रविवार, 30 मई 2010

१२४ लोगों की हत्या के लिए माफ़ी कौन मांगेगा ?


पश्चिम बंगाल के मिदनापुर इलाके मे इस बार मओवादियो के निशाने पर मुंबई -हावरा एक्सप्रेस ट्रेन आई .जिसके चपेट मे १०० से ज्यादा लोग बे मौत मारे गए .पश्चिम बंगाल पुलिस का दाबा है की नक्सली समर्थित पी सी पी ऐ यानि पीपुल्स कमिटी अगेंस्ट पुलिस अट्रोसिटी के दस्ते का यह कुकृत्य है .यानी वह वही कमिटी है जिसने मिदनापुर के तीन जिलों मे ममता बनर्जी का आधार मजबूत किया है .माता दीदी की ट्रेन निशाने पर है लेकिन मारे जा रहे है आम लोग .भला दीदी के सेहत पर क्या फर्क पड़ता है ?.लेकिन पश्चिम बंगाल के मुनिसिपल चुनाव ने ममता दीदी की मुश्किलें बढा दी है .सो ममता कह रही है कि कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है यानि इस हादसे की जिम्मेदारी राज्य सरकार को लेनी चाहिए .जब की राज्य सरकार सारा दोष ममता के सर डाल रही है और नाक्साली चुप चाप तमाशा देख रहे है .राजधानी एक्सप्रेस से लेकर कई गाड़िया मिदनापुर इलाके मे नक्सालियों के सोफ्ट टार्गेट बने है लेकिन हर बार ममता दीदी ख़ामोशी ही बरती है .तो क्या नक्सलियों ने अपनी रणनीति मे परिवर्तन लाया है .क्या बड़े हमले करके नक्सली राष्ट्रीय स्तर पर इसकी धमक बनाना चाहते है .लेकिन सरकार खामोश है .बीजेपी कह रही है कि नक्सली राष्ट्रीय समस्या है लेकिन केंद्रीय गृह मंत्री कह रहे है कि उन्हें नक्सलियों के खिलाफ अभियान छेड़ने के लिए मैंडेट नहीं मिला हुआ है .ये मैंडेट वे किससे मांग रहे है यह एक बड़ा रहस्य है .हालत यह है कि दंतेबाड़ा मे नक्सली हमले मे  सी आर पी ऍफ़ के ७६ जवानों की मौत से आह़त गृह मंत्री चिदंबरम ने कहा था कि बक स्टॉप विथ मी यानि बड़ा दिल दिखाते हुए इस नाकामयाबी कि जिम्मेदारी खुद पर ली थी लेकिन ठीक एक हफ्ते के बाद उसी दंतेबाड़ा मे नाक्साली हमले मे मारे गए ५६ एस पी ओ और आम आदमी को लेकर गृह मंत्री ने जम कर राज्य सरकार की खिचाई की .आखिर एक ही हप्ते मे  क्यों बदल गए है गृह मंत्री ?यह उनकी राजनितिक मजबूरी है या फिर आलाकमान का दवाब .आज अगर नक्सल समस्या को लेकर कांग्रस नेता द्विगविजय सिंह अगर चिदम्बरम को नशिहत दे रहे है तो समझा जा सकता है कि कहानी मे दर्द कहाँ है ?
पिछले वर्षो मे नक्सली हमले का जायजा ले तो हर साल नक्सली तक़रीबन १५०० वारदातों को अंजाम दे रहा है जिसमे ७००-८०० के करीब आम आदमी मारे जा रहे है .इस साल के आंकड़े पर गौर करे तो तक़रीबन ५ से ७ लोग हर दिन नक्सली हमलों के शिकार हो रहे है .लेकिन सरकार की ओर से राजनीती का सिलसिला जारी है .नक्सल समस्या को जानने की कोशिशे जारी है .नक्सल के खिलाफ किस तरह का ऑपरेशन हो और इसकी जिम्मेदारी कौन ले ,इसपर भी बहस जारी है .यह बहस प्रधान मंत्री के कार्यालय से लेकर क्लबो और फैव स्टार होटलों मे चलाये जा रहे है लेकिन ठोस पहल अभी कोसो दूर है .यानी जिस तरह पिछले वर्षों मे कश्मीर की आतंकवादी समस्या को लेकर कई दूकाने खुली ठीक उसी तरह नक्सल समस्या को लेकर दुकाने सजाई जा रही है .आईडिया बेचने के लिए हर के पास कुछ न कुछ जरूर है .
