रविवार, 11 सितंबर 2011

धमाके में देसी साजिश खोजिये गृहमंत्री जी .....


                                 धमाके जारी  हैं ..बहस जारी है ...पिछले सात साल में २७ धमाके ..सैकड़ो लोगों की मौत ..हजारों घायल लेकिन जनता खामोश है .. मनमोहन सिंह सरकार के वरिष्ठ मंत्री सुबोध कान्त सहाय  कहते है "लोग अब इन धमाकों के आदी हो चुके हैं.."शायद ये बोम्ब धमाके रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन गए है. दिल्ली हाईकोर्ट धमाके में १२ लोगों की जान गयी और ७० लोग जख्मी हुए .लेकिन इससे पहले भी कई धमाके हुए हैं और नतीजा कुछ भी हाथ नहीं आया .२४ घंटे के खबरिया चैनेल को खबर चाहिए , सरकार की ओर से खबर नहीं मिलेगी तो चैनेल अपने तरीके से खबरों का विश्लेषण करेंगे जाहिर है सरकार मीडिया मनेजमेंट हर समय कुछ न कुछ स्कूप जरूर मुहैया करेगी .ये खबरों का खेल है इसे खेलना सरकार बखूबी जानती है. मनमोहन सिंह की पहली पारी में अलग अलग धमाकों में ४ हजार से ज्यादा लोग मारे गए फिर भी अगले चुनाव में मनमोहन सिंह न केबल सत्ता में दुबारा लौटे बल्कि यह भी साबित कर दिया कि इस देश में आतंकवाद कभी चुनावी मुद्दा नहीं हो सकता और अगर यह  कभी मुद्दा नहीं हो सकता तो सरकार की गंभीरता पर सवाल उठाना और ठोस करवाई की उम्मीद करने का हक कम से कम लोगों ने खो दिया है.
                                                                                   लगातार हो रहे ब्लास्ट से आहत पत्रकार अमित कुमार कहते है"सरकार और देश के राजनेता यह तय नहीं कर पा रहे है कि वह किसके साथ जाय  सरकार के प्रधानमंत्री आतंकवाद से लड़ने का हर बार अज्म दोहराते है .उसी सरकार के एक बड़े नेता आतंक में लिप्त लोगों के लिए जोर शोर से वकालत करते है.लेकिन फिर भी हम अवोध बालक की तरह कुछ ठोस करवाई चाहते है " २६\११ के मुंबई हमले में स्थानीय स्लीपंग सेल की भूमिका को पूरी तरह से नकार दिया गया क्योंकि जांच खास समुदाय के गुमराह लोगों की ओर जा रही थी .क्योंकि ये सियासत का मामला है इसलिए जांच एजेंसी को समझौता करना पड़ा. लेकिन उसी मुंबई में दुबारा धमाके हुए २६ लोग मारे गए  लेकिन पुलिस के हाथ कुछ नहीं लगा क्योंकि इन धमाको में एक बार फिर पुलिस ने एक बार फिर बड़ा खुलासा सामने लाया "पाकिस्तान और आई एस आई के इशारे पर धमाके हुए "लेकिन किसने इस धमाके को अंजाम दिया ?कौन लोग इन धमाको में शामिल थे इसे ढूंढ़ पाने में गृह मंत्री चिदम्बरम के एन आई ए और काउंटर टेर्रोरिस्म सेंटर के तमाम विश्लेषण फेल साबित हुए .
                                                                       शिवराज पाटिल के बाद गृह मंत्री की भूमिका में आये पी चिदम्बरम से देश ने कुछ ज्यादा उम्मीद बाँध ली इसमें चिदम्बरम का क्या कशुर था .चिदम्बरम उसी मनमोहन सिंह सरकार के गृह मंत्री है जो कभी शिवराज पाटिल हुआ करते थे.फर्क सिर्फ इतना है चिदम्बरम अंग्रेजी बोलते है और प्रोफेसनल दिखते है.लेकिन पाटिल जी ने यह पहले साफ कर दिया था कि वे गृह मंत्री किसी काबिलियत के कारण नहीं बने है बल्कि ये सोनिया जी की कृपा है.यही बात कमोवेश प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बारे में भी कही जाती है.यानी सरकार और पार्टी  कौन चला रहे है?इस व्यवस्था पर नारायणमूर्ति सवाल उठा चुके है . आतंकवाद से लड़ने के तमाम इरादे क्यों असफल रहे इसका जवाब खुद मनमोहन सिंह के पास भी नहीं है.                          
   लेकिन इसका जवाब किसी राजनेता के पास भी  नहीं है.दिल्ली बम धमाके  के महज चंद घंटे के बाद संसद में चर्चा में भाग लेते हुए मुलायम सिंह ने सरकार को चेताया कि जाँच में किसी खास समुदाय के लोगों की धड्पकड़  रोकनी होगी .यानी मुलायम धमाके में पीड़ित लोगों के सांत्वना के दो शब्द में भी अपने वोट बैंक को नहीं भूलते .इस हालत में वोट बैंक को लेकर सियासत करने वाली कांग्रेस से ज्यादा उम्मीद करना बैमानी होगी. बीजेपी की हालत यह है कि आतंकवाद पर बोलते ही पहला निशाना उसका मुसलमान होता है. बीजेपी जिस दिन आतंकवाद के मुद्दे पर  मुसलमानों का भरोसा जीत लेगी उस दिन यह पार्टी देश में सबसे बड़ा जनाधार वाली पार्टी होगी लेकिन वह ऐसा कर नहीं पाएगी . भ्रष्टाचार को देश की संस्कृति मानने वाले लोगों को अन्ना हजारे का आन्दोलन ने गलत साबित  किया है और इसे पुरे देश में एक मुद्दा बना दिया है.आतंकवाद के खिलाफ देश को जगाने के लिए एक और अन्ना की दरकार है.



