रविवार, 2 मई 2010

कश्मीरी नौजवानों के हाथों यह पत्थर किसने पकडाया है ?

घर से ऑफिस निकले शफीक अहमद शेख को नहीं पता था कि अगले चौक पर कुछ पत्थर वाले उनका इंतजार कर रहे है .जैसे ही उनकी मिनी बस मगरमाल बाग पहुची एक पत्थर सीधे बस की ओर उछाला गया .ओर सीधे चोट शेख के सर पर लगी .कुछ ही पल में शेख सदा सदा के लिए खामोश हो गए .
बारामुला के अब्दुल अजीज अपने ११ दिन के बच्चा इरफ़ान को हस्पताल ले जा रहे थे लेकिन उन्हें हस्पताल नहीं जाने दिया गया एक उत्साही नौजवान ने एक पत्थर उछाला और पल भर में वह दिन का बच्चा दम तोड़ गया .यानी पत्थर के खेल के शौकीन कश्मीर का नौजवान पत्थरों से लोगों की जान ले रहे है लेकिन सियासत ऐसी कि हुकूमत पत्थर वाजों को रोक नहीं पा रही है और सियासी नेता इसे नौजवानों की हतासा मान रही है .यानि पत्थर युग में पहुच चूका कश्मीर एक नयी संस्कृति को अपना लिया है .
हर जुम्मे के दिन पत्थर वाजी का यह आम नज़ारा होता है .श्रीनगर के जामा मस्जिद के इलाके ,पुराने बारामुला और सोपोर मे अचानक हर शुक्रवार को चौराहे पर एक महफ़िल सजाई जाती है जिसमे उत्साही नौजवानों की टोली हाथ मे पत्थर लिए पुलिस कर्मी को आगे बढ़ने के उकसाती है .इनका नारा होता है जीवे जीवे पाकिस्तान ,हम क्या चाहते आज़ादी . कुछ ही देर पहले ही ये मस्जिदों से नमाज अदा करके ये बाहर निकले होते है .मौलवी शौकत कहते है खुदा की इवादत के बाद दरअसल आदमी सकून पाता है मन में एक शांति होती है लेकिन न जाने ये  उत्साही नौजवान मस्जिदों से क्या सीख़ कर वापस लौटते है .तो क्या अंग्रेजी दा मौलवी मिरवैज ओमर फारूक नौजवानों को मस्जिद नमाज के लिए बुलाते है और उनके जेहन मे जहर भरकर उन्हें पत्थर वाजी के लिए उकसाते है .या फिर बुजुर्ग हुर्रियत लीडर नमाज पढने के बहाने हर शुक्रवार को लोगों को किसी मस्जिद मे इकठा करते है और फिर उस भीड़ को भड़का कर गायब हो जाते है .तो क्या पत्थर वाजों के यही नायक है तो क्या इन पत्थर वाजों के हाथों हुई मौत का जिम्मेवार इन्हें नहीं मानना चहिये ?क्या दंगा भड़काने के सजा इन्हें नहीं मिलनी चाहिए ?लेकिन हुकूमत खामोश है .
पी डी पी की नेता महबूबा मुफ्ती कहती है कि हुकूमत को यह तय करना है कि इन पत्थर वाजों को सरकारी खर्चे पर भारत दर्शन की यात्रा पर भेजे या इन पथ्तःर्वाजों को कानून के दायरे में लायें .लेकिन यही महबूबा अगले दिन नौजवानों की गिरफ्तारी को इंसानी हकूक के खिलाफ बताती है .दरअसल यह पत्थर वाजी यहाँ के नौजवानों ने फिलिस्तीन के नौजवानों से सीखी है .इनके लीडरों ने इन्हें बताया है कि फिलिस्तीन में नौजवानों ने अपने इंतिफादा के लिए पत्थर वाजी को सबसे कारगर हथियार बनाया था . अमरनाथ ज़मीन के मामले मे उठा विवाद को अलहदगी पसंद लीडरों ने इंतिफादा माना और नौजवानों के हाथों पत्थर पकड़ा दिया .नौजवान मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्ला अपनी बेचारगी दिखाते हुए इन पत्थर वालों को कुछ इस तरह बचाव करते है कि "हमारी पुलिस व्यवस्था ने दहशतगर्दों से लड़ने की ट्रेनिंग ली है वे आतंकवादी से तो लड़ सकते है लेकिन इन पत्थर वालों से कैसे लड़ा जाय वह समझ नहीं पायी है .
