म कर दिया था . .</div></div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><br />
</div></div></div><div style="font-size: medium; line-height: normal; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><div class="separator" style="clear: both; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEilNjTYMO9Y_SVTuXhSm5xQWigCub3cH0PDL9e-QEf_7HIHYcJLZmGVFkymC_FE09yCicNfPMQ9JhwDRCV2P8pTsdxSJF-bo2EQZt3H3MfhEIqbMpwkTUF-KEkBDtE6cTJHpUkyWHs5nWg/s1600/chidam.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEilNjTYMO9Y_SVTuXhSm5xQWigCub3cH0PDL9e-QEf_7HIHYcJLZmGVFkymC_FE09yCicNfPMQ9JhwDRCV2P8pTsdxSJF-bo2EQZt3H3MfhEIqbMpwkTUF-KEkBDtE6cTJHpUkyWHs5nWg/s1600/chidam.jpg" style="cursor: move;" /></a></div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;">पिछले वर्षों में भारत सरकार ने एक लाख हजार करोड़ से ज्यादा खर्च कश्मीर मे शायद इस भ्रम में किया है कि विकास की रफ़्तार के सामने में अलगाववाद की आवाज धीमी पड़ जायेगी । लेकिन ऐसा नही हुआ । पैसे की बौछार से कश्मीर में रियल स्टेट में बूम है । कस्बाई इलाके में भी शोपिंग मौल खुल गए हैं । लेकिन जब भी कोई आग भड़कती है तो वादी में जीवे जीवे पाकिस्तान की आवाज सबसे ज्यादा गूंजती है.... । क्या कभी हमने ये जानने की कोशिश कि क्या पैसा कश्मीर मसले का समाधान है ? भ्रष्टाचार के आकंठ मे डुबे कश्मीर के सियासतदान कभी भी यह स्वीकार नही करते है कि लोगों का भरोसा उन्होंने खोया है बल्कि हर बार वे कश्मीर को एक अलग समस्या बताते हुए सारा ठीकरा केंद्र के सर फोड़ देता देता है कलतक सोपोर मे केंद्रीय विश्विद्यालय की मांग करने वाले गिलानी साहब आज अगर दोबारा जनमतसंग्रह की मांग करने लगे है तो माना जायेगा कि कश्मीर मे अलगाववाद की सियासत को वहां की सरकारों ने जिन्दा रखी है .कश्मीर के लोग पाकिस्तान की हालत से भली भाति वाकिफ है सो वह गिलानी साहब के कहने से पाकिस्तान नही चले जायेंगे .उन्हें यह भी पता है अगर जनमतसंग्रह हुए भी तो उन्हें भारत और पाकिस्तान मे से किसी एक को चुनना होगा .आज़ादी का तीसरा विकल्प नही है .उन्हें यह भी पता है कि जनमत संग्रह कराने के लिए पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र की शर्तों को मानना होगा और उसे पाक अधिकृत कश्मीर से लेकर गिलगित बल्तिस्तान से अपने फौज हटाने होंगे और उन इलाकों को भारतीय फौज के हवाले करने होंगे .क्या पाकिस्तान कभी संयुक्त राष्ट्र की शर्तो को मानने के लिए तैयार होगा .क्या पाकिस्तान कभी भी इन इलाकों से पंजाब ,सिंध और पख्तून के लाखों लोगों को निकाल बाहर करेगा .पाकिस्तान खुद संयुक्त राष्ट्र के पुराने प्रस्ताव को बीते दिनों की बात कह रहा है लेकिन कश्मीर मे अलगाववादी संयुक्त राष्ट्र की बात करते है .जाहिर है वे लोगों से झूठ बोल रहे है और उनका यह झूठ तबतक चलता रहेगा जबतक कश्मीर मे भ्रष्टाचार कायम रहेगा और राजगद्दी की वंश परंपरा चलती रहेगी.आज अगर ओमर अब्दुल्ला विलय के ऐतिहासिक दस्तावेजो पर सवालिया निशान लगा रहे है तो यह माना जायेगा कि इन अब्दुल्लाओं ने भारत सरकार को बड़े ही हलके से लिया है .</div><div><br />
</div></div>vinod kumar mishrahttp://www.blogger.com/profile/10008067258866717206noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5622026231418338165.post-31601628282550426452010-09-20T11:20:00.000+05:302010-09-20T11:20:37.766+05:30गृह मंत्री जी ! क्यों गुस्से में है कश्मीरी नौजवान<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhsmLFCmje25wfej9OM1ra6ASWRnOJVYJ19oYJad7nReyJPlRK_IsHSJQQY7V3OYEewuKNOZcnA4UAIL7pxe4ByOW3cf8VAobFGv989dnnvkoO9fOS9H_R0pQLu2i5F-wqddUD_O3esGJ0/s1600/chidam.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; cssfloat: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="200" qx="true" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhsmLFCmje25wfej9OM1ra6ASWRnOJVYJ19oYJad7nReyJPlRK_IsHSJQQY7V3OYEewuKNOZcnA4UAIL7pxe4ByOW3cf8VAobFGv989dnnvkoO9fOS9H_R0pQLu2i5F-wqddUD_O3esGJ0/s200/chidam.jpg" width="181" /></a></div>सैयद अली शाह गिलानी आज कश्मीर मे सबसे बड़े कद्दाबर लीडर है या फिर राज्य की ओमर अबुल्ला की सरकार ने उन्हें इस मुकाम पर पहुँचाया है यह बहस का विषय है लेकिन इतना तो तय है कि गिलानी आज कश्मीर मे सियासी धारा को मोड़ने की ताक़त रखते है .सवाल यह है कि कश्मीर मे आज ओमर अब्दुल्ला सरकार की रिट चल रही है या गिलानी की ? इसका जवाब गिलानी साहब का हर्ताली कैलेण्डर है .कश्मीर मे कब बाजार खुलेंगे ,किस दिन ऑफिस खुलेंगे ,किस दिन बच्चे स्कूल जायेंगे यह तय गिलानी साहब करते है न कि ओमर अब्दुल्ला की सरकार .यानी व्यवस्था पर पूरी तरह से अलगाववादी नेता हावी है ,चुनाव से जीतकर आये जनप्रतिनिधि या तो कश्मीर छोड़ चुके है या फिर कही कोने मे दुबके है लेकिन सरकार ओमर अब्दुल्ला की चल रही है .क्योंकि यह जिद फारूक अब्दुल्ला की है या फिर ओमर अब्दुल्ला राहुल गाँधी की पसंद है . बाप फारूक अब्दुल्ला की सियासी महत्वाकांक्षा अगर कश्मीर मे भारत के अबतक किये गए तमाम प्रयासों पर पानी फेर रही है तो शेख अब्दुल्ला बनने की सियासी महत्वाकांक्षा पाले गिलानी साहब नौजवानों को इस खेल मे बली का बकरा बना रहे है .चार महीने पहले कश्मीर की हालत यह थी कि कश्मीर मे देशी -विदेशी शैलानियो की तादाद ७ लाख से ऊपर पहुँच गयी थी ,अमन के उस माहोल मे कोई गिलानी साहब का नाम लेने वाला नही था .कश्मीर की सियासत मे लगभग अपने को ख़ारिज मानकर सैयद अली शाह गिलानी दिल्ली स्थित अपने घर की चारदीवारी मे सिमट गए थे लेकिन ओमर अब्दुल्ला की सियासी नादानी इस शख्स को रातो रात हीरो बना दिया .आज कश्मीर मे शायद लोग जितने शेरे कश्मीर शेख अब्दुल्ला को नही जानता होगा उससे ज्यादा लोग आज गिलानी को जानते है<br />
