कालाहांडी के अम्लापाली गाँव की बनिता से मिलने ख़ुद स्वर्गीय प्रधान मंत्री राजीव गाँधी अपनी पत्नी सोनिया गाँधी के साथ पहुंचे थे । पूरी दुनिया में बनिता की ख़बर सुर्खियों में छाई हुई थी । बनिता भारत में भूख की ब्रांड एम्बेसडर बन गई थी । महज ४० रूपये में उसे बेचकर उसकी भाभी ने भूख से तड़पते हुए अपने बच्चों को बचाने की कोशिश की थी । २५ साल पहले यानि १९८५ इसवी में बनिता की यह कहानी भूख की पीड़ा की सबसे मार्मिक कहानी बनी थी । चर्चा में बनिता आई तो उसके साथ राजनेता से लेकर आला अधि़कारी भी आए ,कई समाजसेवी देशी विदेशी अनुदान से मालामाल हो गए । कालाहांडी की खूब खबरे छपी लेकिन बनिता इस चर्चा से दूर होती गई,सुविधा तो उसे कभी मिली ही नही ॥ आज उसे कोई पहचानने वाला नही है .इन २५ वर्षों में .किसीने यह जानने की भी कोशिश नही की क्या वाकई बनिता की हालत में कोई तबदीली आई ?क्या सरकारी घोषणाओं से बनिता की जिन्दगी में कोई फर्क आया ?
बनिता को उसकी भाभी ने गाँव के एक निर्धन बुजुर्ग बिद्या पोधा के हाथ महज ४० रूपये में बेच डाली थी । बिद्या पोधा ख़ुद भीख मांग कर अपना गुजरा करता था सो अपने साथ बनिता का भरण पोषण उसके लिए मुश्किल था । लेकिन बनिता की भाभी के लिए अपने चार बच्चों की परवरिश उसे अँधा बना दिया था । बनिता शादी के बाद अपने पति के साथ कालाहांडी के बंग्मंदा गाँव चली आई थी । इन २५ वर्षों में देश ने काफ़ी तरक्की कर ली लेकिन बनिता का संघर्ष बरक़रार रहा । आज उसके पाँच बच्चे है और एक बुढे बीमार पति लेकिन सबके पालन पोषण की जिम्मेबारी बनिता पर ही है । स्थानीय आंगनबाडी केन्द्र में बनिता खाना बनाने का काम करती है और इस एवज में ५०० रूपये महिना पाती है । इसी पाच सौ रूपये की बदौलत बनिता अपने पुरे परिवार की भूख मिटाती है । यानि भूख से सरोकार बनिता को २५ साल पहले भी था और आज भी है लेकिन ये अलग बात है कि वह अपनी भाभी की तरह किसी बच्चे को बेचने को तैयार नही है ।
कालाहांडी भूख का पर्याय बन गया । दर्जनों सरकारी प्रोग्राम यहाँ चलाये गए लेकिन न तो इस इलाके में भूख की त्राशदी कम हुई न ही बनिता जैसी माताओं की मुश्लिले कम हुई । जिस के घर कभी राजीव गांधी ख़ुद हाल चाल लेने पहुंचे उसे आज तक इंदिरा आवास योजना से एक अदद घर नही मिला ।सरकारी योजनाओं का जितना चीरहरण कालाहांडी में हुआ है उतना शायद ही कही देखने को मिले । ये अलग बात है आज अगर राहुल गाँधी उसका हाल जानने पहुचे तो बिन्देश्वरी पाठक जैसे समाजसेवी बनिता को लाख दो लाख रूपये देने जरूर पहुच जायेंगे । लेकिन न तो बनिता विदर्भ की कलावती है न ही मीडिया की नजर में बनिता आज कोई ख़बर है ।
मंगलवार, 8 सितंबर 2009
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क्या किया जा सकता है यही है हमारे आज के भारत की सच्चाई। ये तो महज एक उदाहरण है।
जवाब देंहटाएंhello..
जवाब देंहटाएंMedia has itself to blame for degenerating into intellectual prostitution. At least I know many young girls sleep their way into high echelons of the editorial board. Media has become ideologically corrupt and intellectually bankrupt. If one has the guts to follow his heart amid the ruins, he/she had better join politics. Because it is there the real action is.
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