लेकिन इन तमाम बहस को पीछे छोड़ते हुए एक कुशल युद्ध विशेज्ञ की तरह नक्सली न केवल अपना आधार मजबूत कर रहा है बल्कि सरकार को हर मोर्चे पर शिकस्त दे रहा है .यानी बड़ी ही चतुराई से नक्सली इस जंग मे केंद्र सरकार को चुनौती दे रहा है और नोर्थ ब्लोक मे बैठे कमांडर इन चीफ बचाव की मुद्रा मे कोई न कोई बहाना ढूंढ़ रहा है .अगर आप नक्सलियों का कश्मीर के आतंकवादियों के साथ तुलना करे तो नक्सली कई मामले मे उनसे २० है .यानी सुरक्षावालों  के खिलाफ कारवाई मे नक्सली को  कोई नुकसान नहीं उठाना पड़ रहा है .अगर नुकसान की तुलना करे तो १० जवानों की मौत के बदले नक्सली अपने एक या दो कैडर खोता है .जबकि हर नक्सली हमले के बाद सुरक्षावालों को अपना कैम्प बदलने या बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ता है .कश्मीर मे आज आतंकवादी और सुरक्षवालो के बीच मौत का अंतर १:३३ है जबकि नक्सल प्रभवित राज्यों मे यह आंकड़ा १०:१ है .लेकिन सरकार के सामने कोई रणनीति नहीं है .खास बात यह है कि वोट की सियासत नक्सलियों को और मजबूत कर रही है .पश्चिम बंगाल इसका सबसे बड़ा उदाहरण है .
ये ममता दीदी का मिदनापुर  है या माओवादी दादा का ठीक ठीक कहना थोड़ा मुश्किल है लेकिन यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि यह अव्यवस्था का लालगढ़ है । बस्तर के बाद यह नक्सालियों का सबसे बड़ा लिबरेटेड जोन बना और सरकार को मजबूरन करवाई करनी पड़ी । ३० साल के वामपंथी सरकार की अव्यवस्था का जीता जगता सबूत है लालगढ़ । पिछलेसाल  से नक्सली बुद्धदेव सरकार को खुली चुनौती दे रहे है  । लालगढ़ में नाक्साली रैली निकाल रहे थे प्रेस कांफ्रेंस कर रहे थे और राज्य सरकार चुपa चाप तमाशा देख  रही थी तो माना जा सकता है कि सरकार ने नक्सालियों के आगे हथियार डाल दिया था । या यु कहे कि ममता की खौफ ने वाम सरकार के हाथ पैर बाँध दिए थे । वाम पंथी सरकार चाह रही थी कि केन्द्र करवाई करे और राज्य सरकार तमाशा देखे । कम्युनिस्ट पार्टी का आरोप है कि ममता ने माओवादी से मिलकर राज्य सरकार के ख़िलाफ़ साजिश रची है ,लेकिन सवाल यह है क्या ममता का पश्चिम बंगाल मे इतना असर है कि १००० से ज्यादा गाँव ,कई जिले वाम सरकार से नाता तोड़कर नक्सालियों के शरण में चले गए । अगर वाकई ऐसी हालत है तो सरकार को इस्तीफा देना चाहिए क्योंकि सरकार से लोगों का भरोसा उठ गया है ।
३० साल के वामपंथी शासन  की कामयाबी के रहस्यों से मिदनापुर  ने परदा उठा दिया है । यानि लोगों ने बुद्धदेव सरकार के फ्रेंचैजे पॉलिसी को नकार दिया है । और इस फैसले में लोगों का साथ दिया है नक्सालियों ने । नरेगा में किस आदमी को काम मिलेगा ,किसको पैसे मिलेंगे किसे घर मिलेगा, किसे राशन कार्ड मिलेंगे किसे नही ये वहां सरकारी कर्मचारी तय नही करते है  बल्कि ये फ़ैसला वाम दल के कार्यकर्त्ता लेते है । नदीग्राम से लेकर लालगढ़ तक लोगों के गुस्से को ममता ने हवा दी तो नक्सालियों ने ममता की झोली में वोट डाल कर अपने लिए दूसरा लिबरेटेड ज़ोन बना लिया । यह सियासी लेन देन का सौदा है ।आज ममता दीदी के ट्रेन को निशाना बनाकर नक्सली अपना दाम मांग रहे है .यानी मुफ्त की मलाई नक्सली ममता दीदी को किसी भी सूरत मे खाने नहीं देंगे .लेकिन खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है .
नाक्साल्बाड़ी में अपनी हार से आह़त मओवादिओं को ३० साल बाद बंगाल में अपना आधार मजबूत करने का मौका मिला है । माओवादी की विचारधारा आज भी वही है जो ३० साल पहले  चारू मजुमदार ने दिया था । लेकिन वाम दल भले ही ऑफिस में लेनिन और माओ की तस्वीर लगाते हों लेकिन व्यवहार में उनका रबैया किसी सामंती से कम नही है । सत्ता और सरकार पाने और बनाये रखने के लिए वामपंथी सरकार ने बंगाल से लेकर केरल तक जो हथकंडे अपनाए वही प्रयोग आज दूसरी जमात भी दुहरा रही है ।
