
बनिता को उसकी भाभी ने गाँव के एक निर्धन बुजुर्ग बिद्या पोधा के हाथ महज ४० रूपये में बेच डाली थी । बिद्या पोधा ख़ुद भीख मांग कर अपना गुजरा करता था सो अपने साथ बनिता का भरण पोषण उसके लिए मुश्किल था । लेकिन बनिता की भाभी के लिए अपने चार बच्चों की परवरिश उसे अँधा बना दिया था । बनिता शादी के बाद अपने पति के साथ कालाहांडी के बंग्मंदा गाँव चली आई थी । इन २५ वर्षों में देश ने काफ़ी तरक्की कर ली लेकिन बनिता का संघर्ष बरक़रार रहा । आज उसके पाँच बच्चे है और एक बुढे बीमार पति लेकिन सबके पालन पोषण की जिम्मेबारी बनिता पर ही है । स्थानीय आंगनबाडी केन्द्र में बनिता खाना बनाने का काम करती है और इस एवज में ५०० रूपये महिना पाती है । इसी पाच सौ रूपये की बदौलत बनिता अपने पुरे परिवार की भूख मिटाती है । यानि भूख से सरोकार बनिता को २५ साल पहले भी था और आज भी है लेकिन ये अलग बात है कि वह अपनी भाभी की तरह किसी बच्चे को बेचने को तैयार नही है ।
कालाहांडी भूख का पर्याय बन गया । दर्जनों सरकारी प्रोग्राम यहाँ चलाये गए लेकिन न तो इस इलाके में भूख की त्राशदी कम हुई न ही बनिता जैसी माताओं की मुश्लिले कम हुई । जिस के घर कभी राजीव गांधी ख़ुद हाल चाल लेने पहुंचे उसे आज तक इंदिरा आवास योजना से एक अदद घर नही मिला ।सरकारी योजनाओं का जितना चीरहरण कालाहांडी में हुआ है उतना शायद ही कही देखने को मिले । ये अलग बात है आज अगर राहुल गाँधी उसका हाल जानने पहुचे तो बिन्देश्वरी पाठक जैसे समाजसेवी बनिता को लाख दो लाख रूपये देने जरूर पहुच जायेंगे । लेकिन न तो बनिता विदर्भ की कलावती है न ही मीडिया की नजर में बनिता आज कोई ख़बर है ।