.एक मासूम तुफैल अहमद की मौत से उठा बवाल ने अबतक १०० से ज्यादा नौजवान और बच्चो की जिन्दगी लील ली है लेकिन अबतक यह पता लगाया जाना बाकी है कि ये पत्थर चलाने वाले बच्चे गुस्से मे क्यों है ?<br />
२० -२५ साल का पढ़ा लिखा नौजवान आज क्यों गिलानी साहब के सुर मे सुर मिला रहा है ?क्यों पढ़े लिखे बच्चे गिलानी साहब के पीछे आज़ादी का नारा लगा रहा ?क्यों बरसो बाद कश्मीर मे एक बार फिर जीवे जीवे पाकिस्तान का नारा बुलंद है ?<br />
फारूक अब्दुल्ला कहते है कि इन बच्चो को ऑटोनोमी चाहिए ,गिलानी कहते है कश्मीर के बच्चे टोटल आज़ादी चाहते है .यही बात दुसरे अलगाववादी नेता भी कहते है .महबूबा से पूछिये ओ कहेंगी फौज को कश्मीर से हटालो बच्चे अपने आप खुश हो जायेंगे .हमारे गृह मंत्री कहते है कि कश्मीर की एक यूनिक समस्या है इसका हल भी यूनिक होना चाहिए ,सो वे मानते है कि इसका हल राजनीतिक है .गृह मंत्री कभी इस गुस्साए लोगों से नही मिले है लेकिन उन्हें कहा जाता है कि बच्चे आर्म्स फाॅर्स एक्ट हटाने से खुश हो जायेंगे तो कहते है इसे हटाना चाहिए ,उन्हें कहा जाता है कि कश्मीर से जो वादे किये गए थे उसे पूरा करने से गुस्साए नौजवान खुश हो जायेंगे तो गृह मंत्री उन तमाम पुराने समझौते को खंगालने मे व्यस्त हो जाते है लेकिन उनके साथ दिक्कत यह है कि उनके साथ मंत्रिमंडल और पार्टी मे कश्मीर के खेल मे उनसे बड़े खिलाडी है और चिदम्बरम साहब चुप चाप पहल करते करते अचानक खामोश हो जाते है .<br />
गृह मंत्री जी कश्मीर समस्या के राजनीतिक हल ढूंढने से पहले अगर नौजवानों के गुस्से को समझने की कोशिश की होती तो शायद उन्हें पुराने समझौते को लेकर उतनी माथा पच्ची नही करनी पड़ती .यह समस्या भ्रष्टाचार के आकंठ मे डुबे रियासत की है .कश्मीर मे सियासत की कीमत है अगर आप भारत के साथ है तो आपकी कीमत है अगर आप पाकिस्तान के साथ है तब भी आप की कीमत है .यानी यहाँ हर सियासी नारे की कीमत है .पिछले वर्षों मे यहाँ पानी की तरह पैसा बहाया गया है ,आर्थिक पैकेजों की झड़ी लगा दी गयी है . भारत सरकार का अनुदान यहाँ कर्ज नही है बल्कि यह मुफ्त का राशन है जिसे कुछ लोग आपस मे बाट लेते है .जिस कश्मीर को पिछले पांच वर्षों मे एक लाख करोड़ रूपये से ज्यादा रूपये मिले हों और उस कश्मीर मे आज भी अगर एक पढ़े लिखे नौजवान को सरकारी नौकरी के अलावा कोई विकल्प नही हो तो माना जायेगा कि इस रकम को कहीं लूट ली गयी है .कश्मीर मे किसी नेता पर कभी आपने भ्रष्टाचार का मामला नही सुना होगा .ओमर अब्दुल्ला सरकार के तीन मंत्रियों पर दुबई मे घर खरीदने की चर्चा अख़बारों मे आई लेकिन यह चर्चा कभी किसी लीडर ने नही उठाई क्योंकि इस हमाम मे सभी नंगे है .छोटे मुलाजिम से लेकर बड़े अधिकारी तक कश्मीर मे यह तादाद ९ लाख से ऊपर है .पिछले तीन महीने से स्कूल बंद है ,कॉलेज बंद है ,दफ्तर बंद है और मुलाजिम घर मे बैठे है लेकिन महीने की पहली तारीख को उनकी तनख्वा अकाउंट मे पहुँच जाती है.प्रति महिना कश्मीर की सरकार २००० करोड़ रुपया सैलरी बाटने पर खर्च करती है लेकिन उस सरकार की आमदनी १०० करोड़ के आंकड़े को भी नही पार कर पाती .यानी पैसा भारत सरकार का है तो ओमर अब्दुल्ला को दरिया दिली दिखाने से कौन रोक सकता है. क्या ओमर अब्दुल्ला आजतक अपने मुलाजिम को यह कह पाए है कि काम नही तो पैसा नही .कश्मीर के आज हर घर मे कोई न कोई सरकारी फर्द है लेकिन आज़ादी की बात आज हर घर से उठ रही है क्योंकि पैसा अपने आप हर घर मे पहुच रहा है ..क्या वे यह नही जानते कि कश्मीर की सरकार अपने बदौलत अपने मुलाजिम को एक दिन का भी तनख्वा नही दे सकती .लोग यह जानते है लेकिन भ्रष्ट व्यवस्था के लिए आज़ादी की मांग सबसे बड़ी ढाल है .<br />
कश्मीर के इन नौजवानों को पाकिस्तान की हालत हमसे ज्यादा पता है .उन्हें पता है कि पाकिस्तान के साथ उनका वही हश्र होगा जो कभी बंगलादेश का हुआ था ,आज बलूचिस्तान का हो रहा है .उन्हें पता है कि मजहब के नाम पर बने स्टेट मे लोगों की आज़ादी का मतलब क्या होता है .यही वजह है कि जब कभी भी जम्हूरियत की बात होती है तो आम लोग इस अमल मे बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते है ये अलग बात है कि वे हर बार ठगे जाते है ..क्योंकि सरकार के नाम पर वही पुराने चेहरे और वही भ्रष्ट लीडरों की फौज सामने आ जाती है .<br />
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सत्ता और पैसे का खेल जितना भारत समर्थित दल मे है उसे कही ज्यादा भारत विरोधी जमातों मे है .गिलानी साहब को इस दौर मे कड़ी चुनौती पूर्व आतंकवादी मशरत आलम से मिल रही है तो अपना आधार खो चुके मिरवैज ओमर फारूक गिलानी के असर को कम करने के लिए ओमर अब्दुल्ला से मदद मांगता है .अगर यह सियासत आग जलाने से ही चलती है तो कश्मीर मे ईद के दिन आग जलाने की छूट मिरवैज ओमर फारूक को भी मिली .सरकार आज तक गिलानी पर कुछ करवाई नही कर सकी तो मिरवैज अपने है .<br />