गुरुवार, 2 जून 2011

बाबा रामदेव का सर्कस ,टिकट बेचेगी सरकार


२४ घंटे के खबरिया चैनल में सिर्फ बाबा रामदेव .अंग्रेजी सहित दूसरी भारतीय भाषा के अख़बारों में सिर्फ बाबा  रामदेव .यानी खबरों का सरोकार इनदिनों बाबा रामदेव से है जो १अरब १२ करोड़ जनता की सरकार को धमका रहे है .केंद्र की हर दिल अजीज और लोकप्रिय यु पी ए  सरकार जिसे दुबारा सत्ता में आने का मौका देश की जनता ने दिया वह एक अदना सा बाबा के सामने गिरगिरा रही है .बाबा रामदेव भ्रष्टाचार और कालाधन के खिलाफ राजधानी दिल्ली में  आमरण अनशन करने वाले है लेकिन नींद सरकार की उडी हुई है .नेहरु जी और इंदिरा जी के बाद मनमोहन सिंह तीसरे कांग्रेसी प्रधानमंत्री है जिन्होंने देश पर ७ साल से अधिक राज किया है लेकिन एक अदना सा बाबा जिसकी बाजीगरी सांस तेज खीचने में है उसने प्रधानमंत्री की साँसे  अटका दी है .प्रधानमंत्री बाबा को मनाने के लिये चिठ्ठी लिख रहे है .आयकर विभाग से लेकर इ डी के आला अधिकारी कालाधन और आयकर चोरी का रहस्य और सरकार की मजबूरी से बाबा को अवगत करा रहे है .लेकिन बाबा तो बाबा है टी वी के जरिये पूरी दुनिया को अबतक योग रहस्य बताते रहे है अब उसी टीवी के जरिये वो  लोगों को कालाधन का रहस्य बताने सामने आये है लेकिन सरकार उन्हें यह मौका  नहीं देना चाहती है सो बाबा की दिल्ली एअरपोर्ट पर आने की खबर सुनते ही सरकार के आलामंत्री और संकटमोचक प्रणव मुखर्जी बाबा को घेरने एअरपोर्ट पहुँच गए .जो सरकार आम लोगो से बात करने के लिए तैयार नहीं है ,जो सरकार महगाई जैसी अहम् समस्या पर जनता की मांग को अबतक दरकिनार करती रही है वही सरकार बाबा से बात करने दौर लगा रही है .ये बाबा का रहस्य है या कलाधन का लेकिन जंतर मंतर का खोफ सरकार पर आज भी सर चढ़ कर बोल रहा है .
भ्रष्टाचार के दल दल में फसे एक तथाकथित इमानदार प्रधानमंत्री की ये हालत किसने की है .माननीय अदालतों ने ,देश के बुद्धिजीवियों ने या फिर एन जी ओ ने ?जाहिर है पहले सोनिया जी का एन जी ओ राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् ने सरकार का कद छोटा किया तो दुसरे एन जी ओ वाले ने सरकार और संसद के अस्तित्व पर ही सवालिया निशान लगा दिया .पेट्रोल प्राइस की बात हो या सब्सिडी की या फिर लोकपाल बिल की बात हो या फ़ूड सिक्यूरिटी की या फिर सांप्रदायिक दंगा विरोधी बिल राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् के विद्वान सदस्य अपना वीटो पेश करके मंत्रीपरिषद् के निर्णयों को प्रभावित करते है .जाहिर है यह सोनिया जी का एन जी ओ है सो सरकार इसे लगभग सरकारी मसौदा मान लेती है .लेकिन अन्ना हजारे और अरविद केजरीवाल का एन जी ओ जब लोकपाल बिल पर अपना सुझाव सामने लाता है तो इसे पहले दरकिनार करने की कोशिश की जाती है .लेकिन पहलीबार देश के विभिन्न एन जी ओ ने दिखाया है कि वह सरकारी एन जी ओ पर भरी है क्योंकि सरकार से लोगों का भरोसा उठ चूका है ..राजधानी दिल्ली स्थित जंतर मंतर महज दो दिनों के अंदर तहरीर चौक का रूप ले लेगा, ऐसा अंदाजा न तो सरकार को था न ही आन्दोलनकारी को ऐसा यकीन था .  अन्ना हजारे का आमरण अनसन महज ५२  घंटे में राष्ट्रव्यापी आन्दोलन बन गया .हर शहर के चौक चौराहे पर भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों की उमड़ी भीड़ सरकार को यह बता रही थी ,कि सब्र का पैमाना अब टूट चूका है .
गांधी के इस देश में आम लोगों का सरोकार सरकार से कितना है इसे इस सन्दर्भ में समझा जा सकता है .केंद्रीय बजट के रूप में सरकार हर साल ११-१२ लाख करोड़ रूपये का लेखा -जोखा प्रस्तुत करती है .मुल्क की प्रान्तों की सरकार भी हर साल २३-२५ लाख करोड़ रूपये खर्च करती है .यानी जिस देश में सरकारें ३५-३७ लाख करोड़ रुपया खर्च करती हो और वहां की ७० फीषद आवादी की आमदनी २० रुपया हो तो यह माना जा सकता है कि मुल्क के राजनेताओ और नौकरशाहो ने दलालों के जरिये आम लोगों के हिस्से को लूट लिया है .बाबा रामदेव आज यही बात लोगों को समझाने में कामयाब हुए है कि लूट के पैसे सरकार वापस लाती है तो यह मुल्क इंग्लॅण्ड और अमेरिका को भी पीछे छोड़ सकता है .बाबा रामदेव न तो कोई अर्थशास्त्री है न ही कभी जाँच एजेंसी से उनका सरोकार रहा है लेकिन वो दावा करते है कि सरकार उनकी बात माने तो वेदेशो में रखे ५०० खरब रुपया भारत वापस लाया जा सकता है .सरकार की मजबूरी यह है कि वह रोज सुप्रीम कोर्ट में कालाधन के मामले में फटकार सुन रही है लेकिन सूचि को सार्वजानिक करने को तैयार नहीं है .बाबा रामदेव सरकार की कमजोरी जान चुके है .लेकिन बाबा को पता है दवाब में आकर सरकार ने पहले अन्ना हजारे को संसद से भी महान बना दिया लेकिन आज सरकार के मंत्री उन्हें धमका रहे है .बाबा रामदेव यह भी जानते है कि कल तक सरकार दिग्विजय सिंह को अनाप सनाप बयान देने के लिए खुल्ला छोड़ दिया था .दिग्विजय सिंह हर मंच से बाबा को ललकार रहे थे लेकिन आज देश के प्रधानमंत्री उन्हें खुद पुचकार रहे है .बाबा सियासत और कांग्रेस की चाल से पूरी तरह वाकिफ है .
लेकिन सवाल यह है देश के संसद से महज ५०० मीटर की दुरी पर स्थित जंतर मंतर पर कुछ एन जी ओ के  अनसन से सरकार इतना क्यों विचलित हो उठती है कि कानून बनाने का जिम्मा सांसदों से छीन कर एन जी ओ वाले को दे दिया जाता है .कलाधन के मामले में सरकार संसद में चर्चा से बचती है लेकिन बाबा रामदेव से इसी मुद्दे पर चर्चा के लिए ऐयेरपोर्ट पर दौर लगाती है .सरकार इखलाख से चलती है, सरकार भरोसे से चलती है, सरकार लोगों से संवाद बना कर चलती है .अगर यह सरकार में नहीं है तो माना जायेगा कि यह सरकार किसी के लिए चलायी जा रही है जिसका देश से कोई संवाद नहीं कोई सरोकार नहीं  है .बाबा रामदेव के भारत स्वाभिमान परिषद् और सोनिया जी के राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् के बीच फसी यह सरकार को तय करना होगा कि वह किसके साथ है .

