सोमवार, 11 जनवरी 2010

इस देश को मित्तल की जरूरत है या गांधी की फैसला लोगों को करने दीजिये


प्रवासी भारतीय दिवस के बहाने मालदार गांधी की तलाश का यह अनोखा मेला है . दुनिया भर के लगभग ४० देशों के तकरीवन १५०० से ज्यादा गाँधी इन दिनों राजधानी दिल्ली मे जुटे हुए है और राज्य सरकार से लेकर केंद्र सरकार इनके इस्तकवाल मे लाल कालीन बिछाए हुई है . कह सकते है कि कामयाब कारोबारियों ,कामयाब सेटर और कामयाब बुद्धिजीवियों के इस अनोखा संगम को देश की आर्थिक सम्पन्नता से जोड़ दिया गया है . २००३ से शुरू हुआ इस सम्मलेन का मुख्या उद्देश्य यह था कि ९ जनबरी को महात्मा गाँधी अफ्रीका से भारत लौटे थे इसलिए इस दिन को प्रवासी भारतीय दिवस के रूप में मनाये .भारत सरकार के मिनिस्ट्री ऑफ़ ओवेर्साज इस दिवस का आयोजन करता है . अपने देश से नौकरी की तलाश में ,रोजगार की तलाश मे , बेहतर जिन्दगी की तलाश मे सदियों से लोगों का पलायन विदेशी मुल्कों मे होता रहा है .सूरीनाम से लेकर गुआना तक फिजी से लेकर अफ्रीका तक मोरिसस से लेकर लातिन अमेरिका तक ऐसे कम ही देश होंगे जहाँ भारतीय ने अपनी दस्तक न दी हो लेकिन इनमे से कम ही लोगों को हमने याद किया है .इनकी तादाद लाखों मे हो सकती है लेकिन प्रवासी दिवस के मौके पर क्यों हजार दो हजार प्रवासी ही हमें याद आते है . यह एक बड़ा सवाल है . सवाल यह भी है इस दिवस को हमने गाँधी जी के स्वदेश लौटने के उपलक्ष मे शुरू किया था लेकिन इन प्रवासियों में गाँधी खोजने के बजाय हमारे सरकारी तंत्र धन कुबेर खोजने लगे ,और लाखों गरीब प्रवासियों को भुला दिया .

प्रवासी दिवस के मौके पर मुझे भी इस मेले के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ . लेकिन यह सम्मलेन कम सेल स्टाल ज्यादा लगा . जगह जगह पर स्टाल ,बैंक वालों का स्टाल ,राज्य सरकारों का स्टाल ,फीकी का स्टाल ,उद्योगपतियों का स्टाल , यानि प्रवासियों को लुभाने का हर ओर से पुख्ता इंतजाम . प्रधानमंत्री कह रहे है कि प्रवासियों को अगले चुनाव मे वोट का अधिकार मिलेंगे . राज्य सरकारे कह रही है उद्योग लगाओ इसके बदले जो चाहे लेलो . यानी एक लगाओ दस पाओ का खुल्ला ऑफर सरकारे दे रही है लेकिन हमारे प्रवासी और सुविधा चाहते है अपना कारोबार बढ़ाने के लिए हर बंदिशों से छूटकारा चाहते है .
लक्ष्मी निवास मित्तल कहते है कि इस देश की सरकार मेगा प्रोजेक्ट सँभालने के लिए गंभीर नहीं है . मित्तल साहब से कोई पूछे झारखण्ड और छत्तीसगढ़ के अलावे क्या इनके मेगा प्रोजेक्ट के लिए और कोई जगह नहीं है? .क्यों कोड़ा जैसे मुख्यमंत्री इन धनकुबेरों के पसंदीदा राजनेता होते है . सवाल यह है कि जब ये प्रवासी धनकुबेर यहाँ या तो बड़े बाजार का उपयोग करेंगे या फिर पिछड़े राज्यों के खनिज सम्पदा को हडपेंगे तो फिर इन्हें लेन के लिए इतने मान्मनोवल्ल क्यों ? ये यहाँ कमाने आयेंगे गाँधी जी की तरह अपना बसा बसाया कारोबार त्याग कर संघर्ष करने नहीं आयेंगे फिर इनकी तुलना गाँधी से क्यों ?

ऐसे कई सवाल है जो प्रवासी भारतीय सम्मलेन में अनुत्तरित रहता है .
पूरी दुनिया आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रही है फिर भी इस मुल्क ने अपना विकास दर ७ फीसद के करीब रखा है .आज भी इसके शेयर सूचकांक १८००० के आंकड़े को पार कर रहा है क्या इसमें किसी प्रवासी का योगदान है ?आर्थिक उदारीकरण के दौर में सरकार और विकास के पैमाने बदल गए है . विकास के लिए नए मॉडल और नए प्रयोग की तलाश जारी है .सरकार को हर कामयाब आदमी मे कुछ नयी उम्मीद दिख रही है यही वजह है कि कामयाब प्रवासी सरकार की पहली पसंद हैं .

सरकार इन्हें आधारभूत सरंचना देगी ,यहाँ के बैंक इन्हें धन उपलब्ध कराएँगे ,यहाँ के बाज़ार इनके प्रोडक्ट को खरीदेगा .आप कह सकते है कि फिर इन प्रवासी का यहाँ क्या योगदान होगा ? योगदान है वे हमें पश्चिम के विकास मॉडल बताएँगे ,वे बताएँगे ४० साल पहले वे कैसे एक मजदूर की हैसियत से विदेश गए थे और आज कैसे धनकुबेर बन कर लौटे है .हम उनके इतिहास और चमत्कार पर आश्चर्यचकित है .हमने एक बार फिर इनसे वही चमत्कार की उम्मीद की है शायद यह जानकार भी कि वे भारत में अपना सिक्का चलाने आये है भारत को कुछ देने नहीं .
प्रवासी भारतीय दिवस पर इस देश को आज भी एक आदद गांधी की तलाश है जिसे इस देश को जरूरत है . धनकुबेर तो पहले से ही यहाँ दुनिया में सबसे ज्यादा है सिर्फ एक गांधी नहीं है . अगले साल प्रवासी दिवस पर मै फिर गाँधी की तलाश में विज्ञानं भवन जाऊँगा हो सकता है मेरी यह खोज कभी पूरी हो जाय .

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