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ये सारे खेल इस लिए नही चल रहे है क्योंकि कश्मीर एक मुस्लिम बहुल राज्य है या फिर वहां के लोग अतिवादी है यह खेल इसलिए चल रहा है क्योंकि वहां लोग अपने को भारत से अलग मानते है .वहां जम्हूरियत अपनी ज़मीन नही बना सकी है .यह ज़मीन कभी ऑटोनोमी से नही बनेगी यह ज़मीन फौज हटाने से नही बनेगी या फिर ये ज़मीन आज़ादी मिलने से नही बनेगी .भारत के रहने वाले ११ करोड़ मुसलमानों का समर्थन आज अगर कश्मीरियों के साथ नही है तो यह जाहिर है कि वे उनके पाखंड को जानते है .जो मुसलमान फिलिस्तीन के सवाल पर इराक के सवाल पर दुनिया के किसी हिस्से मे मुसलमानों पर हुए अत्याचार के खिलाफ पुरे भारत मे जोरदार प्रदर्शन करता है आज वे कश्मीर मे तथाकथित ज्यादतियों के खिलाफ चुप क्यों है ?इस अर्थ को समझना होगा . कश्मीर का मतलब सिर्फ वादी के दस जिले नही है उसमे जम्मू और लद्दाख का भी अस्तित्व है ..धारा ३७० की बात हो या स्पेशल एस्टेट्स की इससे आम लोगों का कुछ भी भला नही हुआ है इस स्पेशल ने कुछ लोगों को कश्मीरियों को धोके मे रखकर अपना उल्लू सीधा करने का मौका जरूर दे दिया है .vinod kumar mishrahttp://www.blogger.com/profile/10008067258866717206noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5622026231418338165.post-85142293008994505962010-09-07T11:36:00.000+05:302010-09-07T11:36:47.652+05:30vinod mishra ka blog: नक्सली समस्या की जड़ दिल्ली है<a href="http://hamargam.blogspot.com/2010/09/blog-post.html"> नक्सली समस्या की जड़ दिल्ली है</a>bakwas reporthttp://www.blogger.com/profile/12100394842727069707noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5622026231418338165.post-15319400822284111802010-08-08T14:55:00.000+05:302010-08-08T14:55:58.336+05:30vinod mishra ka blog: तो क्या कश्मीर मसले का हल सिर्फ जनमतसंग्रह है ?<a href="http://hamargam.blogspot.com/2010/08/blog-post.html"> तो क्या कश्मीर मसले का हल सिर्फ जनमतसंग्रह है ?</a>bakwas reporthttp://www.blogger.com/profile/12100394842727069707noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5622026231418338165.post-37022144538077804962010-06-20T11:07:00.000+05:302010-06-20T11:07:57.932+05:30नीतीश जी को गुड से नहीं गुलगुले से है परहेज<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiembZfnOfVAoMZiekDfDw0ruR_P4YnoctotrMFnzyJ5qQKhZd7KzDUPVDxttsazJPi9PC18g5sg3QTwm32O4UgKfJbXN16aXHiy_Etahtzq1D8WY19Km5OkrJtzdFgyJVO3Kl-Et6nQT4/s1600/nitis.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiembZfnOfVAoMZiekDfDw0ruR_P4YnoctotrMFnzyJ5qQKhZd7KzDUPVDxttsazJPi9PC18g5sg3QTwm32O4UgKfJbXN16aXHiy_Etahtzq1D8WY19Km5OkrJtzdFgyJVO3Kl-Et6nQT4/s320/nitis.jpg" /></a></div><br />
बिहार एक बार फ़िर चर्चा में है । चर्चा के कई कारण है . ६ महीने बाद वहा चुनाव होने वाले है लेकिन असली चर्चा का विषय सत्ता समीकरण को लेकर जोड़ -तोड़ है. नॅशनल मिडिया मे खबर के लिए कुछ लोग आदर्श है जिसमे नरेन्द्र भाई मोदी का नाम सबसे ऊपर है .सो राष्ट्रीय मिडिया मे प्राइम टाइम झटकने के लिए नीतीश ने नरेन्द्र मोदी को निशाना बनाया है .कोशी बाढ़ पीड़ित सहायता राशि गुजरात को लौटकर नीतीश ने अपने सेकुलर छवि पर बने दाग को लगभग धो लिया है .वह पैसा गुजरात के लोगों का था लेकिन नीतीश ने उसे मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को लौटा दिया है .वह पैसा कोशी के बाढ़ पीड़ितों के नाम था लेकिन वह कर्ज नीतीश जी ने खुद उतरा है .हो सकता है कि आने वाले समय मे गुजरात के लोग और लम्बा फेहरिस्त दे ,तो नीतीश जी पाई पाई चुकाने के लिए केंद्र से कुछ उधार भी लें .हो सकता है इस बहाने वे कांग्रेस के कुछ और करीब आयें .जहाँ तक मुझे याद है गुजरात से करोड़ों रूपये की राहत सामग्री बाढ़ पीड़ितों को लिए भेजी गयी थी .लेकिन सवाल इमेज का है सवाल वोट का है तो नीतीश जी अपने को सेकुलर मनवाने के लिए कुछ भी कर सकते है .हो सकता है कि अगर गुजरात से यह मांग तेज हुई कि अपने बिहारी मजदूर को वापस ले जाओ तो नीतीश जी एक क्षण भी गुजरात सरकार का यह एहसान नहीं लेंगे और तमाम मजदूरों को वापस बिहार ले आयेंगे .सवाल सेकुलर का है सवाल ईमान का है सो हो सकता है कि नीतीश अपने सरकार को भी दाव पर लगा दे .क्योंकि उन्हें पता है कि इस देश के सियासी दूकान मे सेकुलारिजम सबसे ज्यादा बिकता है .<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiVJG3Sw4iT8si7mReuZ_Ga5SHuED05HtJas8OGaixueUeJK-ETrje5WaIeH4Zb97xKzq0rEhc9jYzPuczpdAwDv_FVjHv5Tz-Wh_OgV0DqpKhFirqtwBGITPA-gdycZ5Y_4oCoWvVM6cY/s1600/nittee.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="166" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiVJG3Sw4iT8si7mReuZ_Ga5SHuED05HtJas8OGaixueUeJK-ETrje5WaIeH4Zb97xKzq0rEhc9jYzPuczpdAwDv_FVjHv5Tz-Wh_OgV0DqpKhFirqtwBGITPA-gdycZ5Y_4oCoWvVM6cY/s200/nittee.jpg" width="200" /></a></div> पिछले एक दशक से बीजेपी के साथ गलबहिया डाल कर नीतीश अपनी सियासी नैया को पार लगा रहे है .बिहार मे बीजेपी के साथ मिलकर सरकार चला रहे है .बिहार मे बीजेपी विधायकों की संख्या ५५ है लेकिन सरकार को वन मैन शो की तरह नीतीश चला रहे है .नीतीश को बीजेपी से परहेज नहीं है लेकिन उन्हें नरेन्द्र मोदी से परहेज है क्योंकि वे लालू की राजनीती से आज भी डरते है, क्योंकि वे कांग्रेस को एक बेहतर ओपसन मानते है अगर ये पार्टियाँ मोदी को सांप्रदायिक कह रही है तो नीतीश को मोदी से परहेज करना ही होगा .