सोमवार, 7 मार्च 2011

किसका पाकिस्तान, मुल्लाओ का या जमींदारों का ?


सस्ता खून और महगा पानी पाकिस्तान में कहाबत नहीं बल्कि जीवन की हकीकत है .पुरे मुल्क में खुनी खेल का सिलसिला जारी है .आम आदमी मारे जा रहे है तो वी आई पी भी  ..ब्लासफेमी लाव की मुखालफत के नाम पर गवर्नर सलमान तासीर की मौत हो चुकी है तो फेडरल मिनिस्टर शाहबाज भट्टी को भी मौत की नींद सुला दिया गया है .सलमान तासीर की हत्या उनके बॉडी गार्ड ने की तो शाहबाज की हत्या पाकिस्तान के तालिबान ने .यानी मुल्क में आज कुख्यात इश निंदा कानून के पैरोकार मुल्ला - मिलिट्री और दहशतगर्द तंजीमो के सामने सरकार और समाज ने घुटने टेक दिए है .हालत को इस तरह समझा जा सकता है की एक गवर्नर की मौत पर कोई दो शब्द सहानुभूति के भी नहीं आये .मुल्क के सद्र और वजीरे आजम ने सलमान की मौत पर चुपी साध ली तो मुल्लाओं ने उनके आखरी रसुमात पर किसी मौलबी को भी नमाज पढने की इज़ाज़त नहीं दी और कातिल कादरी पर फूल बरसाए गए .यही हाल कमोवेश शाहबाज भट्टी को लेकर भी था .लेकिन  एलिट क्लास के लोगों की बर्बर हलाकत और पाकिस्तान में समाज की अनदेखी कुछ अलग कहानी वया कर रही है .
१९०६ में पहलीबार आल इंडिया कांग्रेस के सामने मुस्लिम जमींदारो ,राजे राज्बारों ने मुस्लिम लीग के नाम से एक अलग पार्टी वजूद में लाया .मकसद था कांग्रेस की सियासत की धार कमजोर करना .मुल्क के एलिट मुस्लिम क्लास का इन्हें भारी समर्थन हासिल हुआ लेकिन आम मुसलमान और उनके सियासी रहनुमा कांग्रेस से जुड़े रहे .मुस्लिम लीग के कद्दावर नेता मो अली जिन्ना ने खुद शुरुआती दौर में  मजहब के नाम पर अलग पार्टी का विरोध किया था .लेकिन ये अलग बात है की १९३४ में जब मुल्क के एक बड़े जमींदार चौधरी रहमत ने एक अलग मुल्क पाकिस्तान का नाम वजूद में लाया तो जिन्ना उस मजहबी सियासी धारे से अपने को अलग नहीं कर सके .मुल्क के जमींदार मुसलमानों को यह अंदेशा था कि आज़ादी मिलते ही उनका वजूद खतरे में पड़ जाएगा सो उन्होंने कांग्रेस के तेज तर्रार नेता मो अली जिन्ना को अपने साथ लिया .तारीख में झाँकने की जरूरत इसलिए है कि जिन लोगों ने अपने लिए पाकिस्तान बनाया आज वही पाकिस्तान उन्हें हाशिये पर खड़ा कर दिया है .पाकिस्तान के अस्तित्व में आने के ठीक एक साल बाद ही कायदे आज़म को यह एहसास हो गया था कि यह फैसला उनके जीवन की सबसे बड़ी भूल थी .लेकिन बाकी एलिट क्लास को यह समझने में थोडा वक्त लगा कि मजहब की सियासी बुनियाद काफी कमजोर होती है .