३२ साल पहले नक्सली  सामंती विरोध का नारा देकर अपने लिए सत्ता पाने का आसन तरीका खोजा था । बन्दूक से सत्ता पाने का यह तरीका लोगों ने पसंद नही किया और नक्सली  आन्दोलन की भ्रूण हत्या हो गई । लेकिन इस दौर में भ्रष्टाचार और  ,सरकारों की ऑर से आम आदमी की लगातार उपेक्षा ने नक्सालियों को फिनिक्स बना दिया है । देश के नक्सली प्रभावित ८० जिलो मे शिशु मृत्यु दर ५० फिसद से ज्यादा है .हस्पतालों का वहा कोई नामोनिशान नहीं है .इन जिलों के तकरीबन २०००० गाँव मे आज भी न कोई स्कूल है न ही कोई पक्का माकन .सड़कों का तो इन इलाकों मे नमो निशान नहीं है .इंडिया शायनिंग का यह बदसूरत चेहरा कई संस्थाओं ने दिखाया है लेकिन हर बार सरकार बड़ी बड़ी योजनाओं की बात करके मूल समस्या से मूह मोड़ लेती है .केंद्र सरकार कहती है कि ग्रामीण इलाके के विकास के लिए भरपूर फंड दिए जा रहे है लेकिन पैसा कहाँ जाता है यह उन्हें नहीं पता है .देश मे गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों को सस्ते दर पर अनाज उपलब्ध कराने की बात की जा रही है लेकिन राशन कार्ड इन गरीबों के बदले उन्हें मिले हुए है जो आर्थिक रूप से संपन्न है .एक शर्वे के मुताबिक ४० फिसद से ज्यादा रासन कार्ड फर्जी है .उत्तर प्रदेश मे सार्वजनिक वितरण प्रणाली मे हुए करोडो रूपये के घोटाले का क्या हुआ यह अब तक रस्य बना हुआ है .लेकिन सरकारी महकमा यह दलील देता है इन पिछड़े इलाके मे नक्सली काम होने नहीं देते या फिर हर प्रोजेक्ट मे अपना हिस्सा मांगते है अगर बहती गंगा मे नक्सली अपना हाथ धो रहे है तो इसके कौन जिम्मेदार है यह सवाल पूछा जा सकता है .यानी भ्रष्टाचार के आकंठ मे डूबा यह देश आज अगर नक्सली हमलों से कराह रहा है तो इसका जिम्मेवार सिर्फ इस देश की राजनीती है
इस देश की गरीबी ने  नक्सलियों को ऐसी उर्बरा ज़मीन दी है कि आज जिन इलाके मे जहाँ सबसे ज्यादा गरीबी है नक्सलियों को वहां उतना ही ज्यादा दवदबा है  .नक्सली इस बात को अच्छी तरह जानते है कि नेपाल और भारत मे काफी अंतर है वो यह भी जानते है कि नेपाल मे आर्म्स रेवोलुसन के जरिये सत्ता पाना नेपाली माओवादियों के लिए आसन था ,भारत मे यह प्रयोग कभी संभव नहीं है .यही वजह है कि नक्सलियों ने बातचीत से लेकर चुनाव के प्रक्रिया मे शामिल होने की हर पेशकश को ठुकराया है .उसे यह भी पता है इस देश मे वोट और सत्ता के भूखे नेता उसका कभी कुछ बिगाड नहीं सकते .ममता दीदी को पश्चिम बंगाल मे सत्ता चाहिए तो उन्हें हर हाल मे नक्सलियों का बचाव करना होगा .छतीसगढ़ से लेकर झारखण्ड मे कांग्रेस को अपना आधार बढ़ाना है तो इन राज्यों के कोंग्रेसी नेता को नक्सल के खिलाफ अभियान को रोकने होंगे .बिहार मे अगले साल चुनाव है तो नितीश जी गृह मंत्री को ज्यादा न बोलने की नशिहत दे रहे है .लेकिन सबसे बड़ा हादसा यह है कि नक्सल के खिलाफ अभियान के मजबूत कप्तान और  गृह मंत्री चिदम्बरम खामोश हो गए है .

1 टिप्पणी:

  1. इस सड़े हुए लोकतंत्र में पीड़ित ही डरता है ,मरा हुआ ही मरता है ,जुल्म सहने वालों पे ही जुल्म होता है तो माफ़ी भी इस हादसे में मरने वाले ही मांगेंगे ? अरे अब भी वक्त है ऐसे गीदरों की तरह मरने से तो अच्छा है इन भ्रष्टाचारियों को निडर होकर गद्दी छोड़ने के लिए मजबूर करने के लिए मरो |

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