शनिवार, 19 मार्च 2011

जापान का ब्रेकिंग न्यूज़

Tkkiku dk czsfdax U;wt
iadt pkS/kjh
,d uUgk lk ns”kA vkSj dqnjr dk bruk Øwj izgkj A “kjhj flgj mBrk gS ;s lksp dj fd ;s dSlh =klnh gS A rkdroj Hkwdai ds >Vds ] ml ij lqukeh ygjksa dk dgj vkSj vc ijek.kq fj,DVjksa ds ?kekdsA ;s lc ns[kdj ,glkl gqvk fd balku vHkh fdruk NksVk vkSj detksj gSA ,d fodflr eqYd us lqukeh ij yxke yxkkus ds fy, leanj ds fdukjs nhokj [kMh dj nh A ysfdu ;s nhokj Hkh dqnjr ds dgj ds lkeus jsr ds ?kjkSanksa dh rjg Hkld xbZA ml leqnzh jk{kl ds lkeus lkjh izxfr ?kjh dh ?kjh jg xbZA 
tkiku dh  ;s =klnh u rks  nqfu;k ds fy, ubZ gS vksSj uk gh [kqn tkiku ds fy,A rdjhcu 66 lky ckn tkiku fQj ,d ckj ,d Hk;kog fLFkfr ls  :c: gSA ml nkSj esa =klnh ekuoh; Fkh rks bl nkSj esa ;s dqnjrh gSA 

Ysfdu ?kS;Zoku tkiku dks uofuekZ.k dh vknr vkSj vuqHko gSA bl foHkhf’kdk dks tkiku us le> fy;k gS vkSj vc laHkyus dh rS;kjh esa tqV pqdk gSA “kj.kkFkhZ f”kfojksa esa ftl rjg dh ifjiDork utj vk jgh gS mlls rks ;gh dgk tk ldrk gS fd vc tkiku eqM+ dj ugha ns[k jgk A ladV ls mcjus ds fy, vc oks dej dl eSnku esa mrj pqdk gSA

ljdkj ] vkRej{kk nLrksa vkSj lsuk ds vykos tkikuh lekt ds ftl oxZ us lw>&cw> vkSj ifjiDork dk ifjp; fn;k gS oks gS && ogkWa dh fefM;kA u gh dksbZ luluh QsykbZ vkSj u gh fry dks rkM+ cuk;kA dkQh la;r vkSj vu”kkflr gks lekt ds izfr viuh ftEesnkjh dk fuokZg dj jgs gSaA  vc ejus okyksa dh la[;k ds ckjs esa gh tkikuh fefM;k dh Hkwfedk ns[ksa&&vHkh rd os viuh fjiksVksZa esa ljdkjh vkadM+ksa dks gh “kkfey dj jgs gSA tkikuh fefM;k fjiksVksZa esa vHkh Hkh ejus okyks dh la[;k 2000 ls mij ugha xbZ gSA ysfdu Hkkjrh; fefM;k esa vVdyckth dk nkSM+ cnLrwj tkjh gSA tkiku esa e`rdksa dh la[;k dks ysdj ftruk Hkkjrh; [kcfj;k pSuy ijs”kku gS mruk tkikuh fefM;k ugha A fnu Hkj esa dbZ ckj cszfdax U;wt ds lkFk e`rdks ds vkdM+s crk, tk jgs gS && dHkh 800 rks dHkh 3000 rks dHkh 10]000A

cspkjh Hkkjrh; ehfM;k ds ikl vkadM+ksa dh ckthxjh ds flok vkSj dksbZ jkLrk Hkh ugha cpk gSA bruh cM+h =klnh ] egkizy; dh ,d >yd vkSj Hkkjrh; fefM;k ,d e`r “kjhj Hkh ugha fn[kk ikbZA bldh [kkl otg ;s gS fd bl Hkwdai ls lacaf/kr lkjs dojst ds fy, mUgas tkikuh pSuyksa [kkldj ,u +,p +ds ij fuHkZj gksuk iMkA vkSj fQj ,u,pds dks rks [kcj fn[kkuh Fkh ] dksbZ Vh+vkj+ih ds va?kh jsl esa “kkfey ugha gksuk gSA crkSj ,d ftEesnkj pSuy oks yxkrkj bl foHkhf’kdk dks fn[kkrh jgh ] ysfdu mlds fdlh Hkh fjiksVkZt ls ;s ugha yxk fd oks luluh QSyk jgh gSA  e`r “kjhj dk dksbZ QqVst ugha] dksbZ Dykst &vi ugh ] vkSj fdlh Hkh QqVst dks pykus ls igys ;s ?kks’k.kk ugha gqbZ fd ;s rLohj fopfyr djus okys gSa&&& bls flQZ etcwr fny okys gh ns[ksaA

tkiku =klnh dks ns[k eq>s Hkqt dk HkqdEi ;kn vk tkrk gSA vkt Hkh Le`fr & iVy ij Hkqt dh rLohjs rkth gSA [kkl rkSj ij tkiku HkwdEi ds ckn rks os ?kqa?kyh rLohjsa fcYdqy lkQ gks xbZ gSA eq>s ;kn gS fd ge Vhoh i=dkj flQZ e`rdksa dks fn[kkus ds fy, csrkc FksA Vzdks ij yknrs yk”k ] edkuksa rys ncs fdlh ihfM+r dk QqVst fey tk; rks ,d lQy fefM;kdehZ gksus dk naHk lkQ & lkQ pagjs ij >yd tkrk FkkA dN Vhoh i=dkj rks brus mRlkgh Fks fd edku rys ncs fdlh ihfM+r dks ns[kk rks >ViV ekbZd mlds eqWag ds ikl yxkk;k vkSj iwN cSBs fd && vkidks dSlk yx jgk gSA   nwljk loky rks t[e ij ued jxM+us tSlk Fkk && vHkh rd dqN enn igqWaph ;k ughaA ogkWa ge Ik=dkj yk”kksa ds   