बिहार मे लोग कहते है कि नीतीश को गुड से नहीं गुलगुले से परहेज है .लेकिन सवाल यह है कि जब भारत के एक संवैधानिक दायित्वा की जिम्मेदारी नरेन्द्र मोदी पर है देश के किसी अदालत ने उसे आज तक सांप्रदायिक करार नहीं दे सकी है .चुनाव आयोग के सामने नरेन्द्र मोदी सेकुलर है तो क्या मोदी इसलिए कोमुनल है क्योंकि यह बात कांग्रेस कह रही है ,यह बात लालू यादव कह रहे है .याद कीजिये बिहार मे २० साल लालू ने बीजेपी का खौफ दिखाकर बिहार की व्यवस्था को रौंदा .आज भी वो अपने आप को सबसे बड़ा सेकुलर नेता बता रहे है लेकिन सवाल यह है कि फिर मुसलमानों ने उनका साथ क्यों छोड़ा ?.क्यों उनके २० साल के राज मे भागलपुर के दंगा पीड़ितों को न्याय नहीं मिल पाया ?.क्यों बिहार के तमाम हस्तकरघा उद्योग ठप पड़ गए ?.राज्य मे १६ फिसद मुलमानो मे कितने लोग सत्ता और सरकारी नौकरियों मे अपनी जगह बना पाए ?.तो क्या यह नहीं माना जाय बीजेपी का भूत दिखाकर लालू ने मुसलमानों के साथ धोखा किया है .<br />
<div>इंडिया टुडे के हालिया कानक्लेव मे बिहार को तक़रीबन हर मामले मे पिछड़ा राज्य घोषित किया गया था । अग्रिम राज्यों की सूची मे हिमाचल ,दिल्ली से लेकर पंजाब ने लगभग सभी पुरस्कार झटक लिए । बिहार और उत्तर प्रदेश का कोई नाम लेने वाला नही था । कह सकते है की आर्थिक प्रगति ने उत्तर और दक्षिण की खाई को बढ़ा दी है ।लेकिन बिहार में नीतीश के दौर मे एक भरोसा जगा है विकास की नयी सोच बनी है .ज़मीन पर विकास की परिकल्पना दिखने लगी है .मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विश्वास यात्रा के रथ पर सवार होकर पुरे बिहार का दौरा कर रहे है .जाहिर है उन्हें लोगों का समर्थन भी मिल रहा है .फिर क्या वजह है कि नीतीश लालू -पासवान से इतने भयाक्रांत है कि वे बात बात पर नरेन्द्र मोदी को कोस रहे है और अपने सेकुलर साबित करने के लिए नरेन्द्र मोदी को गुजरात दंगे का दोषी करार दे रहे है .यानि जो फैसला अभी तक देश की अदालत नहीं दे सका है वह फैसला नीतीश सुना रहे है .अगर नरेन्द्र मोदी सांप्रदायिक है तो पूरी बीजेपी सांप्रदायिक है फिर नीतीश को बीजेपी से क्यों परहेज नहीं है . अगर नीतीश सचमुच विकास पुरुष बनना चाहते है तो उन्हें नरेन्द्र मोदी से प्रेरणा लेने की जरूरत है लेकिन अगर नीतीश मोदी से घृणा का स्वांग रच रहे है तो कहा जायेगा कि वे लोगों को धोखा दे रहे है .</div><div>आज तरक्की के मामले मे अगर बिहार को तीन प्रमुख राज्यों की सूचि में रखा जाता है तो यह किसी बिहारी के लिए गर्व की बात हो सकती है । पिछले साल बिहार की यह आर्थिक प्रगति हरियाणा के करीब था यानि लगभग ११ फीसद । यह प्रगति औद्योगिग क्रांति की नही है ,यह प्रगति राज्य मे भारी पूजी निवेश की नही है ,यह प्रगति बिहारी कामगारों की बदौलत सम्भव हो सकी है । आज भी बिहार के हजारो गाँव मनिओर्देर इकोनोमी के बूते कामयावी की अलग तस्वीर पेश कर रहे है । वही गाँव जो कल तक कभी बाढ़ तो कभी सुखा के कारण जर्जर हालत मे थे वहां लोगों के चेहरे पर मुस्कान देखी जा सकती है । आज इन्ही गाँव के बच्चे सुपर ३० और सुपर ६० से कोचिंग लेकर आई आई टी मे अब्बल दर्जा पा रहे है । इन्ही गाँव के हजारो बच्चे दिल्ली ,उत्तर प्रदेश , दक्षिण के राज्यों मे माता पिता की मोटी रकम खर्च करके ऊँची शिक्षा हासिल कर रहे है । कह सकते है कि बिहार के मध्यवर्गीय समाज ने देश की मुख्यधारा मे अपने बच्चो को शामिल करने के लिए अपना सबकुछ कुर्बान कर रखा है । अनपढ़ और कम पढ़े माता पिता को भी पता है कि पुरी दुनिया आज ग्लोबल विलेज का हिस्सा है जहा सिर्फ़ ज्ञान का चमत्कार का है ।सुपर ३० और ६० के चमत्कार को पूरी दुनिया ने सराहा है जहाँ दलित ,पिछड़े और गरीबों के बच्चे आई आई टी मे अब्बल आ रहे है .लेकिन आज भी यहाँ की राजनीती दलित -महादलित ,पिछड़ा -अति पिछड़ा ,सेकुलर -कोमुनल मे बाट कर बिहार को दुबारा उसी जातिवाद के दल दल मे धकेल रही है .</div><div> जातीय समीकरण के आधार खिसक रहे है लेकिन राजनीती इस जातीय समीकरण को जिन्दा रखने के लिए जदोजेहद कर रही है । बिहार की चिंता बिहार से बाहर रहने वाले लोग ज्यादा कर रहे है । बिहारी कहलाने का अपमान पी कर भी निरंतर बिहार की सम्पनता में अपनी भूमिका निभा रहे है . सियासत से उन्हें कोई लेना देना नही क्योंकि उन्हें जात से नही बिहार से प्यार है ।ओछी सियासत करने के वजाय नीतीश विकास के नाम पर ही अगर अपने विश्वास यात्रा को कायम रखें तो बिहार के लिए यह भी एक महान कार्य होगा .</div><div><br />
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</div>vinod kumar mishrahttp://www.blogger.com/profile/10008067258866717206noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5622026231418338165.post-66842197246231173092010-06-10T13:10:00.000+05:302010-06-10T13:10:48.139+05:30मसले कश्मीर को वाजपेयी के नजरिये से देखिये<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh8IazuDiy81GTtBPBTLzE9pwsPqCBLEkN9o3nvKnhzB-9jQQlcUvd4uXK0WEp-DxGNl7uzc2HJVUCRUwGU0fCgmPfTnNSr1YJsECYsQqGHKz0_-l7WNJKj5-638tM6AhB4CjHFD3btHYc/s1600/vajpayee.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; cssfloat: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" qu="true" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh8IazuDiy81GTtBPBTLzE9pwsPqCBLEkN9o3nvKnhzB-9jQQlcUvd4uXK0WEp-DxGNl7uzc2HJVUCRUwGU0fCgmPfTnNSr1YJsECYsQqGHKz0_-l7WNJKj5-638tM6AhB4CjHFD3btHYc/s320/vajpayee.jpg" /></a>२००३ के मई महीने मे प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का कश्मीर दौरा कई मायने मे खास था .