शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

गिलानी साहब के आज़ाद कश्मीर फ्री बंटेगी शराब

"राज करेगा गिलानी " हम क्या चाहते आज़ादी जैसे नारों के बीच दिल्ली के एल टी जी सभागार आज़ाद कश्मीर का मनोरम दृश्य प्रस्तुत कर रहा था लेकिन गुस्साए कश्मीरी पंडित के  नौजवान  बन्दे मातरम का नारा लगाकर आज़ादी के इस महान उत्सव का रंग फीका कर रहा था .आज़ादी द ओनली वे के इस महान जलसे मे सैयद अली शाह गिलानी   अपने आज़ाद कश्मीर मे न्याय और कानून व्यवस्था पर कुछ इस तरह प्रकाश डाल रहे थे "आजाद कश्मीर मे बहुसंख्यक मुसलमानों को शराब पीने की इजाजत नही होगी यानि वे शरियत के कानून से  बंधे होंगे जबकि दुसरे हिन्दू ,सिख और बौध तबके को शराब पीने की पूरी आज़ादी होगी .वे जहाँ और जब चाहे शराब पी सकते है और कानून इतना सख्त होगा कि अगर धोके मे भी कोई मुसलमान किसी के शराब की बोतल तोड़ेगा तो उसे इसका हर्जाना देना होगा ." .गिलानी साहब के इस आज़ादी को समर्थन करने अरुंधती  राय के आलावा देश के कई नामी अलगाववादी नेता इस समारोह मे जमा हुए थे .खालिस्तान के समर्थक से लेकर माओवाद के समर्थक ,मिज़ो विद्रोही से लेकर नागा विद्रोही हर ने भारतीय अस्मिता को रौंदते हुए भारत की संप्रभुता और अखंडता पर सवाल उठाने मे कोई कसर नही छोड़ी .क्योंकि ये भारत है, क्योंकि प्रजातंत्र मे इन्हें कुछ भी बोलने किसी भी मत का प्रचार करने का पूरा हक है .देश का कानून भले ही इसका इजाजत नही दे लेकिन फिर बुद्धिजीवी कहलाने का मतलब क्या होगा अगर इन्होने कुछ अलग नही कहा .सो खालिस्तान समर्थक बुद्धिजीवी ने इंडिया एज ए नेशन को बकवास करार दिया तो गिलानी ने अपनी तुलना सुभाष चन्द्र बोस से की .अरुंधती राय ने देश के तमाम अलगाववादियों और विद्रोहियों से कश्मीर को आजाद कराने और गिलानी के हाथ मजबूत करने की अपील की .कई नामी गिरामी प्रोफेसर कई नामी गिरामी भुत पूर्व उग्रवादी भारत के खिलाफ जहर उगलकर गिलानी के समर्थन मे महान ऐतिहासिक तथ्यों को प्रस्तुत करते नज़र आये .इस विहंगम दृश्य का अवलोकन मेरे  जैसे नाचीज पत्रकार और सैकड़ो की तादाद मे उपस्थित कानून के पहरुए भी कर रहे थे लेकिन सबकी अपनी जिम्मेदारी थी अपना ज्ञान बढ़ाने के अलावा और कोई चारा नही था ,ऐसी ही कुछ मजबूरी गृह मंत्री चिदम्बरम की भी थी जो पहले तो राजधानी दिल्ली मे इस तरह के सम्मलेन पर चुप रहे अब कारवाई की बात कर रहे है लेकिन जम्मू के जसविंदर को प्रो सुजाता भद्रो की बात बेहद अपमानित लगा तो उसने मंच पर अपना जूता उछाल दिया .जसविंदर को पुलिस ने तुरंत गिरफ्तार कर लिया था लेकिन वह यह जरूर बता गया कि जम्मू कश्मीर का मतलब सिर्फ गिलानी नही है .
जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्ला ने  इस  घटना की निंदा करते हुए जम्हूरियत मे सबको अपनी बात रखने और बोलने की आज़ादी का सम्मान करने की नशिहत दे डाली .लेकिन दो दिन पहले मुख्यमंत्री  अब्दुल्ला की विजय पुर  रैली मे किसी ने ओमर अब्दुल्ला के कश्मीर पर दिए गए बयान की निंदा करने की कोशिश की तो पुलिस ने मुख्यमंत्री के सामने उसकी जमकर धुनाई कर दी.शायद धारा ३७० मे किसी को मुख्यमंत्री के खिलाफ बोलने की आज़ादी नही है .इसी धारा ३७० की व्याख्या करते हुए ओमर अब्दुल्ला कहते है कि रियासते जम्मू कश्मीर का पूर्ण विलय अभी भारत के साथ नही हुआ है .अब्दुल्ला मानते है कि भारत के साथ जम्मू कश्मीर का इह्लाक कुछ शर्तों के साथ हुआ था .ओमर अब्दुल्ला आज वही बात कह रहे है जो ७० के दौर मे उनके महरूम दादा शेख अब्दुल्ला ने कहा था .तो क्या ओमर अब्दुल्ला मान रहे है कि कश्मीर मे सियासत भारत के खिलाफ माहोल बनाकर ही की जा सकती है या अपनी निष्क्रियता को छिपाने के लिए ओमर अब्दुल्ला ने भारत विरोधी बयानों का सहारा लिया है .