dgus dh t:jr ugha fd lekpkj dojst dh ;s izfØ;k dgha u dgha ;g fn[kkrh gS fd ge fdruk fu’Bqj gks x, gSaA laokn laizs’k.k dh vkik&?kkih  esa ge laosnuk gh [kks cSBs gSA  pkgs og uDlyh vkrad gks ;k fQj izkd`frd foink &&  {kr&fo{kr “kjhj vkSj jDrjaftr tehu fn[kkus esa “kk;n gesa viuh dke;kch dk ,glkl gksrk gSA ;gkWa rd fd vkradokfn;ksa ds lkFk eqBHksM+ esa “kghn gq, tokuksa ds  “kjhj ds izfr Hkh ge lEeku ugha fn[kk ikrs gSaA

geus 9@11 dks ns[kk && oYMZ VzsM lsaVj ?kjk”kk;h gks x;k] gtkjksa &gtkj yksx ekjs x, && ysfdu vejhdh fefM;k us ,d Hkh e`r “kjhj ugha fn[kk;kA fon”kh ehfM;k ,d rjg ls Lo&?kksf’kr vuq”kklu ds rgr ca/ks gq, gSa fd os fdlh Hkh foink ds ckn e`r “kjhj ugha fn[kk,axsA vkSj ;g ,d vge QSlyk gSA ;s cgqr t#jh gksrk gS fd ladV dh ?kM+h esa jk’Vª vkSj lekt dk eukscy uk rksM+k tk,A foink dh bl ?kM+h esa tkiku dh ehfM;k ftl rjg ekuoh; ljksdkj  dsk vkxs c<+k jgh gS mlls ges cgqr dqN lh[kus dh t:jr gSA [kkldj uktqd ekSds ij ftl rjg tkikuh ehfM;k lsonu”khy gksdj [kcjks dks nqfu;k ds lkeus yk jgh gS oks dkQh dkfcys rkjhQ gSA HkqdEi ] lqukeh vkSj ijek,kq fofdj.k ds vkrad ds chp Hkh tks [kcj tkikuh fefM;k fn[kk jgh gS oks fnyks&fnekx dks dkQh “kqdwu igqWapk jgh gSA pkj fnuksa ckn ,d uUgha cPph dk vius firk ls feyuk ] vkRe&j{kk nLrksa dk cpko dk;Z esa te dj tqV tkuk ] “kj.kkFkhZ f”kfojksa esa cPpksa dh mNy&dwn vkSj cqtqxksZa dk O;k;ke A ;s lkjh [kcjsa fuLlansg lekt ij ,d ldkjkRed euksoSKkfud vlj Mkyrh gS A eu esa fo”okl vkSj jxksa esa lkgl Hkjrk gSA
  
D;k czsfdax U;wt ds chp thus okys Hkkjr ds [kcfj;k pSuyksa  dks   tkikuh ehfM;k ds bl vkRe&la;e ls dqN lh[k ysus dh t#jr ugha gSA    [kkldj ,sls ekgkSy esa tc gekjs [kcfj;k pSuyksa ds fy, fdzdsV ds [ksy esa cYysckt dk vkmV gksuk Hkh cszfdax U;wt gSA

सोमवार, 7 मार्च 2011

किसका पाकिस्तान, मुल्लाओ का या जमींदारों का ?