रियासत के विधान सभा चुनाव के बाद वहां नयी सरकार आई थी .लम्बे वक्त के बाद लोगों मे लोकतंत्र के प्रति भरोसा जगा था .जम्मू कश्मीर के इतिहास मे वह पहला चुनाव था जिसमे धांधली के कोई आरोप नहीं लगे थे .वाजपेयी ने जैसा कहा वैसा ही फ्री एंड फेयर चुनाव की बात को साबित किया .जाहिर है १९८७ के बाद अटल जी पहले प्रधान मंत्री थे जिन्होंने कश्मीर के आवाम के साथ सीधा मुखातिव हुए .यह कोई नहीं जान रहा था कि इस आवामी सभा को संवोधन करते हुए वाजपेयी क्या ऐलान करेंगे .उन्होंने गुलाम एहमद महजूर का मशहूर शेर पढ़ा "बहारे फिर से आयेंगी .... और लोगों को दिल जीत लिया .कश्मीर से ही उन्होंने पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ आगे बढा कर हर को सकते मे डाल दिया था .पाकिस्तानी सद्र परवेज़ मुशर्रफ़ के भारत विरोधी अभियान की काट मे वाजपेयी के इस नए प्रस्ताव ने सबको चौका दिया था .वाजपेयी के साथ गए उनके सलाहकार भी प्रधान मंत्री के ऐलान से अचंभित थे .लेकिन लोगों के प्रधानमंत्री ने ये तमाम फैसले लोगों के बीच करना उचित समझा था ..वाजपेयी को किसी ने पूछा हुर्रियत के लोग संविधान के दायरे मे बात नहीं करेंगे ,उन्होंने कहा था वे संविधान के दायरे मे नहीं तो दिल के दायरे मे तो बात कर ही सकते है .१७ साल के बाद वादी के अलगाववादी जमात ,हुर्रियत कांफ्रेंस वाजपेयी से बात करने दिल्ली आयी थी .यह वाजपेयी का चमत्कार था कि भारत पाकिस्तान के रिश्तो पर जमी बर्फ पिघली तो कश्मीर मे लोगों को भारत को लेकर एक उमीद बनी .उस दौरे पर २४००० करोड़ रूपये का आर्थिक पकेज का ऐलान वाजपेयी ने भी किया था ,कश्मीर मे ट्रेन की कवायद तेज करने की पहल उन्होंने ही की थी लेकिन वे जानते थे कि ये तमाम पॅकेज बेकार है जब तक यहाँ राजनितिक पॅकेज नहीं दिए जायेंगे .हुर्रियत लीडर मौलाना मौलाना अब्बास अंसारी ने एक बार मुझे बताया था कि वाजपेयी का राजनीती से सन्यास उनलोगों के लिए सबसे बड़ा हादसा था .हुर्रियत के लीडर मानते है कि अगर वाजपेयी होते तो यह मसला अब तक ख़तम हो गया होता .यही बात पाकिस्तान से लौटे एक पत्रकार ने मुझे बताया था कि "पाकिस्तान मे आप जहाँ भी जाय अगर लोग ये जान गए कि आप भारत से है तो पहला सवाल वाजपेयी के लिए पूछेंगे .लोग पूछते है क्या वाजपेयी दुवारा नहीं आयेंगे"</div>लोगों की ये तड़प अटल जी के लिए क्यों है तो उसकी वजह जानी जा सकती है .मौजूदा प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह के कश्मीर के हालिया दौरे को लेकर यहाँ के लोगों मे भारी उम्मीदे थी .लोग प्रधानमंत्री के आर्थिक पॅकेज के लिए व्याकुल नहीं थे उन्हें यह लग रहा था कि बेलगाम अलगाववाद को नियंत्रित करने के लिए प्रधानमंत्री कुछ ऐलान करेंगे .कश्मीर मे बंद हड़ताल से अस्त व्यस्त जिन्दगी को उनके महज एक सियासी ऐलान से लोगों को काफी राहत मिल सकती थी .लेकिन प्रधान मंत्री बंद ऑडिटोरियम मे हजार करोड़ पॅकेज के ऐलान मे मशगुल रहे तो बांकी समय कश्मीरी आई ऐ एस टौपर शाह फैसल का गुणगान करते नज़र आये .प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्ला के पॉवर पॉइंट प्रेजेंटेसन देखकर इतने गद गद थे कि उन्हें होनहार और लायक मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्ला मे जम्मू कश्मीर का भविष्य सुरक्षित नज़र आया .लेकिन सवाल यह उठता है कि जो प्रधान मंत्री शायद ही किसी राज्य का दौरा करते है .साल मे वे जितनी बार विदेशों का दौरा करते है उसका अगर एक फिसद मौका किसी राज्य को दे तो लोग धन्य हो जाय .ऐसे ओमर अब्दुल्ला के पॉवर पॉइंट प्रेजेटेसन को देखने कश्मीर जाने की क्या जरूरत थी .यह काम प्रधानमंत्री अपने ऑफिस मे भी कर सकते थे .देश के गृह मंत्री नक्सल समस्या से निपटने के नाम पर यह कह कर पल्ला झाड लेते है कि उन्हें इसके लिए मैंडेट नहीं मिला हुआ है तो क्या हमारे प्रधानमंत्री को किसी सियासी फैसले लेने के लिए मैंडेट नहीं मिला हुआ है ?यह एक बड़ा सवाल है .<br />
रियासत के विकास के लिए ६७ परियोजना पर काम चल रहे है जिस पर ४६ हजार करोड़ रूपये खर्च किए जा रहे हैं । श्रीनगर के मुनिसिपल से लेकर डललेक की सफाई पर करोडो रूपये खर्च किए जा रहे है । लेकिन कश्मीर में जब देश के प्रधानमंत्री का दौरा होता है तो लोग हड़ताल पर होते है , बाज़ार बंद होते हैं , गलियां वीरान पड़ी होती है । प्रधानमंत्री का स्वागत कुछ इस तरह होता है कि अगर हिफाजत में थोडी सी ढील दी जाय तो उत्साही नौजवान प्रधानमंत्री के सामने आकर कश्मीर बनेगा पाकिस्तान का नारा लगा सकते है । आप इसे कामयाबी माने या नाकामयाबी प्रधानमंत्री का कश्मीर दौरे के समय पुरे कश्मीर में कर्फु जैसा माहोल होता है ।<br />
पिछले पाँच वर्षों में भारत सरकार का ६० हजार करोड़ से ज्यादा खर्च शायद इस भ्रम में किया गया की विकास की रफ़्तार के सामने में अलगाववाद की आवाज धीमी पड़ जायेगी । लेकिन ऐसा नही हुआ । पैसे की बौछार से कश्मीर में रियल स्टेट में बूम है । कस्बाई इलाके में भी शोपिंग मौल खुल गए हैं । लेकिन जब भारत और पाकिस्तान का मामला सामने आता है तो वादी में जीवे जीवे पाकिस्तान की आवाज सबसे ज्यादा गूंजती है.... । क्या कभी हमने ये जानने की कोशिश कि क्या पैसा कश्मीर मसले का समाधान है ? हमें यह याद रखना चाहिए कि बिहार में आज २० लाख से ज्यादा लोग कोसी की बाढ़ के कारण घर से बेघर है । इसका समाधान महज २०० -४०० करोड़ रूपये खर्च करके ढूंढा जा सकता था . कोसी पर बाँध और बराज बनाने से मिथिलांचल में विकास की रफ्तार तेज की जा सकती है ,लेकिन ऐसा नही हो रहा है ।<br />
