रविवार, 11 सितंबर 2011

धमाके में देसी साजिश खोजिये गृहमंत्री जी .....


                                 धमाके जारी  हैं ..बहस जारी है ...पिछले सात साल में २७ धमाके ..सैकड़ो लोगों की मौत ..हजारों घायल लेकिन जनता खामोश है .. मनमोहन सिंह सरकार के वरिष्ठ मंत्री सुबोध कान्त सहाय  कहते है "लोग अब इन धमाकों के आदी हो चुके हैं.."शायद ये बोम्ब धमाके रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन गए है. दिल्ली हाईकोर्ट धमाके में १२ लोगों की जान गयी और ७० लोग जख्मी हुए .लेकिन इससे पहले भी कई धमाके हुए हैं और नतीजा कुछ भी हाथ नहीं आया .२४ घंटे के खबरिया चैनेल को खबर चाहिए , सरकार की ओर से खबर नहीं मिलेगी तो चैनेल अपने तरीके से खबरों का विश्लेषण करेंगे जाहिर है सरकार मीडिया मनेजमेंट हर समय कुछ न कुछ स्कूप जरूर मुहैया करेगी .ये खबरों का खेल है इसे खेलना सरकार बखूबी जानती है. मनमोहन सिंह की पहली पारी में अलग अलग धमाकों में ४ हजार से ज्यादा लोग मारे गए फिर भी अगले चुनाव में मनमोहन सिंह न केबल सत्ता में दुबारा लौटे बल्कि यह भी साबित कर दिया कि इस देश में आतंकवाद कभी चुनावी मुद्दा नहीं हो सकता और अगर यह  कभी मुद्दा नहीं हो सकता तो सरकार की गंभीरता पर सवाल उठाना और ठोस करवाई की उम्मीद करने का हक कम से कम लोगों ने खो दिया है.
                                                                                   लगातार हो रहे ब्लास्ट से आहत पत्रकार अमित कुमार कहते है"सरकार और देश के राजनेता यह तय नहीं कर पा रहे है कि वह किसके साथ जाय  सरकार के प्रधानमंत्री आतंकवाद से लड़ने का हर बार अज्म दोहराते है .उसी सरकार के एक बड़े नेता आतंक में लिप्त लोगों के लिए जोर शोर से वकालत करते है.लेकिन फिर भी हम अवोध बालक की तरह कुछ ठोस करवाई चाहते है " २६\११ के मुंबई हमले में स्थानीय स्लीपंग सेल की भूमिका को पूरी तरह से नकार दिया गया क्योंकि जांच खास समुदाय के गुमराह लोगों की ओर जा रही थी .क्योंकि ये सियासत का मामला है इसलिए जांच एजेंसी को समझौता करना पड़ा. लेकिन उसी मुंबई में दुबारा धमाके हुए २६ लोग मारे गए  लेकिन पुलिस के हाथ कुछ नहीं लगा क्योंकि इन धमाको में एक बार फिर पुलिस ने एक बार फिर बड़ा खुलासा सामने लाया "पाकिस्तान और आई एस आई के इशारे पर धमाके हुए "लेकिन किसने इस धमाके को अंजाम दिया ?कौन लोग इन धमाको में शामिल थे इसे ढूंढ़ पाने में गृह मंत्री चिदम्बरम के एन आई ए और काउंटर टेर्रोरिस्म सेंटर के तमाम विश्लेषण फेल साबित हुए .
                                                                       शिवराज पाटिल के बाद गृह मंत्री की भूमिका में आये पी चिदम्बरम से देश ने कुछ ज्यादा उम्मीद बाँध ली इसमें चिदम्बरम का क्या कशुर था .चिदम्बरम उसी मनमोहन सिंह सरकार के गृह मंत्री है जो कभी शिवराज पाटिल हुआ करते थे.फर्क सिर्फ इतना है चिदम्बरम अंग्रेजी बोलते है और प्रोफेसनल दिखते है.लेकिन पाटिल जी ने यह पहले साफ कर दिया था कि वे गृह मंत्री किसी काबिलियत के कारण नहीं बने है बल्कि ये सोनिया जी की कृपा है.यही बात कमोवेश प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बारे में भी कही जाती है.यानी सरकार और पार्टी  कौन चला रहे है?इस व्यवस्था पर नारायणमूर्ति सवाल उठा चुके है . आतंकवाद से लड़ने के तमाम इरादे क्यों असफल रहे इसका जवाब खुद मनमोहन सिंह के पास भी नहीं है.                          
   लेकिन इसका जवाब किसी राजनेता के पास भी  नहीं है.दिल्ली बम धमाके  के महज चंद घंटे के बाद संसद में चर्चा में भाग लेते हुए मुलायम सिंह ने सरकार को चेताया कि जाँच में किसी खास समुदाय के लोगों की धड्पकड़  रोकनी होगी .यानी मुलायम धमाके में पीड़ित लोगों के सांत्वना के दो शब्द में भी अपने वोट बैंक को नहीं भूलते .इस हालत में वोट बैंक को लेकर सियासत करने वाली कांग्रेस से ज्यादा उम्मीद करना बैमानी होगी. बीजेपी की हालत यह है कि आतंकवाद पर बोलते ही पहला निशाना उसका मुसलमान होता है. बीजेपी जिस दिन आतंकवाद के मुद्दे पर  मुसलमानों का भरोसा जीत लेगी उस दिन यह पार्टी देश में सबसे बड़ा जनाधार वाली पार्टी होगी लेकिन वह ऐसा कर नहीं पाएगी . भ्रष्टाचार को देश की संस्कृति मानने वाले लोगों को अन्ना हजारे का आन्दोलन ने गलत साबित  किया है और इसे पुरे देश में एक मुद्दा बना दिया है.आतंकवाद के खिलाफ देश को जगाने के लिए एक और अन्ना की दरकार है.



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