सस्ता खून और महगा पानी पाकिस्तान में कहाबत नहीं बल्कि जीवन की हकीकत है .पुरे मुल्क में खुनी खेल का सिलसिला जारी है .आम आदमी मारे जा रहे है तो वी आई पी भी  ..ब्लासफेमी लाव की मुखालफत के नाम पर गवर्नर सलमान तासीर की मौत हो चुकी है तो फेडरल मिनिस्टर शाहबाज भट्टी को भी मौत की नींद सुला दिया गया है .सलमान तासीर की हत्या उनके बॉडी गार्ड ने की तो शाहबाज की हत्या पाकिस्तान के तालिबान ने .यानी मुल्क में आज कुख्यात इश निंदा कानून के पैरोकार मुल्ला - मिलिट्री और दहशतगर्द तंजीमो के सामने सरकार और समाज ने घुटने टेक दिए है .हालत को इस तरह समझा जा सकता है की एक गवर्नर की मौत पर कोई दो शब्द सहानुभूति के भी नहीं आये .मुल्क के सद्र और वजीरे आजम ने सलमान की मौत पर चुपी साध ली तो मुल्लाओं ने उनके आखरी रसुमात पर किसी मौलबी को भी नमाज पढने की इज़ाज़त नहीं दी और कातिल कादरी पर फूल बरसाए गए .यही हाल कमोवेश शाहबाज भट्टी को लेकर भी था .लेकिन  एलिट क्लास के लोगों की बर्बर हलाकत और पाकिस्तान में समाज की अनदेखी कुछ अलग कहानी वया कर रही है .
१९०६ में पहलीबार आल इंडिया कांग्रेस के सामने मुस्लिम जमींदारो ,राजे राज्बारों ने मुस्लिम लीग के नाम से एक अलग पार्टी वजूद में लाया .मकसद था कांग्रेस की सियासत की धार कमजोर करना .मुल्क के एलिट मुस्लिम क्लास का इन्हें भारी समर्थन हासिल हुआ लेकिन आम मुसलमान और उनके सियासी रहनुमा कांग्रेस से जुड़े रहे .मुस्लिम लीग के कद्दावर नेता मो अली जिन्ना ने खुद शुरुआती दौर में  मजहब के नाम पर अलग पार्टी का विरोध किया था .लेकिन ये अलग बात है की १९३४ में जब मुल्क के एक बड़े जमींदार चौधरी रहमत ने एक अलग मुल्क पाकिस्तान का नाम वजूद में लाया तो जिन्ना उस मजहबी सियासी धारे से अपने को अलग नहीं कर सके .मुल्क के जमींदार मुसलमानों को यह अंदेशा था कि आज़ादी मिलते ही उनका वजूद खतरे में पड़ जाएगा सो उन्होंने कांग्रेस के तेज तर्रार नेता मो अली जिन्ना को अपने साथ लिया .तारीख में झाँकने की जरूरत इसलिए है कि जिन लोगों ने अपने लिए पाकिस्तान बनाया आज वही पाकिस्तान उन्हें हाशिये पर खड़ा कर दिया है .पाकिस्तान के अस्तित्व में आने के ठीक एक साल बाद ही कायदे आज़म को यह एहसास हो गया था कि यह फैसला उनके जीवन की सबसे बड़ी भूल थी .लेकिन बाकी एलिट क्लास को यह समझने में थोडा वक्त लगा कि मजहब की सियासी बुनियाद काफी कमजोर होती है .
 १९४७ से लेकर आज तक पाकिस्तान की हुकूमत यह तय नहीं कर पायी है कि मुल्क की दिशा और दशा क्या होनी चाहिए ?. कभी सामन्ती और पढ़े लिखे लोगों का नेतृत्व इस्लाम के नाम पर अपनी सत्ता मजबूत करने की कोशिश करता है तो बंगलादेश के नाम से अलग मुल्क का संघर्ष इस्लाम के नाम पर मुल्क की अवधारणा को गलत साबित करती है . कभी पाकिस्तान मे इलीट फौज  कश्मीर का बहाना बनाकर पाकिस्तान मे अपनी सत्ता मजबूत करता है ,तो कभी भारत के खिलाफ नफरत फैला कर वही इलीट जनरल जिहाद की वकालत करता है  . १९८५ के दौर मे जनरल जिया ने अमेरिका का साथ लेकर मुल्ला और मिलिट्री  का एक गठजोड़ बनाया और पुरे पाकिस्तान में हर आम और खास को बम और बारूद सुलभ बना दिया . इस दौर मे आतंकवादियों का एक दो नहीं ५० से ज्यादा संगठन बने जिन्हें पाकिस्तान में फलने -फूलने की पूरी छूट दी गयी . पाकिस्तान का हर मस्जिद और मदरसे इनके गिरफ्त में आ गये जहाँ नफरत की फसल तैयार होने लगी .जिनका इस्तेमाल कभी अफगानिस्तान में किया गया तो कभी जिया के  दहशतगर्दों को भारत के खिलाफ झोंक दिया गया . इन वर्षों में इन सरकारी दहशतगर्दों ने सिर्फ भारत में ही २०००० से ज्यादा लोगों की जान ली . लेकिन चुकी पाकिस्तान ने इन दहशतगर्द करवाई को कश्मीर की आज़ादी के साथ जोड़ रखा था ,इसलिए दुनिया ने इसे आतंकवादी कहने के वजाय इन आतंकवादियों को फ्रीडोम फाइटर का दर्जा दे रखा था . लेकिन ९\११ के अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेण्टर पर हुए आतंकवादी हमले ने दुनिया को एहसास कराया कि आतंकवाद को अलग अलग चश्मे मे देखने की वजह से ही पाकिस्तान मे जेहादियों को फलने फूलने का मौका दिया है .पाकिस्तान से निकलकर अब जेहादी  पश्चिम के मुल्कों में निज़ामे मुश्तफा का परचम फहराने लगे है . आतंकवाद के खिलाफ पश्चिम के मुल्को खासकर अमेरिका के सख्त रबैये ने पाकिस्तान की रणनीति को गड़बड़ा दिया  और अब वहा की हुकूमत और आतंकवादी आमने सामने है ..लेकिन जनरल जिया के ब्लासफेमी लाव पुरे समाज को तिल तिल कर मरने पर मजबूर कर दिया है .यानी इस कानून को अपना कारगर हथियार बनाकर बुनियाद परस्त तंजीमो ने सिविल सोसाइटी और हुकूमत के मुह बंद कर दिए है .खुद जनरल कियानी आज अगर यह मान रहे है कि सलमान तासीर और भट्टी की हलाकत की  सार्वजानिक निंदा नहीं की जा सकती है .यानी पाकिस्तान में कानून का कम और बन्दूक का जोर ज्यादा है ..