कश्मीर की इन राजनितिक पेचदीगियो पर राज्य के वर्तमान राज्यपाल एन एन वोहरा पिछले १० वर्षों नज़र रखे हुए है लेकिन कामयाबी के नाम पर उन्होंने जम्मू कश्मीर की मौजूदा सूरते हाल को देश को तोहफे के तौर पर दिया है । यही हाल कमोवेश पीएमओ और गृहमंत्रालय की भी है और देश के प्रधानमंत्री एक बार फिर पैसे का बौछार करके खाली हाथ वापस दिल्ली लौट आता है ।<br />
कश्मीर का अलगाववाद मजहब के वजूद पर खड़ा है । हुर्रियत लीडर सैयेद अली शाह गिलानी का अपना तर्क है , मुसलमान होने के नाते कश्मीर सिर्फ़ पाकिस्तान का ही अंग हो सकता है । गिलानी की इस दलील को थोड़ा संशोधन करके ओमर फारूक और यासीन मालिक कश्मीर की आजादी की मांग करते है । यानि हिंदुस्तान से पैसा आ रहा है उन्हें कोई परहेज नहीं है लेकिन कश्मीर में हिंदुस्तान की सियासत नहीं चलनी चाहिए । कश्मीर में भारत की सियासत भी अजीब है , नेहरू जी के लिए कश्मीर का मतलब सिर्फ़ शेख अबुल्लाह से था , शेख साहब ने कहा हमें धारा ३७० चाहिए ,नेहरू जी ने कहा तथास्तु । शेख साहब की जिद थी कि पाकिस्तान कब्जे वाला कश्मीर पाकिस्तान के पास ही रहे , नेहरू जी ने कभी उस कश्मीर का दुबारा नाम नही लिया । शेख अब्दुलाह के बाद फारूक अब्दुल्लाह सामने आए । केन्द्र की सरकार जोड़ तोड़ करके फारूक को सिंहासन सौपती रही । फारूक से जी भरा तो मुफ्ती साहब सामने आए । उनकी बेटी पाकिस्तान के सद्र के इस बयान की आलोचना करती है की जरदारी साहब ने कश्मीर में सक्रिय आतंकवादियों को दहशतगर्द कहा था । महबूबा के लिए भी ये दहशतगर्द नही है ये जेहादी नहीं हैं । ये स्वतंत्रता सेनानी है । महबूबा जम्मू कश्मीर में अगले मुख्या मंत्री के दावेदार हैं । सोनिया जी और प्रधानमंत्री के साथ उनके बेहतर रिश्ते है .लेकिन भारत विरोधी अभियान छेड़ कर महबूबा कश्मीर मे अपनी सियासी पकड़ और मजबूत करना चाहती है . तो फ़िर कश्मीर की आजादी मांगने वालों के बीच से क्यों न मुख्यमंत्री का दावेदार ढूंढा जाय । पुराने चेहरे को सामने लाकर कश्मीरियों को चिढाने के वजाय क्या यह जरूरी नहीं है कि नए चेहरे को सामने लाया जाय । याद रहे कश्मीर में अलगावाद का जनक माने जाने वाले गिलानी साहब तीन बार एम् एल ऐ रह चुके है । हिजबुल मुजाहिद्दीन के सरबरा सलाहुद्दीन असेम्बली के चुनाव लड़ चुके हैं । ये अलग बात है कि फारूक अब्दुल्लाह के कारण उसे एम् एल ऐ नहीं बनने दिया गया । आज जरुरत है सियासी पहल की , पैकेज को भूल कर हमें एक सर्वमान्य लीडर खोजने होंगे जिसका कश्मीर के आम लोगों में पहुच हो । हमें इस गलती को भी सुधारने होंगे कि कश्मीर का मतलब सिर्फ़ वादी नहीं है , जम्मू का अपना अस्तित्वा है लदाख में भी लोग रहते है जो विशुद्ध भारतीय हैं । लेकिन केन्द्र सरकार कि ग़लत राजनीतिक फैसले ने कश्मीरी पंडित को सियासी धारा से अलग कर दिया , कश्मीर के गुर्ज्जर ,जम्मू की बड़ी आवादी , लदाख और कारगिल के लोग इस धारा से काट दिए गए । यही वजह है की महज २० फीसद सुन्नी मुसलमान की आवाज न केवल सियासी धारा को अपने साथ ले गई बल्कि भारत से आने वाले पैसे का भी जमकर लुत्फ़ उठाया है ।ये बदला हुआ कश्मीर है जहाँ सबसे बड़ा जेहादी सैयेद शालाहुदीन ६३ साल की उम्र मे अपने एक आतंकवादी कमांडर की विधवा से शादी रचा रहा है .हिंसा का दौर लगभग ख़तम हो चूका है .नौजवान एक बेहतर जिन्दगी जीने के लिये जदोजेहद कर रहा है और कामयाब भी हो रहा है .पाकिस्तान लोगों के दिलो दिमाग से बाहर है .ऐसे मौके पर देश के प्रधानमंत्री की एक छोटी सियासी पहल कश्मीर मे बाहर फिर से लौटा सकती है .vinod kumar mishrahttp://www.blogger.com/profile/10008067258866717206noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5622026231418338165.post-9977995156237176842010-05-30T07:39:00.000+05:302010-05-30T07:39:13.897+05:30१२४ लोगों की हत्या के लिए माफ़ी कौन मांगेगा ?<div class="separator" style="clear: both; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjd0FWzbsgeu9uj27zcpOBGQLloTjh6nGluXVPBd6iUkMAqN4xC21sCjYxJOSSJu3bm1IbUedneCAZZpL0lsUjONzqM2QXHVxjo-W8xrVXenLYcUoMHjVOPJYABbVbzh-CLv9zgLOeXfpk/s1600/train.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="150" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjd0FWzbsgeu9uj27zcpOBGQLloTjh6nGluXVPBd6iUkMAqN4xC21sCjYxJOSSJu3bm1IbUedneCAZZpL0lsUjONzqM2QXHVxjo-W8xrVXenLYcUoMHjVOPJYABbVbzh-CLv9zgLOeXfpk/s200/train.jpg" width="200" /></a></div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><br />