 १९४७ से लेकर आज तक पाकिस्तान की हुकूमत यह तय नहीं कर पायी है कि मुल्क की दिशा और दशा क्या होनी चाहिए ?. कभी सामन्ती और पढ़े लिखे लोगों का नेतृत्व इस्लाम के नाम पर अपनी सत्ता मजबूत करने की कोशिश करता है तो बंगलादेश के नाम से अलग मुल्क का संघर्ष इस्लाम के नाम पर मुल्क की अवधारणा को गलत साबित करती है . कभी पाकिस्तान मे इलीट फौज  कश्मीर का बहाना बनाकर पाकिस्तान मे अपनी सत्ता मजबूत करता है ,तो कभी भारत के खिलाफ नफरत फैला कर वही इलीट जनरल जिहाद की वकालत करता है  . १९८५ के दौर मे जनरल जिया ने अमेरिका का साथ लेकर मुल्ला और मिलिट्री  का एक गठजोड़ बनाया और पुरे पाकिस्तान में हर आम और खास को बम और बारूद सुलभ बना दिया . इस दौर मे आतंकवादियों का एक दो नहीं ५० से ज्यादा संगठन बने जिन्हें पाकिस्तान में फलने -फूलने की पूरी छूट दी गयी . पाकिस्तान का हर मस्जिद और मदरसे इनके गिरफ्त में आ गये जहाँ नफरत की फसल तैयार होने लगी .जिनका इस्तेमाल कभी अफगानिस्तान में किया गया तो कभी जिया के  दहशतगर्दों को भारत के खिलाफ झोंक दिया गया . इन वर्षों में इन सरकारी दहशतगर्दों ने सिर्फ भारत में ही २०००० से ज्यादा लोगों की जान ली . लेकिन चुकी पाकिस्तान ने इन दहशतगर्द करवाई को कश्मीर की आज़ादी के साथ जोड़ रखा था ,इसलिए दुनिया ने इसे आतंकवादी कहने के वजाय इन आतंकवादियों को फ्रीडोम फाइटर का दर्जा दे रखा था . लेकिन ९\११ के अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेण्टर पर हुए आतंकवादी हमले ने दुनिया को एहसास कराया कि आतंकवाद को अलग अलग चश्मे मे देखने की वजह से ही पाकिस्तान मे जेहादियों को फलने फूलने का मौका दिया है .पाकिस्तान से निकलकर अब जेहादी  पश्चिम के मुल्कों में निज़ामे मुश्तफा का परचम फहराने लगे है . आतंकवाद के खिलाफ पश्चिम के मुल्को खासकर अमेरिका के सख्त रबैये ने पाकिस्तान की रणनीति को गड़बड़ा दिया  और अब वहा की हुकूमत और आतंकवादी आमने सामने है ..लेकिन जनरल जिया के ब्लासफेमी लाव पुरे समाज को तिल तिल कर मरने पर मजबूर कर दिया है .यानी इस कानून को अपना कारगर हथियार बनाकर बुनियाद परस्त तंजीमो ने सिविल सोसाइटी और हुकूमत के मुह बंद कर दिए है .खुद जनरल कियानी आज अगर यह मान रहे है कि सलमान तासीर और भट्टी की हलाकत की  सार्वजानिक निंदा नहीं की जा सकती है .यानी पाकिस्तान में कानून का कम और बन्दूक का जोर ज्यादा है ..
  जिस विष बेल को पाकिस्तान ने बड़ा किया वही आज पाकिस्तान को डस रहा है . इस्लामाबाद से लेकर लाहोर तक पेशावर से लेकर कराची तक पाकिस्तान का शायद ही कोई शहर है जो आतंकवादी हमले से लहुलाहन न हो . रावलपिंडी का आर्मी हेड  कुआटर    से लेकर लाहोर का पुलिस छावनी ,आई एस आई के दफ्तर से लेकर मस्जिद तक हर प्रतिष्ठान धमाको से दहल रहा है . इस्लामिक देश पाकिस्तान मे शिया , आतंकवादी के निशाने पर है तो मस्जिद मे नमाज अदा करने आये नमाजी जब तब आतंकवादियों के धमाके के शिकार हो जाते है . पिछले वर्षो में १०००० से ज्यादा आम शहरी पाकिस्तान की बुनियाद परस्त सियासत के शिकार हो चुके है लेकिन पाकिस्तान में इंतजामिया और फौज  किसी बड़े विद्रोह की आशंका के कारण खामोश तमाशबीन बनी हुई है .क्या पाकिस्तान की ये हालत वाकई किसी पडोशी मुल्क के लिए खुशखबरी हो सकती है ?
