सैयद अली शाह गिलानी आज कश्मीर मे सबसे बड़े कद्दाबर लीडर है या फिर राज्य की ओमर अबुल्ला की सरकार ने उन्हें इस मुकाम पर पहुँचाया है यह बहस का विषय है लेकिन इतना तो तय है कि गिलानी आज कश्मीर मे सियासी धारा को मोड़ने की ताक़त रखते है .सवाल यह है कि कश्मीर मे आज ओमर अब्दुल्ला सरकार की रिट चल रही है या गिलानी की ? इसका जवाब गिलानी साहब का हर्ताली कैलेण्डर है .कश्मीर मे कब बाजार खुलेंगे ,किस दिन ऑफिस खुलेंगे ,किस दिन बच्चे स्कूल जायेंगे यह तय गिलानी साहब करते है न कि ओमर अब्दुल्ला की सरकार .यानी व्यवस्था पर पूरी तरह से अलगाववादी नेता हावी है ,चुनाव से जीतकर आये जनप्रतिनिधि या तो कश्मीर छोड़ चुके है या फिर कही कोने मे दुबके है लेकिन सरकार ओमर अब्दुल्ला की चल रही है .क्योंकि यह जिद फारूक अब्दुल्ला की है या फिर ओमर अब्दुल्ला राहुल गाँधी की पसंद है . बाप फारूक अब्दुल्ला की सियासी महत्वाकांक्षा अगर कश्मीर मे भारत के अबतक किये गए तमाम प्रयासों पर पानी फेर रही है तो शेख अब्दुल्ला बनने की सियासी महत्वाकांक्षा पाले गिलानी साहब नौजवानों को इस खेल मे बली का बकरा बना रहे है .चार महीने पहले कश्मीर की हालत यह थी कि कश्मीर मे देशी -विदेशी शैलानियो की तादाद ७ लाख से ऊपर पहुँच गयी थी ,अमन के उस माहोल मे कोई गिलानी साहब का नाम लेने वाला नही था .कश्मीर की सियासत मे लगभग अपने को ख़ारिज मानकर सैयद अली शाह गिलानी दिल्ली स्थित अपने घर की चारदीवारी मे सिमट गए थे लेकिन ओमर अब्दुल्ला की सियासी नादानी इस शख्स को रातो रात हीरो बना दिया .आज कश्मीर मे शायद लोग जितने शेरे कश्मीर शेख अब्दुल्ला को नही जानता होगा उससे ज्यादा लोग आज गिलानी को जानते है
.एक मासूम तुफैल अहमद की मौत से उठा बवाल ने अबतक १०० से ज्यादा नौजवान और बच्चो की जिन्दगी लील ली है लेकिन अबतक यह पता लगाया जाना बाकी है कि ये पत्थर चलाने वाले बच्चे गुस्से मे क्यों है ?
२० -२५ साल का पढ़ा लिखा नौजवान आज क्यों गिलानी साहब के सुर मे सुर मिला रहा है ?क्यों पढ़े लिखे बच्चे गिलानी साहब के पीछे आज़ादी का नारा लगा रहा ?क्यों बरसो बाद कश्मीर मे एक बार फिर जीवे जीवे पाकिस्तान का नारा बुलंद है ?
फारूक अब्दुल्ला कहते है कि इन बच्चो को ऑटोनोमी चाहिए ,गिलानी कहते है कश्मीर के बच्चे टोटल आज़ादी चाहते है .यही बात दुसरे अलगाववादी नेता भी कहते है .महबूबा से पूछिये ओ कहेंगी फौज को कश्मीर से हटालो बच्चे अपने आप खुश हो जायेंगे .हमारे गृह मंत्री कहते है कि कश्मीर की एक यूनिक समस्या है इसका हल भी यूनिक होना चाहिए ,सो वे मानते है कि इसका हल राजनीतिक है .गृह मंत्री कभी इस गुस्साए लोगों से नही मिले है लेकिन उन्हें कहा जाता है कि बच्चे आर्म्स फाॅर्स एक्ट हटाने से खुश हो जायेंगे तो कहते है इसे हटाना चाहिए ,उन्हें कहा जाता है कि कश्मीर से जो वादे किये गए थे उसे पूरा करने से गुस्साए नौजवान खुश हो जायेंगे तो गृह मंत्री उन तमाम पुराने समझौते को खंगालने मे व्यस्त हो जाते है लेकिन उनके साथ दिक्कत यह है कि उनके साथ मंत्रिमंडल और पार्टी मे कश्मीर के खेल मे उनसे बड़े खिलाडी है और चिदम्बरम साहब चुप चाप पहल करते करते अचानक खामोश हो जाते है .