लेकिन मुख्यमंत्री यह भी मान रहे है कि पत्थर वाजी  कश्मीर मे एक बड़ा कारोबार भी बन गया है .इसे जारी रखने के लिए लाखो करोडो रूपये के फंड मुहैया कराये जा रहे है .लेकिन सवाल यह है कि इस साजिश को नाकाम बनाने मे सरकार क्यों कामयाब नहीं हो पा रही है .इसमें कोई दो राय नहीं कि ये पत्थर वाजी एक बड़ी साजिश का हिस्सा है .कश्मीर मे दहशत गर्दी की आंधी थमी तो इसे एक नए शकल मे पेश किया जा रहा है .खास बात यह है कि यह फ़ॉर्मूला दहशतगर्दों के फोर्मुले से ज्यादा खतरनाक है .पिछले साल इन पथार्वाजों मे १६ साल का नौजवान इनायत खान और १७ साल का फारूक पुलिस के शेलिंग से मारा गया .जाहिर है इस मौत की तीखी प्रतिक्रिया हुई और कश्मीर के प्रमुख शहरो को हफ्ते भर बंद रखा गया .यानी भारत के खिलाफ भड़काने की जो साजिश पाकिस्तान अरबो खरबों खर्च कर  नहीं कर पाया उसे अलहदगी पसंद की सियासत लाख दो लाख मे अंजाम दे रही है .जमा मस्जिद के इलाके मे माता पिता को यह पता है कि उनका बेटा जींश लगाकर और रेबोक के जूते पहनकर मस्जिद नमाज पढने नहीं जा रहा है बल्कि वह पत्थर वाजी करने जा रहा है ,लेकिन उसे रोका नहीं जा रहा है .तो क्या यह नहीं माना जाय कि कानून यहाँ अपना काम नहीं कर रहा है या कानून की  धार कमजोर साबित हुई  है .शैयद अली शाह गिलानी कहते है कि विरोध प्रदर्शन का यह मजबूरी मे नौजवानों ने तरीका अपनाया है .हिजबुल मुजाहिद्दीन के सरगना सैयद सल्हुदीन कहते है कि पत्थर वाजी को  गैर इस्लामी मानने वाले ढोंग कर रहे है .कश्मीर के कई उलेमाओं ने बाकायदा फतवा जारी करके इस पत्थर वाजी की निंदा की है और इसे पवित्र कुरान के आदर्शो के खिलाफ बताया है . फिर किस मजहब  की दुहाई गिलानी और ओमर फारूक दे रहे है किस मजहब के बिना पर सल्हुद्दीन जेहाद कर रहे है .यानि कश्मीर मे जो कुछ भी हो रहा वह सिर्फ ढोंग है .मजहब के नाम पर इंतिफादा करने वाले ,आज़ादी मांगने वाले सिर्फ पैसे के लिए जेहाद कर रहे है तो सियासत करने वाले दूसरी जमातो का सरोकार भी पैसे से ही है .पत्रकार परवेज़ कहते है कि कश्मीर मे लोग अब इन हिंसा ,हड़ताल ,और अलहदगी पसंद सियासत की परवाह नहीं करते उन्हें सिर्फ पैसा चाहिए चाहे वह पैसा आर से आये या पार से .लोग जानते है कि कश्मीर में जब तक हिंसा का दौर है तब तक भारत की ओर से खजाने खुले रहेंगे .इसलिए गिलानी साहब को लोग अपना लीडर माने या न माने उन्हें इस बात का यकीन है जब तक कश्मीर मे अलहदगी पसंद की सियासत है तब भ्रष्टाचार का बोलबाला है तब तक लूट का बाज़ार गर्म रहेगा .
मैंने कश्मीर के अपने एक मित्र से  पूछा था क्या वाकय मे लोग अब हिंसा और बंद की सियासत से तंग आगये है .उसने कहा था यह कहना सरासर झूठ होगा .कश्मीर मे शांति लौटे यह कोई नहीं चाहता ,न ही यहाँ की हुकूमत ,न ही फौज ,न ही केंद्र सरकार .न ही यहाँ के लोग क्योंकि इनमे हरका सरोकार पैसे से है .हालत बदलने की इच्छा ,शांति की कामना सिर्फ यहाँ की माँ को है जिनके बच्चे जाने अनजाने हिंसा के शिकार हो रहे है .अमन की दरकार अगर एक बाप को भी नहीं है तो कह्सकते है कि कश्मीर पत्थर युग में लौट चूका है .