ख़बरों की दुनिया में रहते हुए मुझे तकरीबन २० साल हुए होंगे लेकिन ख़बर को समझने की मेरी कोशिश आज भी जारी है । मिडिया के बढ़ते विस्तार ने इसे और जटिल बना दिया है । टीवी की ख़बरों का सरोकार टी आर पी से है तो प्रिंट में यह तय होना बाकी है कि उनका सरोकार आवाम से है या सरकार से । बाज़ार की बढती दखल और सरकार बनाने बिगाड़ने के खेल में शामिल मीडिया के लिए यह कहना थोड़ा मुश्किल है कि वे लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ है । एक मिशन को लेकर शुरू हुई भारत की पत्रकारिता कब प्रोफेसन यानि धंधा हो गई यह बताना थोड़ा मुश्किल है । लेकिन इतना तय है कि आम आदमी के सवाल मीडिया में बकवास रिपोर्ट बन कर संपादकों के कूडेदान में जमा होने लगे । हमने उन्ही कुडेदानो से बकवास रिपोर्ट उठाने की कोशिश की है ।