  जिस विष बेल को पाकिस्तान ने बड़ा किया वही आज पाकिस्तान को डस रहा है . इस्लामाबाद से लेकर लाहोर तक पेशावर से लेकर कराची तक पाकिस्तान का शायद ही कोई शहर है जो आतंकवादी हमले से लहुलाहन न हो . रावलपिंडी का आर्मी हेड  कुआटर    से लेकर लाहोर का पुलिस छावनी ,आई एस आई के दफ्तर से लेकर मस्जिद तक हर प्रतिष्ठान धमाको से दहल रहा है . इस्लामिक देश पाकिस्तान मे शिया , आतंकवादी के निशाने पर है तो मस्जिद मे नमाज अदा करने आये नमाजी जब तब आतंकवादियों के धमाके के शिकार हो जाते है . पिछले वर्षो में १०००० से ज्यादा आम शहरी पाकिस्तान की बुनियाद परस्त सियासत के शिकार हो चुके है लेकिन पाकिस्तान में इंतजामिया और फौज  किसी बड़े विद्रोह की आशंका के कारण खामोश तमाशबीन बनी हुई है .क्या पाकिस्तान की ये हालत वाकई किसी पडोशी मुल्क के लिए खुशखबरी हो सकती है ?
अमेरिकी नागरिक रेमन डेविस के बहाने पाकिस्तान की बुनियाद परस्त तंजीमे अमेरिका का मुहं चिढ़ा रही है .डेविस की रिहाई को लेकर अमेरिकी दवाब पाकिस्तान में बेअसर साबित हो रहे है .यह उस अमेरिका की हालत है जिसकी मदद से पाकिस्तान का अर्थशास्त्र कायम है .हर साल अमेरिका ३-४ बिलियन डालर की मदद पाकिस्तान को देता है शायद इस भ्रम में कि पाकिस्तान उसे अफगानिस्तान के पचड़े से उबार लेगा .लेकिन अमेरिका खुद पाकिस्तान में फसता नज़र आ रहा है .
अल्लाह -आर्मी और अमेरिका पाकिस्तान की सियासी -समाजी जिन्दगी का अहम् हिस्सा रहा है .मौजूदा दौर में इलीट क्लास के घटते रसूख के कारण अमेरिका का असर कमजोर होने लगा है .निम्न और मध्यम वर्ग ईश निंदा कानून के जनून में इस कदर मस्त है कि वह सब कुछ कुर्बान करने को तैयार है .यानी ब्लासफेमी लाव ने मुल्लाओ को एक कारगर हथियार  दे दिया है और वह इस हथियार से पुरे समाज को हांक रहा है .पाकिस्तान के  दानिश्वर और संपन्न तबका या तो पाकिस्तान से रुखसत कर गए है या फिर मुर्दों की ख़ामोशी अख्तियार कर ली है .मजहबी जनून के सामने मुल्क के तमाम इदारे बौने साबित हुए है .लेकिन पूरी दुनिया खामोश है शायद इस भ्रम में कि इस समस्या का हल अमेरिका ढूंढेगा .आज पुरे अरब वर्ल्ड में तानाशाहों ,राजे रजवारों के खिलाफ जबरदस्त मुहीम चल रही है .जन आन्दोलन की इस आंधी में कई तानाशाह धरासायी हो चुके है तो कई तानाशाह वक्त का इंतजार कर रहे है लेकिन अरब वर्ल्ड में यह जनांदोलन मजहबी नहीं बल्कि इसका आधार आर्थिक है लेकिन इसके उलट पाकिस्तान में एक कट्टरपंथी आन्दोलन जबरन अपने साथ पुरे समाज को प्रभावित कर रहा है .और जर्जर तबाह पाकिस्तान की हालत से लोगों का ध्यान हटा दिया है . तो क्या यह इंतजामिया की साजिश है ? 
पाकिस्तान में मकबूल तमाम इस्लामिक नजरिये का केंद्र भारत रहा है .देवबंदी से लेकर बरेलवी तक अहले हदीश से वहाबी तक तमाम विचारधाराओं का जन्म भारत के ही शहरो में हुआ था .लेकिन भारत के सेकुलर धारा में इन नजरिये का कभी भी बेजा इस्तेमाल नहीं हुआ जाहिर है पाकिस्तान में जरी संकीर्ण मजहबी बहस में भारत के प्रतिष्ठित इदारे पाकिस्तान को इस संकट से बाहर निकाल सकता है .लेकिन पाकिस्तान में जिस कदर मजहबी कट्टरता सामाजिक ताने वाने को विगाड रही है .सत्ता शीर्ष पर बैठे लोग खामोश बने बैठे .इस हालत में भारत के सामने यह बड़ी चुनौती होगी कि वह किसके साथ संवाद जोड़े .पाकिस्तान में सरकार के वजूद पर पहले ही आर्मी और मुल्लाओ ने पहले ही सवालिया निशान लगा दिया था .फौज से भारत का कोई संवाद नहीं है लेकिन सत्ता पर कविज होने के लिए फौज एक बार फिर मौका ढूंढ़ रही है लेकिन इस बार आर्मी के साथ अल्लाह जरूर है लेकिन अमेरिका नहीं है .....