</div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;">पश्चिम बंगाल के मिदनापुर इलाके मे इस बार मओवादियो के निशाने पर मुंबई -हावरा एक्सप्रेस ट्रेन आई .जिसके चपेट मे १०० से ज्यादा लोग बे मौत मारे गए .पश्चिम बंगाल पुलिस का दाबा है की नक्सली समर्थित पी सी पी ऐ यानि पीपुल्स कमिटी अगेंस्ट पुलिस अट्रोसिटी के दस्ते का यह कुकृत्य है .यानी वह वही कमिटी है जिसने मिदनापुर के तीन जिलों मे ममता बनर्जी का आधार मजबूत किया है .माता दीदी की ट्रेन निशाने पर है लेकिन मारे जा रहे है आम लोग .भला दीदी के सेहत पर क्या फर्क पड़ता है ?.लेकिन पश्चिम बंगाल के मुनिसिपल चुनाव ने ममता दीदी की मुश्किलें बढा दी है .सो ममता कह रही है कि कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है यानि इस हादसे की जिम्मेदारी राज्य सरकार को लेनी चाहिए .जब की राज्य सरकार सारा दोष ममता के सर डाल रही है और नाक्साली चुप चाप तमाशा देख रहे है .राजधानी एक्सप्रेस से लेकर कई गाड़िया मिदनापुर इलाके मे नक्सालियों के सोफ्ट टार्गेट बने है लेकिन हर बार ममता दीदी ख़ामोशी ही बरती है .तो क्या नक्सलियों ने अपनी रणनीति मे परिवर्तन लाया है .क्या बड़े हमले करके नक्सली राष्ट्रीय स्तर पर इसकी धमक बनाना चाहते है .लेकिन सरकार खामोश है .बीजेपी कह रही है कि नक्सली राष्ट्रीय समस्या है लेकिन केंद्रीय गृह मंत्री कह रहे है कि उन्हें नक्सलियों के खिलाफ अभियान छेड़ने के लिए मैंडेट नहीं मिला हुआ है .ये मैंडेट वे किससे मांग रहे है यह एक बड़ा रहस्य है .हालत यह है कि दंतेबाड़ा मे नक्सली हमले मे सी आर पी ऍफ़ के ७६ जवानों की मौत से आह़त गृह मंत्री चिदंबरम ने कहा था कि बक स्टॉप विथ मी यानि बड़ा दिल दिखाते हुए इस नाकामयाबी कि जिम्मेदारी खुद पर ली थी लेकिन ठीक एक हफ्ते के बाद उसी दंतेबाड़ा मे नाक्साली हमले मे मारे गए ५६ एस पी ओ और आम आदमी को लेकर गृह मंत्री ने जम कर राज्य सरकार की खिचाई की .आखिर एक ही हप्ते मे क्यों बदल गए है गृह मंत्री ?यह उनकी राजनितिक मजबूरी है या फिर आलाकमान का दवाब .आज अगर नक्सल समस्या को लेकर कांग्रस नेता द्विगविजय सिंह अगर चिदम्बरम को नशिहत दे रहे है तो समझा जा सकता है कि कहानी मे दर्द कहाँ है ?</div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;">पिछले वर्षो मे नक्सली हमले का जायजा ले तो हर साल नक्सली तक़रीबन १५०० वारदातों को अंजाम दे रहा है जिसमे ७००-८०० के करीब आम आदमी मारे जा रहे है .इस साल के आंकड़े पर गौर करे तो तक़रीबन ५ से ७ लोग हर दिन नक्सली हमलों के शिकार हो रहे है .लेकिन सरकार की ओर से राजनीती का सिलसिला जारी है .नक्सल समस्या को जानने की कोशिशे जारी है .नक्सल के खिलाफ किस तरह का ऑपरेशन हो और इसकी जिम्मेदारी कौन ले ,इसपर भी बहस जारी है .यह बहस प्रधान मंत्री के कार्यालय से लेकर क्लबो और फैव स्टार होटलों मे चलाये जा रहे है लेकिन ठोस पहल अभी कोसो दूर है .यानी जिस तरह पिछले वर्षों मे कश्मीर की आतंकवादी समस्या को लेकर कई दूकाने खुली ठीक उसी तरह नक्सल समस्या को लेकर दुकाने सजाई जा रही है .आईडिया बेचने के लिए हर के पास कुछ न कुछ जरूर है .</div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;">लेकिन इन तमाम बहस को पीछे छोड़ते हुए एक कुशल युद्ध विशेज्ञ की तरह नक्सली न केवल अपना आधार मजबूत कर रहा है बल्कि सरकार को हर मोर्चे पर शिकस्त दे रहा है .यानी बड़ी ही चतुराई से नक्सली इस जंग मे केंद्र सरकार को चुनौती दे रहा है और नोर्थ ब्लोक मे बैठे कमांडर इन चीफ बचाव की मुद्रा मे कोई न कोई बहाना ढूंढ़ रहा है .अगर आप नक्सलियों का कश्मीर के आतंकवादियों के साथ तुलना करे तो नक्सली कई मामले मे उनसे २० है .यानी सुरक्षावालों के खिलाफ कारवाई मे नक्सली को कोई नुकसान नहीं उठाना पड़ रहा है .अगर नुकसान की तुलना करे तो १० जवानों की मौत के बदले नक्सली अपने एक या दो कैडर खोता है .जबकि हर नक्सली हमले के बाद सुरक्षावालों को अपना कैम्प बदलने या बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ता है .कश्मीर मे आज आतंकवादी और सुरक्षवालो के बीच मौत का अंतर १:३३ है जबकि नक्सल प्रभवित राज्यों मे यह आंकड़ा १०:१ है .लेकिन सरकार के सामने कोई रणनीति नहीं है .खास बात यह है कि वोट की सियासत नक्सलियों को और मजबूत कर रही है .पश्चिम बंगाल इसका सबसे बड़ा उदाहरण है .</div><div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;">ये ममता दीदी का मिदनापुर है या माओवादी दादा का ठीक ठीक कहना थोड़ा मुश्किल है लेकिन यह दावे के साथ कहा जा सकता है <span class="">कि </span>यह अव्यवस्था का लालगढ़ है । बस्तर के बाद यह नक्सालियों का सबसे बड़ा लिबरेटेड <span class="">जोन </span>बना और सरकार को मजबूरन करवाई करनी पड़ी । ३० साल के वामपंथी सरकार की अव्यवस्था का जीता जगता सबूत है लालगढ़ । पिछलेसाल से नक्सली बुद्धदेव सरकार को खुली चुनौती दे रहे है । लालगढ़ में नाक्साली रैली <span class="">निकाल </span>रहे थे प्रेस कांफ्रेंस कर रहे थे और राज्य सरकार चुपa चाप तमाशा देख रही थी तो <span class="">माना </span>जा सकता है कि सरकार ने नक्सालियों के आगे हथियार <span class="">डाल </span>दिया था । या यु कहे कि ममता की खौफ ने वाम सरकार के हाथ पैर बाँध दिए थे । वाम पंथी सरकार चाह रही थी कि केन्द्र करवाई करे और राज्य सरकार तमाशा देखे । कम्युनिस्ट पार्टी का आरोप है कि ममता ने माओवादी से मिलकर राज्य सरकार के ख़िलाफ़ साजिश रची है ,लेकिन सवाल यह है क्या ममता का पश्चिम बंगाल मे इतना असर है <span class="">कि </span>१००० से ज्यादा गाँव ,कई जिले वाम सरकार से नाता तोड़कर नक्सालियों के शरण में चले गए । अगर वाकई ऐसी हालत है तो सरकार को इस्तीफा देना चाहिए क्योंकि सरकार से लोगों का भरोसा उठ गया है ।</div></div><div class="separator" style="clear: both; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjsl2aesQFQuSWo1aBlMySI0V9V8j29-7JmuNEnzs4_dWh1i4H2IRWBB5L5mDUDCy15C4HlGG4txUEHNh3ZKuuIJYTqlAJRiiAiwao_7Cr-B_r_VRS97VJ_LO6YWexB-NKCQ7kpG4i9wE8/s1600/mamta.