अमेरिकी नागरिक रेमन डेविस के बहाने पाकिस्तान की बुनियाद परस्त तंजीमे अमेरिका का मुहं चिढ़ा रही है .डेविस की रिहाई को लेकर अमेरिकी दवाब पाकिस्तान में बेअसर साबित हो रहे है .यह उस अमेरिका की हालत है जिसकी मदद से पाकिस्तान का अर्थशास्त्र कायम है .हर साल अमेरिका ३-४ बिलियन डालर की मदद पाकिस्तान को देता है शायद इस भ्रम में कि पाकिस्तान उसे अफगानिस्तान के पचड़े से उबार लेगा .लेकिन अमेरिका खुद पाकिस्तान में फसता नज़र आ रहा है .
अल्लाह -आर्मी और अमेरिका पाकिस्तान की सियासी -समाजी जिन्दगी का अहम् हिस्सा रहा है .मौजूदा दौर में इलीट क्लास के घटते रसूख के कारण अमेरिका का असर कमजोर होने लगा है .निम्न और मध्यम वर्ग ईश निंदा कानून के जनून में इस कदर मस्त है कि वह सब कुछ कुर्बान करने को तैयार है .यानी ब्लासफेमी लाव ने मुल्लाओ को एक कारगर हथियार  दे दिया है और वह इस हथियार से पुरे समाज को हांक रहा है .पाकिस्तान के  दानिश्वर और संपन्न तबका या तो पाकिस्तान से रुखसत कर गए है या फिर मुर्दों की ख़ामोशी अख्तियार कर ली है .मजहबी जनून के सामने मुल्क के तमाम इदारे बौने साबित हुए है .लेकिन पूरी दुनिया खामोश है शायद इस भ्रम में कि इस समस्या का हल अमेरिका ढूंढेगा .आज पुरे अरब वर्ल्ड में तानाशाहों ,राजे रजवारों के खिलाफ जबरदस्त मुहीम चल रही है .जन आन्दोलन की इस आंधी में कई तानाशाह धरासायी हो चुके है तो कई तानाशाह वक्त का इंतजार कर रहे है लेकिन अरब वर्ल्ड में यह जनांदोलन मजहबी नहीं बल्कि इसका आधार आर्थिक है लेकिन इसके उलट पाकिस्तान में एक कट्टरपंथी आन्दोलन जबरन अपने साथ पुरे समाज को प्रभावित कर रहा है .और जर्जर तबाह पाकिस्तान की हालत से लोगों का ध्यान हटा दिया है . तो क्या यह इंतजामिया की साजिश है ? 
पाकिस्तान में मकबूल तमाम इस्लामिक नजरिये का केंद्र भारत रहा है .देवबंदी से लेकर बरेलवी तक अहले हदीश से वहाबी तक तमाम विचारधाराओं का जन्म भारत के ही शहरो में हुआ था .लेकिन भारत के सेकुलर धारा में इन नजरिये का कभी भी बेजा इस्तेमाल नहीं हुआ जाहिर है पाकिस्तान में जरी संकीर्ण मजहबी बहस में भारत के प्रतिष्ठित इदारे पाकिस्तान को इस संकट से बाहर निकाल सकता है .लेकिन पाकिस्तान में जिस कदर मजहबी कट्टरता सामाजिक ताने वाने को विगाड रही है .सत्ता शीर्ष पर बैठे लोग खामोश बने बैठे .इस हालत में भारत के सामने यह बड़ी चुनौती होगी कि वह किसके साथ संवाद जोड़े .पाकिस्तान में सरकार के वजूद पर पहले ही आर्मी और मुल्लाओ ने पहले ही सवालिया निशान लगा दिया था .फौज से भारत का कोई संवाद नहीं है लेकिन सत्ता पर कविज होने के लिए फौज एक बार फिर मौका ढूंढ़ रही है लेकिन इस बार आर्मी के साथ अल्लाह जरूर है लेकिन अमेरिका नहीं है .....