रविवार, 13 फ़रवरी 2011

आओ दिल्ली मे एक तहरीर चौक बनायें


"अब मिस्र आज़ाद है " तहरीर चौक पर अपार जनसमुदाय का यह नारा पूरी दुनिया मे व्यवस्था परिवर्तन की लो को एक उम्मीद से भर दिया है इजिप्ट के .तहरीर चौक से उठी यह क्रांति की चिंगारी अरब वर्ल्ड के साथ साथ एशिया के देशो मे जल्द ही फैलने वाली है .अरब देशो मे सत्ता शीर्ष पर कब्ज़ा जमाये हुए सत्ताधीशों की बेचैनी बढ़ने लगी है .टूनिसिया मे एक मजदूर की मौत क्रांति का आगाज कर सकती है और वर्षो से सत्ता पर काबिज निरंकुश शासक को मुल्क छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ता है .मिस्र मे फेसबुक पर एक लड़की का यह मेसेज "मै तहरीक चौक जा रही हूँ" .........एक नयी क्रांति की नीव डालती है और महज १८ दिन  के आन्दोलन ३० साल के हुस्नी मुबारक की सत्ता को उखाड़ फेकता है .तो क्या ऐसी क्रांति आज भारत मे संभव है ?क्या भारत मे व्यवस्था के खिलाफ गुस्सा कभी क्रांति का रूप धारण कर सकता है ?
व्यवस्था के खिलाफ रोष और क्षोभ न्यायपालिका को है ,मिडिया को है ,लोगों को है ,बुधिजिबियों को है लेकिन क्रांति को लेकर उत्साह कही नही है .सुप्रीम कोर्ट के जज की  शिकायत है कि सरकार न्यायपालिका को अधिकार संपन्न नही देखना चाहती .एक जज का क्षोभ है कि कोर्ट की टिप्पणियों का कोई क़द्र नही है .उधर सरकार की ओर से सीमा और मर्यादा की नशिहत दी जाती है .भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों का गुस्सा आसमान छू रहा है लेकिन ओ  कुछ कर नही पा रहा है क्योंकि उन्हें यह कहा जा रहा है कि उनकी चुनी हुई सरकार सत्ता पर आसीन है .पांच साल बाद सत्ता से लोगों को बेदखल करने का उन्हें फिर मौका मिलेगा आदि आदि .भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाने की जिम्मेदारी विपक्ष की है लेकिन उनका दायित्व न्यायलय ने संभाल लिया है .प्रक्रिया इतनी धीमी और लचर है कि बोफोर्स दलाली की रकम मुल्क वापस नही पा सकी .उलटे इस जांच प्रक्रिया मे मुल्क ने दलाली के कई गुना रकम खर्च दिया है और नतीजा सिफ़र ही हाथ लगा है .भ्रष्टाचार का आलम यह है कि महज ७ वर्षो मे इस देश ने जितना खोया है उतनी रकम शायद ६० वर्षों मे भी नेता -अधिकारी और दलाल हजम नही कर पाए .
दस साल पहले १०० - २०० करोड़ रूपये के घोटाले के लिए आन्दोलन होते थे लेकिन आज २० लाख करोड़ रूपये के घोटाले के खिलाफ कही मामूली धरना -प्रदर्शन भी नही होते .करोडो रूपये के घोटाले ,विदेशी बैंको मे काला धन की चर्चा न्यायलयों मे होती है और इस चर्चा को आगे बढ़ाते हुए मिडिया लोगों के घरों मे देश के वैभवता की तस्वीर पेश कर रहा है लेकिन आक्रोश कही नही है हर शाम .कोर्ट से बाहर निकलकर वकील ,राजनेता और विशेज्ञ टीवी पर मजमा लगाते है और एक दुसरे पर कीचड़ उछाल कर अपने अपने घर लौट जाते है .लेकिन इस पुरे खेल मे सरकार चुप है क्योंकि उसे पता है कि इन बहस से कोई सम्पूर्ण क्रांति नही आने वाली है .हमाम मे सब नंगे है सो कोई जयप्रकाश नारायण पैदा हो नही सकता .
व्यवस्था के खिलाफ नक्सली जंगलों मे आन्दोलन रत है लेकिन उनका यह तथाकथित आन्दोलन आदिवासी इलाकों से बाहर नही निकाल सका तो माना जायेगा कि नक्सली जंगली इलाको मे अपनी प्रभुसत्ता बनाकर खुश है .सरकार जब कभी भी उन इलाकों मे उनकी प्रभुसत्ता को चुनौती देती है नक्सली इस एवज १० -२० मासूमों की जान ले लेते है .मैनिंग मे पैसा राजनेताओ को भी चाहिए तो नक्सली भी इसमें अपना हिस्सा मांगते है .सो आन्दोलन की धार पैसे की ताक़त ने पहले ही कुंद कर रखी है .
भ्रष्टाचार ,घोटाला ,महगाई ,आम आदमी की मुश्किलें हर घर मे हर चौक पर बहस का मुद्दा है लेकिन इसमें कोई चिंगारी नही है .राजधानी दिल्ली मे तहरीर चौक का आकार पहले ही छोटा कर दिया गया है. अगर १०० -२०० लोग भी जंतर मंतर पर जामा हुए तो पुरे इलाका की ट्राफिक व्यवस्था चरमरा जायेगी .सरकार को पता है अपना अपना रास्ता ढूंढने मे लगे लोग कभी यह वर्दास्त नही करेंगे कि उनकी रफ़्तार किसी बहस के कारण थम जाय .इस आन्दोलन को देश के ७ फिसद की विकास दर ने भोथरा बना दिया है .माध्यम वर्ग की एक बड़ी आवादी अपने मकान,दुकान ,बच्चो की शिक्षा की मह्बारी किस्तों मे इस कदर उलझा हुआ है कि उसे यह चिंता नही सताती कि देश के अरबो -खरबों रुपया विदेशी बैंको मे पड़ा है और वह हजार -दस हजार की किस्त पूरा करने के लिए अपना पूरा जीवन दाव पर लगा दिया है .यह दुनिया का  सबसे बड़ा लोकतंत्र  है जहाँ सरकार चुनने का हक आम लोगों को मिला हुआ है लेकिन सरकार का मुखिया कौन होगा ,सरकार के मंत्री कौन होंगे इसका फैसला आलाकमान के हाथ मे है .सरकार संसद के प्रति जिम्मेदार है लेकिन प्रधानमंत्री किसके प्रति जिम्मेदार है यह समझना अभी अभी बांकी है .गाँव से लेकर शहर तक इस मुल्क मे तहरीर चौक का आकार और आधार काफी छोटा हो गया है इस हालत मे इस आन्दोलन की शुरुआत हर घर से हो सकती है यानि इस देश को अभी आज़ादी मिलना अभी बांकी है .
  

रविवार, 16 जनवरी 2011

लाल चौक पर तिरंगा :दहशत मे ओमर अब्दुल्ला

1992 के बाद यह पहलीबार है कि श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा लहराने के लिए बीजेपी ने जिद ठानी है .१८ वर्ष पहले भी तत्कालीन हुकूमत ने बीजेपी को यह जिद छोड़ने की सलाह दी थी ,वैसी ही सलाह मौजूदा हुकूमत भी दे रही लेकिन इस सलाह मे घबराहट ज्यादा है . हुकूमत के सामने अमरनाथ श्रायन बोर्ड का जीता जगता उदाहरण सामने है कि महज कुछ मुठी भर लोगों के विरोध ने इसे अलगावादी सियासत का मुद्दा बना दिया था .लेकिन वे  सवाल आज भी दुरुस्त हैं  कि सर्दी से कापते यात्रियों के लिए महज कुछ गज ज़मीन का उपयोग धारा ३७० के खिलाफ था ?क्या यह भारत की साजिश थी जिससे वह वहां की अवादी के अनुपात को बदलना चाहती थी ?अफ़सोस की बात यह कि सरकार अलगाववादियों के भ्रामक प्रचार और हुडदंग के आगे पूरी तरह आत्मसमर्पण कर चुकी थी .और कश्मीर के लोग भी उस सियासी हुडदंग को समझ नही पाए .ठीक वैसी ही परिस्थिति आज भी बन रही है .सियासी मुद्दे की तलाश मे भटकती बीजेपी को एक बार फिर तिरंगा की याद आई है .सो उसने लाल चौक पर तिरंगा लहराने का फैसला लिया है ,शायद इस सोच से कि इस मसले को लेकर बवाल और चर्चा होना लाजिमी है .बीजेपी के इस अभियान को इस बार जे के एल ऍफ़ के नेता यासीन मल्लिक का साथ है .और यह मसला रोज मिडिया की सुर्ख़ियों मे है .राज्य सरकार के मुख्यमंत्री अब्दुल्ला इतने आशंकित है कि उन्हें दुबारा अमरनाथ श्रायन के मसले की पुनरावृति दिख रही है .बड़ी मुश्किल से उन्होंने पिछले छः महीने के सियासी तूफ़ान मे अपनी नौकरी बचाई है लेकिन यह मसला उन्हें ज्यादा आशंकित कर रखा है .सवाल यह है कि क्या लाल चौक पर इससे पहले तिरंगा नही लहराया जाता था ?अगर ऐसी प्रथा थी तो यह अधिकार ओमर अब्दुल्ला का है कि वे कहते कि लाल चौक पर झंडा बीजेपी नही बल्कि रियासत की सरकार फहराएगी .ओमर अब्दुल्ला ठीक वैसा ही भारतीय है जैसा कि कोई बीजेपी वाला लेकिन ओमर अब्दुल्ला अपने इस गौरब को क्यों बीजेपी को झटकने दे रहे है ,यह सबसे बड़ा सवाल है .क्या आज़ादी मांगने वालों की आवाज आज कश्मीर मे इतनी मजबूत है कि यासीन मल्लिक के एक धमकी से ओमर अब्दुल्ला परेशान और बेहाल है ?
  पिछले २० वर्षों में लाल चौक  पर सीना ताने खड़े घंटा घर ने जितनी शर्मिंदगी अलगाववादियों के कारण नहीं झेली होगी उससे ज्यादा जिल्लत उसे हुकूमत के कारण झेलनी पड़ी है  . गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस के पिछले दो मौके   पर लाल चौक पर तिरंगा नहीं फहराने के पीछे सरकार की जो भी दलीले हो लेकिन इतना तो तय है कि इस फैसले ने लाल चौक के शौर्य  को धूमिल किया है .पिछले २० वर्षों में लालचौक ने दर्जनों आतंकवादी हमले के दंश सहे है  .दर्जनों बार पाकिस्तान का झंडा इसके सीने पर लटका दिया गया .लेकिन इन १८ वर्षों में जब कभी तिरंगा के साथ इस चौक को सजाया जाता तो वह अपने पुराने जख्मो को भूल जाता था. सरकार  की यह  दलील है यहाँ झंडा फहराने की कोई परंपरा नहीं थी ,न ही यह लाल चौक कोई सियासी जलसे की उपयुक्त जगह है .लाल चौक इन दलीलों को ख़ारिज करता है .उसका सवाल है क्या मुग़ल बादशाह ने लाल किला तिरंगा फहराने के लिए बनाया था .क्या इंडिया गेट को अंग्रेजों ने गणतंत्र दिवस मनाने के लिए बनाया था . अगर किसी ने लाल चौक के शोर्य को बढ़ाने और तिरंगा के जरिये वादी के आम लोगों के जज्वात से जुड़ने की कोशिश की, तो क्या यह गलत परम्परा थी ? 