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="170" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjsl2aesQFQuSWo1aBlMySI0V9V8j29-7JmuNEnzs4_dWh1i4H2IRWBB5L5mDUDCy15C4HlGG4txUEHNh3ZKuuIJYTqlAJRiiAiwao_7Cr-B_r_VRS97VJ_LO6YWexB-NKCQ7kpG4i9wE8/s200/mamta.jpg" width="200" /></a></div><div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;">३० साल के वामपंथी शासन की कामयाबी <span class="">के </span>रहस्यों से मिदनापुर ने परदा उठा दिया है । यानि लोगों ने बुद्धदेव सरकार के फ्रेंचैजे पॉलिसी को नकार दिया है । और इस फैसले में लोगों का साथ दिया है नक्सालियों ने । नरेगा में किस आदमी को काम मिलेगा ,किसको पैसे मिलेंगे किसे घर <span class="">मिलेगा,</span> किसे राशन कार्ड मिलेंगे किसे नही ये वहां सरकारी कर्मचारी तय नही करते है बल्कि ये फ़ैसला वाम दल के कार्यकर्त्ता लेते है । नदीग्राम से लेकर लालगढ़ तक लोगों के गुस्से को ममता ने हवा दी तो नक्सालियों ने ममता की झोली में वोट डाल कर अपने लिए दूसरा लिबरेटेड ज़ोन बना लिया । यह सियासी लेन देन का सौदा है ।आज ममता दीदी के ट्रेन को निशाना बनाकर नक्सली अपना दाम मांग रहे है .यानी मुफ्त की मलाई नक्सली ममता दीदी को किसी भी सूरत मे खाने नहीं देंगे .लेकिन खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है .</div></div><div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;">नाक्साल्बाड़ी में अपनी हार से आह़त मओवादिओं को ३० साल बाद बंगाल में अपना आधार मजबूत करने का मौका मिला है । माओवादी की विचारधारा आज भी वही है जो ३० साल पहले चारू मजुमदार ने दिया था । लेकिन वाम दल भले ही ऑफिस में लेनिन और माओ की तस्वीर लगाते हों लेकिन व्यवहार में उनका रबैया किसी सामंती से कम नही है । सत्ता और सरकार पाने और बनाये रखने के लिए वामपंथी सरकार ने बंगाल से लेकर केरल तक जो हथकंडे अपनाए वही प्रयोग आज दूसरी जमात भी दुहरा रही है ।</div></div><div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;">३२ साल पहले नक्सली सामंती विरोध का नारा देकर अपने लिए सत्ता पाने का आसन तरीका खोजा था । बन्दूक से सत्ता पाने का यह तरीका लोगों ने पसंद नही किया और नक्सली आन्दोलन की भ्रूण हत्या हो गई । लेकिन इस दौर में भ्रष्टाचार और ,सरकारों की ऑर से आम आदमी की लगातार उपेक्षा ने नक्सालियों को फिनिक्स बना दिया है । देश के नक्सली प्रभावित ८० जिलो मे शिशु मृत्यु दर ५० फिसद से ज्यादा है .हस्पतालों का वहा कोई नामोनिशान नहीं है .इन जिलों के तकरीबन २०००० गाँव मे आज भी न कोई स्कूल है न ही कोई पक्का माकन .सड़कों का तो इन इलाकों मे नमो निशान नहीं है .इंडिया शायनिंग का यह बदसूरत चेहरा कई संस्थाओं ने दिखाया है लेकिन हर बार सरकार बड़ी बड़ी योजनाओं की बात करके मूल समस्या से मूह मोड़ लेती है .केंद्र सरकार कहती है कि ग्रामीण इलाके के विकास के लिए भरपूर फंड दिए जा रहे है लेकिन पैसा कहाँ जाता है यह उन्हें नहीं पता है .देश मे गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों को सस्ते दर पर अनाज उपलब्ध कराने की बात की जा रही है लेकिन राशन कार्ड इन गरीबों के बदले उन्हें मिले हुए है जो आर्थिक रूप से संपन्न है .एक शर्वे के मुताबिक ४० फिसद से ज्यादा रासन कार्ड फर्जी है .उत्तर प्रदेश मे सार्वजनिक वितरण प्रणाली मे हुए करोडो रूपये के घोटाले का क्या हुआ यह अब तक रस्य बना हुआ है .लेकिन सरकारी महकमा यह दलील देता है इन पिछड़े इलाके मे नक्सली काम होने नहीं देते या फिर हर प्रोजेक्ट मे अपना हिस्सा मांगते है अगर बहती गंगा मे नक्सली अपना हाथ धो रहे है तो इसके कौन जिम्मेदार है यह सवाल पूछा जा सकता है .यानी भ्रष्टाचार के आकंठ मे डूबा यह देश आज अगर नक्सली हमलों से कराह रहा है तो इसका जिम्मेवार सिर्फ इस देश की राजनीती है</div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;">इस देश की गरीबी ने नक्सलियों को ऐसी उर्बरा ज़मीन दी है कि आज जिन इलाके मे जहाँ सबसे ज्यादा गरीबी है नक्सलियों को वहां उतना ही ज्यादा दवदबा है .नक्सली इस बात को अच्छी तरह जानते है कि नेपाल और भारत मे काफी अंतर है वो यह भी जानते है कि नेपाल मे आर्म्स रेवोलुसन के जरिये सत्ता पाना नेपाली माओवादियों के लिए आसन था ,भारत मे यह प्रयोग कभी संभव नहीं है .यही वजह है कि नक्सलियों ने बातचीत से लेकर चुनाव के प्रक्रिया मे शामिल होने की हर पेशकश को ठुकराया है .उसे यह भी पता है इस देश मे वोट और सत्ता के भूखे नेता उसका कभी कुछ बिगाड नहीं सकते .ममता दीदी को पश्चिम बंगाल मे सत्ता चाहिए तो उन्हें हर हाल मे नक्सलियों का बचाव करना होगा .छतीसगढ़ से लेकर झारखण्ड मे कांग्रेस को अपना आधार बढ़ाना है तो इन राज्यों के कोंग्रेसी नेता को नक्सल के खिलाफ अभियान को रोकने होंगे .बिहार मे अगले साल चुनाव है तो नितीश जी गृह मंत्री को ज्यादा न बोलने की नशिहत दे रहे है .लेकिन सबसे बड़ा हादसा यह है कि नक्सल के खिलाफ अभियान के मजबूत कप्तान और गृह मंत्री चिदम्बरम खामोश हो गए है .</div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><br />
</div></div>vinod kumar mishrahttp://www.blogger.com/profile/10008067258866717206noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5622026231418338165.post-65071855831557410422010-05-15T21:13:00.000+05:302010-05-15T21:13:23.894+05:30vinod mishra ka blog: इन जातिवादी नेताओं से नक्सली क्या बुरे हैं<a href="http://hamargam.blogspot.com/2010/05/blog-post_15.html">: इन जातिवादी नेताओं से नक्सली क्या बुरे हैं</a>bakwas reporthttp://www.blogger.com/profile/12100394842727069707noreply@blogger.com0