

१४ अगस्त को जंगल से घर लौटे चार युवक ने बताया कि दरअसल उन्हें नक्सलियों ने अगवा कर घने जंगल के बीच ले गए थे । लेकिन मंगलू ने उन्हें चकमा देकर भागने की कोशिश की तो नक्सली ने उसे गोली मार दी । उनके लोगों ने गाँव में यह ख़बर फैलाई की पुलिस ने मंगलू को गोली मारी है । नक्सली मीडिया का विस्तार यहाँ तक़रीबन हर इलाके में है । मास मीडिया का इससे बेहतर उपयोग शायद ही हुकूमत कर सकती है जैसा नक्सली कर रहे है ।
दूसरी घटना कांकेर की है जहाँ से यह ख़बर आई कि नक्सलियों ने एक परिवार के आठ लोगों को जिन्दा जला दिया । मरने वालों में चार साल का बच्चा भी था । ख़ुद राज्य के मुख्यमंत्री ने इसके लिए खेद व्यक्त किया था । कांकेर पुलिस को जिस व्यक्ति ने यह सुचना दी थी ,बाद में वह व्यक्ति सीन से गायब हो गया । पुलिस इस ख़बर को हर हाल में पुष्टि करना चाहती थी । घटना स्थल पर जाने का मतलव था खतरे का बुलावा ,सो पुलिस फूंक फूंक कर कदम रख रही थी । दो दिन बाद पता चला कि यह फर्जी रिपोर्ट थी । इस बीच हत्या की ख़बर देने वाले रामायण विश्नुकर्मा भी पुलिस के गिरफ्त में आ गए । उन्होंने यह खुलासा कर के सबको लगभग चौका दिया था कि ऐसी रिपोर्ट थाणे में लिख्बने के लिए उन्हें नक्सलियों ने प्रेरित किया था । मकसद साफ़ था कि नाक्साली पुलिस पार्टी को अपने जाल में फ़साना चाहते थे । नक्सली को यह एहसास था कि आठ लोगों के मौत की तफ्तीश करने पुलिस पार्टी जरूर पहुँचेगी ,लेकिन पुलिस ने ऐसा नही किया और नाक्साली की रणनीति बेकार साबित हुई ।
लेकिन महाराष्ट्र के गढ़चिरोली में पुलिस ने ऐसी साबधानी नही बरती और एक महिला के ग़लत सुचना के आधार पर कारवाई करने पहुँची पुलिस पार्टी के १८ जवान सहित एक ऑफिसर मारे गए ।
ये नक्सली प्रचार का असर है कि सात राज्यों के ग्रामीण और जंगल के इलाके में नक्सली अपना दबदवा बरक़रार रखते हुए अपना पैर दुसरे राज्यों में फैला रहा है । नक्सालियों के खुफिया तंत्र कितना मजबूत है इसका अंदाजा लालगढ़ ऑपरेशन से लगाया जा सकता है । केन्द्र सरकार की यह ताजा पहल लगभग बेकार साबित हुई है । राज्य सरकार के निकम्मेपन की मार केंद्रीय फाॅर्स को भी झेलनी पड़ी । वेस्ट मिदनापुर के तक़रीबन १०००० गाँव में फैले नाक्साली प्रभाव को नाकाम इसलिए नही बनाया जा सका क्योंकि आम लोगो के बीच सरकार से कोई संवाद नही था । पारा मिलिटरी फाॅर्स खुफिया जानकारी के बगैर पुरे महीने इधर उधर हाथ पैर मरती रही लेकिन न तो कोई नाक्साली कमांडर पकड़ा गया न ही सुर्क्षवालों को नाक्साली ठिकाने का पता लग पाया । नाक्साली हिंशा लाल गढ़ में जारी है । साफ़ है की नक्सल प्रचार के सामने सरकार बेवस है । बस्तर इलाके में लोक सभा चुनाव हुए विधान सभा चुनाव हुए लेकिन आज तक कोई उमीदवार नक्सल प्रभावित इलाके का दौरा नही कर पाया । आखिर इन इलाके के लोगों का कौन जनप्रतिनिधि है । अबुज्मार के जंगली इलाकों में रहने वाली एक बड़ी अवादी नक्सालियों के अलावा अज तक प्रशाशन के एक व्यक्ति से नही मिला है । इस हालत में कल्पना की जा सकती है एक केरल जैसा एक हरियाणा जैसे राज्य के भूभाग पर नक्सालियों का कब्जा सरकार कैसे हटा सकती है ?नक्सली बन्दूक से नही हारेंगे क्योंकि उन्होंने आदिवासी वस्तियों को अपना कबच बना लिया है । सड़क मार्गों पर नक्सालियों ने लैंड मैंस बिछा रखा है । लोगों से सरकार का संपर्क नही है। इस हालत में खुफिया जानकारी मिलना मुश्किल है । नक्सल के ख़िलाफ़ हमले से पहले गाँव से लेकर शहरों तक उसके प्रचारतंत्र को तोड़ना जरूरी है ।