रियासत जम्मू कश्मीर का भारत मे विलय मुल्क के ६०० राजे रजवाड़े के विलय की एक कड़ी थी. लेकिन कश्मीर मे मुस्लिम बहुसंख्यक मे थे इसलिए पाकिस्तान यहाँ अपना सियासी आधार लगातार दुढ़ता रहा .उधर कश्मीर के सियासत दा लगातार इस कोशिश मे रहे कि कश्मीर को लेकर भारत पर एक दवाब बना रहे .१९४८ से लेकर १९७५ तक इसी दवाब को जारी रखने  के लिए शेख अब्दुल्ला ने कई बार अपना सियासी पैतरा बदला .जब कभी भी कश्मीर मे शेख अब्दुल्ला को अपना अस्तित्वा खतरे मे पड़ते दिखा उसने भारत के खिलाफ जहर उगलना शुरू कर दिया .लेकिन कभी भी कश्मीर मे लोकतंत्र को विकसित नही होने दिया .४०० से ज्यादा बोली ५० से ज्यादा धार्मिक मान्यता मानने वाले लोग ,अलग अलग संस्कृति अलग क्षेत्र अलग पहचान लेकिन रियासत मे सियासत की डोर हमेशा कश्मीर के ७ जिलो के संपन्न सुन्नी मुस्लिम तबके के हाथ रही .तक़रीबन २० फिसद की आवादी वाला यह समुदाय मुख्यधारा की सियासत मे अपनी पकड़ बनाने मे कामयाबी पायी तो कश्मीर मे अलगाववाद की सियासत को इसी तबके ने चलाया .बन्दूक उठाने वाले लोग भी इसी तबके से थे तो मौजूदा दौर मे पत्थर उठाने वाले नौजवान भी इसी तबके से है . सरकार मे आला अधिकारी से लेकर निचले स्तर के अहलकारो मे इसी तबके का बोलवाला है .इस हालत मे यह सवाल उठाना लाजिमी है कि क्या  कश्मीर के पंडित समुदाय ,गुज्जर बकरवाल ,सिया समुदाय ,जम्मू के हिन्दू ,लदाख के बौध शायद इसलिए अपनी सियासी आधार मजबूत नही कर पाए क्योंकि इनका लगाव भारत से है या फिर भारत  की सियासत ने  इन्हें अपना मानकर इन्हें त्रिस्क्रित कर दिया है .कश्मीर के लोग अपना ऐतिहासिक आधार राज्तार्न्गिनी मे ढूंढ़ते है .वे अपने को  भारत की परंपरा की एक मजबूत कड़ी मानते है .क्या इस ऐतिहासिक तथ्य को झुठलाया  जा सकता है .क्या आज़ादी की बात करने वाले लोगों को नही पता है कि वे जिस संयुक्त राष्ट्र का हवाला देते है उसके रेजोलुसों मे भारत या पाकिस्तान किसी एक को चुनने की बात की गयी है .आज़ादी वहां कोई विकल्प नही है .क्या उन्हें नही पता कि जनमत संग्रह कराने के लिए पाकिस्तान कभी तैयार नही होगा क्योंकि उसे अपने कब्जे के कश्मीर से अपनी फौज हटानी होगी  .आज गिलगित बल्तिस्तान पाकिस्तान का एक प्रान्त का दर्जा पा चुका है तो पाकिस्तान मक्बुजा कश्मीर की पूरी आवादी ही बदल गयी है .लेकिन फिर अगर गिलानी रायशुमारी की बात कर रहे है तो जाहिर है वे कश्मीर के लोगों को गुमराह कर रहे है .ऐसी गुमराह करने वाली बाते ओमर अब्दुल्ला भी कर रहे है तो इनकी सियासत को समझा जा सकता है .
लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या वाकई मे भारत के आमलोगों को कश्मीर की जरूरत है .क्या कश्मीर की अपार खनिज संपदा भारत को आर्थिक ताक़त बना सकता है ?आज भारत के आर्थिक संसाधन का सबसे ज्यादा उपयोग कश्मीर के लोग कर रहे है .भारत की आर्थिक संसाधनो की सबसे ज्यादा लूट इसी कश्मीर मे है लेकिन यहाँ के सियासतदान इस लूट को छिपाने के लिए भारत जब तब नशिहत भी देते है .पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला कहते है कि रियासत अपने संसाधनों से  अपने कर्मचारियों को एक महीने की  तनख्वा भी नही दे सकती है इस संसाधन से आम लोगों की  तरक्की की बात तो सोची भी नही जा सकती   लेकिन फिर भी फारूक साहब को ऑटोनोमी चाहिए तो गिलानी को आज़ादी .भारत के पैसे से फारूक साहब बनायेंगे खुशहाल कश्मीर ? तो पाकिस्तान के पैसे से गिलानी साहब बाटेंगे फ्री शराब ...