.दहशतगर्दी के दौर में भी या कहे कि १९९२ में भी वादी ए कश्मीर में ऐसे लाखों लोग थे जिनका तिरंगा के साथ सरोकार था .जिनका तिरंगे के प्रति  अटूट आस्था थी .यही वजह थी कि इन वर्षों में कई सरकारे आई गई लेकिन यह परंपरा वहां के लोगों के साथ मिलकर हिफाजती अमले  ने निभाई .लेकिन आज जब सरकार अमन और शांति का दावा कर रही है फिर लाल चौक के इस सम्मान को छिनने के क्या वजह हो सकती थी .गणतंत्र दिवस हो या स्वतंत्रता दिवस अलगाववादियों के बंद - हड़ताल की कॉल और आतंकवादियों की धमकी के बीच खाली और सुनसान पड़े श्रीनगर के इस तारीखी चौक पर सिर्फ एक लहराता तिरंगा ही तो था जो अलगाववादियों के मसूबे को फीका कर रहा था .लेकिन पिछले दो साल से लाल चौक सुनसान मार्केट में अकेला अपमान का दंश झेलता रहा है  .किसी ने ठीक ही कहा है कि सरकार इखलाक से चलती है , लेकिन यहाँ तो सरकार हांफती नज़र आ रही है . लाल चौक पर  तिरंगा  संप्रभुता की पहचान थी .कश्मीर के लाखों लोगों को यह एहसास करा रहा था कि यहाँ की अलगाववादी सियासत कुछ चंद सिरफिरों की सनक है ,लेकिन लाल चौक से तिरंगा हटाकर हुकूमत ने यह एहसास कराया है कि अलगाववाद की जड़े श्रीनगर में गहरी है .जिस अलगाववाद को लोगों ने जब तब  वोट के जरिये हराया है उसे सरकार के एक फैसले ने हतोत्साहित कर दिया है .
७० के दशक मे श्रीनगर के कुछ उत्साही मार्क्सवादियों ने रूस के रेड स्कुएर की तर्ज पर इस चौक का नाम लालचौक रखा था .कारोबारी शहर के बीचो बीच स्थित इस चौक की ख्याति  शेख अब्दुल्ला ने भी बढ़ाई . शेख अब्दुल्ला का जनता दरवार कभी लालचौक की शान बढ़ाता था .खुद पंडित नेहरु ने इस लालचौक पर तकरीरे की है . १९७५ में यहाँ घंटाघर वजूद में आया और इसने इसे  कारोबारी चौक का दर्जा दिलाया .श्रीनगर में भारत के कोने कोने से पहुचे पर्यटकों ने इसकी शान में और इजाफा किया .लेकिन १९८९ के दौर में  पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद ने यहाँ की हलचल में जहर घोल दिया .लालचौक आतंकवादी गतिविधियों का केंद्र बन गया .जाहिर है बन्दूक के खौफ ने अलगाववादियों को एक सियासी आधार दिया और उनका सियासी ठिकाना लालचौक हो गया .पिछले २० वर्षों में लालचौक ५ साल बंद रहे .सैकड़ों मासूमो को इस चौक ने अपने आँखों के सामने आतंकवादियों की गोलियों से छलनी होते हुए देखा है .बाद में इस चौक की सुरक्षा की जिम्मेवारी पहले बी एस ऍफ़ ने बाद में सी आर ऍफ़ ने सँभाल ली .लेकिन हमलों का दौर जारी रहा और आतंकवादी जब तब इस लालचौक पर हमला करके अपनी प्रभुसत्ता दिखाने की कोशिश की है .हालाँकि सुरक्षवालों ने इसकी तीब्रता जरूर कम कर दी है  .तो क्या आतंकवादी  हमलों के अंदेशे ने यहाँ  तिरंगा फहराने से रोका था ?क्या भारतीय होने और उस पर फक्र करने वाले कश्मीरियों का सर इस फैसले से नही झुका है ?इस देश को यह जानने का जरूर हक है कि जिस तिरंगा झंडा की शान मे हजारो हिन्दू ,मुस्लिम ,सिख ,ईसाई ने अपनी जान कुर्बान की है.  क्या इसे एक मुख्यमंत्री की कुर्सी सही सलामत रखने के लिए इसकी शान के साथ गुश्ताखी  की जा सकती है ?   हर सवाल का जवाब आखिर सरकार को ही देना है लेकिन यह भी तय है कि यह सवाल पूछने का हक सिर्फ बीजेपी को नही है .