गृह मंत्री जी कश्मीर समस्या के राजनीतिक हल ढूंढने से पहले अगर नौजवानों के गुस्से को समझने की कोशिश की होती तो शायद उन्हें पुराने समझौते को लेकर उतनी माथा पच्ची नही करनी पड़ती .यह समस्या भ्रष्टाचार के आकंठ मे डुबे रियासत की है .कश्मीर मे सियासत की कीमत है अगर आप भारत के साथ है तो आपकी कीमत है अगर आप पाकिस्तान के साथ है तब भी आप की कीमत है .यानी यहाँ हर सियासी नारे की कीमत है .पिछले वर्षों मे यहाँ पानी की तरह पैसा बहाया गया है ,आर्थिक पैकेजों की झड़ी लगा दी गयी है . भारत सरकार का अनुदान यहाँ कर्ज नही है बल्कि यह मुफ्त का राशन है जिसे कुछ लोग आपस मे बाट लेते है .जिस कश्मीर को पिछले पांच वर्षों मे एक लाख करोड़ रूपये से ज्यादा रूपये मिले हों और उस कश्मीर मे आज भी अगर एक पढ़े लिखे नौजवान को सरकारी नौकरी के अलावा कोई विकल्प नही हो तो माना जायेगा कि इस रकम को कहीं लूट ली गयी है .कश्मीर मे किसी नेता पर कभी आपने भ्रष्टाचार का मामला नही सुना होगा .ओमर अब्दुल्ला सरकार के तीन मंत्रियों पर दुबई मे घर खरीदने की चर्चा अख़बारों मे आई लेकिन यह चर्चा कभी किसी लीडर ने नही उठाई क्योंकि इस हमाम मे सभी नंगे है .छोटे मुलाजिम से लेकर बड़े अधिकारी तक कश्मीर मे यह तादाद ९ लाख से ऊपर है .पिछले तीन महीने से स्कूल बंद है ,कॉलेज बंद है ,दफ्तर बंद है और मुलाजिम घर मे बैठे है लेकिन महीने की पहली तारीख को उनकी तनख्वा अकाउंट मे पहुँच जाती है.प्रति महिना कश्मीर की सरकार २००० करोड़ रुपया सैलरी बाटने पर खर्च करती है लेकिन उस सरकार की आमदनी १०० करोड़ के आंकड़े को भी नही पार कर पाती .यानी पैसा भारत सरकार का है तो ओमर अब्दुल्ला को दरिया दिली दिखाने से कौन रोक सकता है. क्या ओमर अब्दुल्ला आजतक अपने मुलाजिम को यह कह पाए है कि काम नही तो पैसा नही .कश्मीर के आज हर घर मे कोई न कोई सरकारी फर्द है लेकिन आज़ादी की बात आज हर घर से उठ रही है क्योंकि पैसा अपने आप हर घर मे पहुच रहा है ..क्या वे यह नही जानते कि कश्मीर की सरकार अपने बदौलत अपने मुलाजिम को एक दिन का भी तनख्वा नही दे सकती .लोग यह जानते है लेकिन भ्रष्ट व्यवस्था के लिए आज़ादी की मांग सबसे बड़ी ढाल है .
कश्मीर के इन नौजवानों को पाकिस्तान की हालत हमसे ज्यादा पता है .उन्हें पता है कि पाकिस्तान के साथ उनका वही हश्र होगा जो कभी बंगलादेश का हुआ था ,आज बलूचिस्तान का हो रहा है .उन्हें पता है कि मजहब के नाम पर बने स्टेट मे लोगों की आज़ादी का मतलब क्या होता है .यही वजह है कि जब कभी भी जम्हूरियत की बात होती है तो आम लोग इस अमल मे बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते है ये अलग बात है कि वे हर बार ठगे जाते है ..क्योंकि सरकार के नाम पर वही पुराने चेहरे और वही भ्रष्ट लीडरों की फौज सामने आ जाती है .
सत्ता और पैसे का खेल जितना भारत समर्थित दल मे है उसे कही ज्यादा भारत विरोधी जमातों मे है .गिलानी साहब को इस दौर मे कड़ी चुनौती पूर्व आतंकवादी मशरत आलम से मिल रही है तो अपना आधार खो चुके मिरवैज ओमर फारूक गिलानी के असर को कम करने के लिए ओमर अब्दुल्ला से मदद मांगता है .अगर यह सियासत आग जलाने से ही चलती है तो कश्मीर मे ईद के दिन आग जलाने की छूट मिरवैज ओमर फारूक को भी मिली .सरकार आज तक गिलानी पर कुछ करवाई नही कर सकी तो मिरवैज अपने है .
ये सारे खेल इस लिए नही चल रहे है क्योंकि कश्मीर एक मुस्लिम बहुल राज्य है या फिर वहां के लोग अतिवादी है यह खेल इसलिए चल रहा है क्योंकि वहां लोग अपने को भारत से अलग मानते है .वहां जम्हूरियत अपनी ज़मीन नही बना सकी है .यह ज़मीन कभी ऑटोनोमी से नही बनेगी यह ज़मीन फौज हटाने से नही बनेगी या फिर ये ज़मीन आज़ादी मिलने से नही बनेगी .भारत के रहने वाले ११ करोड़ मुसलमानों का समर्थन आज अगर कश्मीरियों के साथ नही है तो यह जाहिर है कि वे उनके पाखंड को जानते है .जो मुसलमान फिलिस्तीन के सवाल पर इराक के सवाल पर दुनिया के किसी हिस्से मे मुसलमानों पर हुए अत्याचार के खिलाफ पुरे भारत मे जोरदार प्रदर्शन करता है आज वे कश्मीर मे तथाकथित ज्यादतियों के खिलाफ चुप क्यों है ?इस अर्थ को समझना होगा . कश्मीर का मतलब सिर्फ वादी के दस जिले नही है उसमे जम्मू और लद्दाख का भी अस्तित्व है ..धारा ३७० की बात हो या स्पेशल एस्टेट्स की इससे आम लोगों का कुछ भी भला नही हुआ है इस स्पेशल ने कुछ लोगों को कश्मीरियों को धोके मे रखकर अपना उल्लू सीधा करने का मौका जरूर दे दिया है .
सोमवार, 20 सितंबर 2010
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